देहरादून: कद्दावर नेता हरक सिंह रावत और उनका मंत्री पद एक अजीब से संयोग से गुजरता रहा है. उत्तराखंड के सबसे अनुभवी नेताओं में से एक हरक सिंह रावत कुछ ऐसी स्थितियों से दो-चार होते रहे हैं, जो उनके बुरे वक्त से भी जुड़ी हैं और उनकी सफलता से भी. दरअसल, हरक सिंह रावत के साथ उनके मंत्री पद को लेकर एक ऐसा इतिहास जुड़ा हुआ है, जिससे इन दिनों भारतीय जनता पार्टी भी निश्चित रूप से घबराई हुई थी.
बीजेपी का 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले इस इतिहास को देखकर घबराना लाजिमी भी था. दरअसल, हरक सिंह रावत उत्तर प्रदेश के समय से ही मंत्री पद संभालते रहे हैं. उत्तराखंड में मौजूदा नेताओं में देखें तो राज्य में मंत्री बनने का सबसे ज्यादा अनुभव फिलहाल उन्हीं को है, लेकिन इस अनुभव के साथ उनकी कुछ कड़वी यादें भी हैं, जो हरक सिंह रावत के मंत्री पद को लेकर कार्यकाल पूरा न करने से जुड़ी हैं.
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4 सरकारों में मंत्री रहे हरक सिंह रावत: हरक सिंह रावत का राजनीतिक सफर देखें तो हरक 4 सरकारों में मंत्री रह चुके हैं. लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि अब तक इन चारों सरकारों में वह अपने मंत्री पद के कार्यकाल को कभी पूरा नहीं कर सके. बस उनका यही इतिहास और हरक सिंह रावत बगावती तेवर के चलते बीजेपी की चिंता का सबब बने हुए थे.
कल्याण सिंह की सरकार में युवा मंत्री बनने का अनुभव: कैबिनेट मंत्री रहे हरक सिंह रावत अविभाजित उत्तर प्रदेश के समय साल 1991 में पौड़ी विधानसभा सीट से चुनाव लड़कर विधायक बने थे. इस दौरान वह बीजेपी में थे और कल्याण सिंह सरकार में उन्हें सबसे युवा मंत्री बनने का मौका मिला था. इस दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने उन्हें पर्यटन राज्यमंत्री का जिम्मा सौंपा था. इसे संयोग कहें या कुछ और कि मंत्री बनने के बाद राम मंदिर आंदोलन के बीच बाबरी मस्जिद विध्वंस के कारण मुख्यमंत्री का इस्तीफा हो गया और हरक अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए.
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हरक ने मनमुटाव के कारण BSP का दामन थामा:भाजपा से ही अपनी राजनीति की शुरुआत करने वाले हरक सिंह रावत ने मनमुटाव के कारण साल 1996 में भाजपा छोड़कर बसपा का दामन थाम लिया. इसके बाद मायावती ने उन्हें कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां भी दीं. लेकिन इसके बाद वे यहां भी ज्यादा समय तक नहीं ठहर सके और साल 1998 में उन्होंने कांग्रेस का हाथ थाम लिया. उत्तराखंड के अलग राज्य के रूप में स्थापित होने के बाद साल 2002 के पहले चुनाव में उन्होंने लैंसडाउन से चुनाव लड़ा और विधायक के रूप में विधानसभा पहुंचे.
एनडी तिवारी सरकार में भी रहे मंत्री: इस दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने उन्हें राजस्व, खाद्य और आपदा प्रबंधन जैसे मंत्रालयों में कैबिनेट मंत्री बनाया. उनके मंत्री बनने के बाद करीब 1 से डेढ़ साल में ही उन पर एक महिला के यौन उत्पीड़न के आरोप लगे और उन्हें अपना मंत्री पद त्यागना पड़ा. हालांकि, बाद में वे सीबीआई जांच के बाद आरोप मुक्त हुए.
विजय बहुगुणा की सरकार में भी अहम जिम्मेदारी:साल 2012 में फिर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार आई और विजय बहुगुणा के नेतृत्व वाली सरकार में उन्हें कृषि, चिकित्सा शिक्षा और सैनिक कल्याण विभाग का कैबिनेट मंत्री बनाया गया. इस बार कार्यकाल पूरा करने की उम्मीद थी लेकिन हरीश रावत से हुई अनबन के बाद उन्होंने 4 साल बाद यानी 2016 में अधूरे कार्यकाल में ही कांग्रेस को छोड़ भाजपा का दामन थाम लिया.
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2017 में सात मंत्रालय संभाल रहे थे हरक सिंह: 2017 में बीजेपी के विधायक के रूप में हरक सिंह रावत उत्तराखंड विधानसभा पहुंचे. हरक को रिकॉर्ड 7 विभाग का कैबिनेट मंत्री बनाया गया. उन्हें वन, पर्यावरण संरक्षण, श्रम, कौशल विकास-सेवायोजन, आयुष, आयुष शिक्षा, ऊर्जा एवं वैकल्पिक ऊर्जा का कैबिनेट मंत्री बनाया गया था. इस बार भी 14 फरवरी को चुनाव होने और 10 मार्च को चुनाव परिणाम आने से पहले ही हरक सिंह रावत का मंत्री पद चला गया. उत्तराखंड के राजनीतिक इतिहास में फिर ये कहावत चरितार्थ हो गई कि हरक सिंह रावत अपना मंत्री के रूप में कार्यकाल पूरा नहीं कर सके.
कौन हैं हरक सिंह रावत: हरक सिंह रावत भारत में उत्तराखंड के राजनीतिज्ञ हैं. उनका जन्म 15 दिसंबर 1960 को हुआ. हरक सिंह रावत ने 1984 में कला में स्नातकोत्तर की पढ़ाई की. उन्होंने 1996 में हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय, श्रीनगर, उत्तराखंड से सैन्य विज्ञान में डॉक्टर ऑफ फिलॉसफी की डिग्री प्राप्त की. हरक की पत्नी का नाम दीप्ति रावत है. 1991 में हरक सिंह रावत ने पौड़ी से विधानसभा सीट से चुनाव जीता और उत्तर प्रदेश के सबसे छोटी उम्र के मंत्री बने थे. हरक सिंह रावत, 2016 में उत्तराखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत के खिलाफ विद्रोह करने वाले नौ विधायकों में से एक थे. कांग्रेस द्वारा निष्कासित किए जाने के बाद वे भाजपा में शामिल हो गए थे.