अल्मोड़ा:देवभूमि से कई दिव्य रहस्य जुड़े हुए हैं, जिनका आज तक कोई पता नहीं लगा सका. ऐसे ही एक रहस्य का नाम है अल्मोड़ा का कसार देवी मंदिर. इस मंदिर ने दुनियाभर के वैज्ञानिकों की भी नींद उड़ा दी थी. इस मंदिर की असीम शक्ति से नासा के वैज्ञानिक भी हैरान हो गए थे.
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वैज्ञानिकों के अनुसार, कसारदेवी मंदिर के आसपास वाला पूरा क्षेत्र वैन एलेन बेल्ट है. जहां धरती के भीतर विशाल भू-चुंबकीय पिंड है. इस पिंड में विद्युतीय चार्ज कणों की परत होती है, जिसे रेडिएशन भी कह सकते हैं. दुनिया में केवल तीन ही पर्यटन स्थल ऐसे हैं, जहां कुदरत की खूबसूरती के दर्शनों के साथ ही मानसिक शांति भी महसूस होती है. ये अद्वितीय और चुंबकीय शक्ति के केंद्र भी हैं. अल्मोड़ा के कसार देवी मंदिर के अलावा दक्षिण अमेरिका के पेरू स्थित माचू-पिच्चू और इंग्लैंड के स्टोन हेंग में भी ऐसी ही अद्भुत समानताएं हैं.
कसार देवी मंदिर परिसर में जीपीएस 8 वह प्वाइंट है, जिसके बारे में अमेरिका की संस्था नासा ने ग्रेविटी प्वाइंट के बारे में बताया है. मुख्य मंदिर के द्वार के बांयी ओर नासा के द्वारा ये स्थान चिन्हित करते हुए GPS 8 लिखा है. कसार देवी मंदिर के आस-पास का पूरा क्षेत्र हिमालयी के वन और अद्भुत नजारे से घिरा हुआ है. हर साल कार्तिक पूर्णिमा पर (नवम्बर-दिसम्बर माह में) यहां कसार देवी का मेला लगता है. पूरे साल बड़ी संख्या में देशी पर्यटकों के अलावा विदेशी पर्यटक भी यहां आते हैं. बिनसर और आस-पास तमाम विदेशी पर्यटक रोजाना भ्रमण करते दिखाई भी पड़ते हैं. विदेशी साधकों ने बड़ी संख्या में यहां अस्थाई ठिकाना भी यहां बना लिया है.
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शांति की तलाश में यहां पहुंचे थे स्वामी विवेकानंद
स्वामी विवेकानंद 1890 में ध्यान के लिए कुछ महीनों के लिए कसार देवी मंदिर पहुंचे थे. बताया जाता है कि अल्मोड़ा से करीब 22 किमी दूर काकड़ीघाट में उन्हें विशेष ज्ञान की अनुभूति हुई थी. इसी तरह बौद्ध गुरु लामा अंगरिका गोविंदा ने गुफा में रहकर विशेष साधना की थी. स्वामी विवेकानंद ने 11 मई 1897 को अल्मोड़ा के खजांची बाजार में लोगों को संबोधित करते हुए कहा था कि यह हमारे पूर्वजों के स्वप्न का देश है. ये वह पवित्र स्थान है, जहां भारत का प्रत्येक सच्चा धर्मपिपासु व्यक्ति अपने जीवन का अंतिम काल बिताने को इच्छुक रहता है. ये भी बताया जाता है कि 1916 में स्वामी विवेकानंद के शिष्य स्वामी तुरियानंद और स्वामी शिवानंद ने अल्मोड़ा में ब्राइटएंड कार्नर पर एक केंद्र की स्थापना की. जो आज रामकृष्ण कुटीर नाम से जाना जाता है.