चमोली:जिलाधिकारी हिमांशु खुराना जनपद के सबसे दूरस्थ एवं सीमांत घेस गांव पहुंचे. जिला मुख्यालय से करीब 145 किलोमीटर दूर त्रिशूल पर्वत की तलहटी में बसे देवाल ब्लाक के सीमांत गांव घेस पहुंचने पर स्थानीय लोगों ने पारंपरिक वाद्य यंत्रों एवं मांगलिक गीतों के साथ जिलाधिकारी का भव्य स्वागत किया.घेस गांव पहुंचकर जिलाधिकारी ने लोगों की समस्याएं सुनी.
हर्बल गांव घेस को व्यावसायिक मॉडल के रूप में करें विकसित: जिलाधिकारी ने उच्च हिमालयी क्षेत्र घेस में औषधीय जड़ी बूटियों का उत्पादन बढ़ाने के लिए तकनीक के साथ व्यावसायिक खेती का मॉडल विकसित करने पर जोर दिया. उन्होंने कहा औषधीय जड़ी बूटियों की खेती से किसानों के साथ-साथ राज्य को भी आर्थिक लाभ होगा. इससे बेरोजगार युवाओं के लिए रोजगार के अवसर भी पैदा होंगे. उन्होंने जड़ी बूटी उत्पादन और विपणन की सुविधाओं को सरल बनाने को लेकर गहनता से चर्चा करते हुए किसानों से सुझाव भी लिए. जिलाधिकारी ने कहा किसानों के पंजीकरण और उनकी उपज के विपणन के लिए परमिट प्रक्रिया को भी आसान और अनुकूल बनाने का प्रयास किया जाएगा. घेस गांव में जड़ी बूटी उत्पादन से जुड़े किसानों के खेतों का निरीक्षण करते हुए जिलाधिकारी ने हर्बल गांव घेस को पर्यटन से भी जोड़ने की बात कही.
पढे़ं-एक तरफ मानसून तो दूसरी तरफ 2785 जर्जर स्कूल, खतरे के साए में नौनिहाल, जिम्मेदार कौन ?
बता दें घेस गांव में अब परंपरागत खेती के साथ ही जड़ी बूटियों की खेती भी की जाती है. ग्रामीण कुटकी, अतीस, मीठा, वनकरी, चोरु, अरचा, जटामांसी, बालछर, सतवा, चिरायता जैसी जड़ी बूटियों का उत्पादन कर रहे हैं. यहां सबसे ज्यादा कुटकी का उत्पादन किया जा रहा है, जो 12 सौ रुपए किलो तक बिक रहा है. घेस को उत्तराखंड का हर्बल गांव भी कहा जाता है. परंपरागत खेती में ग्रामीण चौलाई, आलू, राजमा, ओगल, गेंहू, मंडुवा और झंगोरा भी उगाते हैं. ग्रामीण अब नगदी फसल मटर की भी खेती कर रहे हैं. घेस गांव तक सड़क है. यहां करीब 300 परिवार रहते हैं.