डबल इंजन की सरकार में कंधों पर 'हेल्थ सिस्टम' बागेश्वर:अच्छे दिन की आस में उत्तराखंड की जनता ने प्रचंड बहुमत के साथ डबल इंजन की सरकार को चुना, लेकिन आज भी पहाड़ के गांवों में पहुंचने से विकास हांफता नजर आ रहा है. 5जी के इस युग में उत्तराखंड के सैंकड़ों ऐसे गांव है, जो सड़क, पानी, स्वास्थ्य और बिजली की सुविधा से महरूम है. आलम यह है कि यहां मरीजों को एंबुलेंस की जगह कंधों पर ढ़ोकर अस्पताल पहुंचाना इन ग्रामीणों की मजबूरी बन गई है. आज हम आपको बागेश्वर जिले के बोरबलड़ा गांव की कहानी दिखाने जा रहे हैं, जहां के लोग आज भी पाषाण युग में जीने को मजबूर हैं.
लंबे संघर्ष और आंदोलनकारियों की शहादत के बाद 9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड का गठन हुआ, लेकिन पिछले 22 सालों में यहां की सरकारें बदलती रही पर प्रदेश का विकास शिथिल सा रहा. आलम यह है कि उत्तराखंड का नाम सिर्फ आपदा, पलायन, बेरोजगारी, घोटाला और भ्रष्टाचार की खबरों में सुर्खियां बटोरता नजर आता है. 21वीं सदी में उत्तराखंड के कई गांव सड़क, अस्पताल, स्कूल, पेयजल और बिजली जैसी बुनियादी सुविधाओं से महरूम हैं. कुछ ऐसा ही हाल बागेश्वर जिले के बोरबलड़ा गांव का है.
बोरबलड़ा गांव की हालत विकास के दावों को मुंह चिढ़ाता नजर आता है. कपकोट तहसील के अंतिम गांव बोरबलड़ा का हाल बड़ा बुरा है. बागेश्वर जिला मुख्यालय से करीब 60 किमी दूर बोरबलड़ा गांव के लोग आज भी सड़क सुविधा से वंचित हैं. कुछ दिन पहले ही गांव के भराकांडे तोक की एक बुजुर्ग महिला का स्वास्थ्य अचानक बिगड़ गया, लेकिन सड़क नहीं होने की वजह से ग्रामीण डोली के सहारे बुजुर्ग को करीब 7 किमी तक कंधों पर ढ़ोने के बाद रोड तक लेकर पहुंचे. जहां से उसे गाड़ी से बदियाकोट और उसके बाद सीएचसी कपकोट ले जाया गया.
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बोरबलड़ा गांव के युवा हरीश दानू ने का कहना है कि आज भी यहां के लोग पाषाण युग में जी रहे हैं. हमारे क्षेत्र में सड़क, संचार और बिजली की सुविधा नहीं होने की वजह से ग्रामीण पिछड़ेपन का दंश झेल रहे हैं. गांव के लिए वर्ष 2019 से सड़क का निर्माण कार्य चल रहा है, लेकिन अब भी 7 किमी की दूरी पैदल तय करना पड़ता है. अगर कोई बीमार पड़ जाए तो उसे कंधों पर 7 किमी ढोने के बाद वाहन की मदद से कपकोट अस्पताल तक ले जाना पड़ता है. कई बार सड़क तक लाने में मरीज की तबीयत काफी बिगड़ जाती है.
हरीश ने कहा गांव में मोबाइल नेटवर्क नहीं होने से कोई दिक्कत आने पर लोग 108 से संपर्क भी नहीं कर पाते हैं. अपनों से फोन पर बात करने के लिए भी उन्हें 30 से 35 किमी की दूरी तय करनी पड़ती है. गांव में यूपीसीएल की बिजली नहीं है. माइक्रो हाईडिल से मिलने वाली बिजली से ग्रामीणों को पर्याप्त सुविधा नहीं मिल पाती है. राज्य आंदोलनकारी रमेश कृषक ने बताया सरकार केवल विकास की बात कहती है, लेकिन धरातल पर करती नहीं है. अगर सच में सरकार विकास की सोच रखते तो, जिस गांव को आज सबसे विकसित होना चाहिए था, उसको सड़क, संचार और बिजली की मांग को लेकर इंतजार नहीं करना पड़ता.