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19@उत्तराखंड: पूरे देश ने देवभूमि की राजनीति में देखी पराकाष्ठा, बालिग होते ही मिला राष्ट्रपति शासन

लंबे संघर्ष के बाद हासिल हुआ हिमालय राज्य उत्तराखंड में जितनी प्राकृतिक विविधता है, उतनी राजनीतिक अस्थिरता भी है. यही कारण है कि मात्र 19 सालों में ही यहां कई बार राजनीतिक उठापटक देखने को मिली. 15 बार आचार संहिता और एक बार का राष्ट्रपति शासन इसकी बानगी है.

19 सालों में देवभूमि ने देखे सियासत के कई रंग.

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Published : Nov 7, 2019, 10:15 PM IST

Updated : Nov 7, 2019, 10:45 PM IST

देहरादून: 9 नवंबर को उत्तराखंड अपना 20वां स्थापना दिवस मनाने जा रहा है. इन 19 सालों में प्रदेश की सरकार में अहम भूमिका निभाने वाले विधायकों के निर्वाचन के चलते प्रदेश में 15 बार आचार संहिता और 1 बार 51 दिनों के लिए राष्ट्रपति शासन लगा. जिसमें केवल 3 आम चुनाव शामिल हैं. कुछ विधायकों के निधन को अगर छोड़ दें तो ज्यादातर उपचुनाव राजनीतिक अस्थिरता और असंतोष के चलते हुए हैं. जिनके किस्से भी बेहद रोचक हैं. राज्य के 20वें स्थापना दिवस के मौके पर आइए कुछ ऐसे ही राजनीतिक उठापटक के रोचक किस्सों की यादें ताजा करते हैं.

19 सालों में देवभूमि ने देखे सियासत के कई रंग.

लंबे संघर्ष के बाद हासिल हुआ हिमालय राज्य उत्तराखंड में जितनी प्राकृतिक विविधता है, उतनी ही राजनीतिक अस्थिरता भी है. यहां अब तक बीते 19 सालों की राजनीति में कई उठापटक देखने को मिली. इसकी शुरुआत साल 2002 के फरवरी माह में हुए प्रदेश के पहले विधानसभा चुनाव से हुई. जब पैराशूट से उतरे एनडी तिवारी को प्रदेश की कमान सौंपी गई.

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प्रदेश में दिल्ली का दखल, जनता को दरकिनार करने की परिपाटी यहीं से शुरू होती है. इसके बाद प्रदेश में कुछ उपचुनाव हुए जो विधायकों के निधन के चलते हुए. इसके बाद साल 2005 में कोटद्वार से विधायक सुरेंद्र सिंह नेगी की विधायकी को हाईकोर्ट ने निरस्त कर दिया था. जिसके खिलाफ भाजपा नेता अनिल बलूनी ने याचिका दायर की थी.

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वहीं, इसके बाद साल 2007 में एक बार फिर वही परिपाटी दोहराई गई. यहां एक बार फिर से पैराशूट सीएम उत्तराखंड पर थोपे गए. इस बार फिर जनता के बीच से चुनकर आए धुमाकोट विधायक तेजपाल सिंह को इस्तीफा देना पड़ा और बीसी खंडूड़ी को सीएम बनाया गया और फिर उपचुनाव में उतारा गया. फिर इन्हीं पांच सालों में भाजपा के ही एक विधायक ने अपनी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. तमाम आरोपों के चलते विकासनगर विधायक मुन्ना सिंह चौहान ने विधायकी से इस्तीफा दे दिया. कुछ जानकार बताते हैं कि यह नाराजगी लोकसभा चुनाव में पार्टी से टिकट न मिलने को लेकर थी.

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इसके बाद तीसरे विधानसभा चुनाव में भी एक बार फिर से दिल्ली से विजय बहुगुणा को सितारगंज के विधायक का इस्तीफा दिलाकर सीएम बनाया गया. फिर इस सीट पर उपचुनाव हुआ. साल 2013 की आपदा ने उत्तराखंड समेत यहां की राजनीति में भूचाल आया. फिर एक बार सीएम बदले गए. जिसके लिए एक और विधायक हरीश धामी की बलि चढ़ी.

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इसके बाद 2014 के लोकसभा चुनाव हुए. इस दौरान दो विधायक लोकसभा में शिफ्ट हुए. देश में मोदी सरकार का उदय हुआ. जिसके बाद पूरे देश में कांग्रेस शासित राज्यों के साथ क्या-क्या हुआ यह तो सभी ने देखा. मार्च 2016 के फरवरी माह में बजट सत्र के दौरान कुछ ऐसा घटा जिसने उत्तराखंड की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं की पराकाष्ठा को पूरे देश ने देखा और सरकार के 9 विधायकों ने अपनी ही सरकार को गिरा दिया. इस घटनाक्रम के तमाम पहलू थे जिस पर आज भी खोजबीन जारी है. इसके चलते प्रदेश में 51 दिनों तक राष्ट्रपति शासन लगा रहा. जो कि मात्र 18 वर्ष की अल्पआयु में उत्तराखंड के सबसे चुनौती भरे दिन थे.

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19 सालों में इतनी बार और इन वजहों से हुए चुनाव

  • फरवरी 2002- प्रदेश का पहला विधानसभा चुनाव.
  • अगस्त 2002 पैराशूट मुख्यमंत्री एनडी तिवारी के लिए रामनगर विधानसभा से विधायक योगेंद्र सिंह रावत के इस्तीफे के बाद उपचुनाव.
  • अक्टूबर 2004 द्वाराहाट विधायक बिपिन चंद्र त्रिपाठी के निधन के बाद उपचुनाव.
  • जुलाई 2005 कोटद्वार विधायक सुरेंद्र सिंह नेगी के निर्वाचन निरस्त होने के बाद उपचुनाव.
  • फरवरी 2007 प्रदेश का दूसरा विधानसभा आम चुनाव.
  • मार्च 2007- बाजपुर विधानसभा से चुनाव के दौरान जनक राज शर्मा की मौत के बाद उपचुनाव।
  • सितंबर 2007 पैराशूट मुख्यमंत्री बीसी खंडूरी के लिए धुमाकोट विधानसभा से विधायक तेजपाल सिंह के इस्तीफे के बाद उपचुनाव.
  • दिसंबर 2008 लोकसभा चुनाव में गए भगत सिंह कोश्यारी की कपकोट सीट पर उपचुनाव.
  • अप्रैल 2009 अपनी ही सरकार से नाराजगी के चलते विकास नगर विधायक के मुन्ना सिंह चौहान के इस्तीफे के बाद उपचुनाव.
  • जनवरी 2012 प्रदेश के तीसरे विधानसभा आम चुनाव .
  • मई 2012 पैराशूट मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के लिए सितारगंज विधानसभा से विधायक किरण मंडल के इस्तीफे के बाद उपचुनाव .
  • मई 2014 लोकसभा चुनाव में शिफ्ट हुए अजय टम्टा की सोमेश्वर विधानसभा उपचुनाव.
  • मई 2014 लोकसभा चुनाव में शिफ्ट हुए डोइवाला विधायक रमेश कुमार निशंक की विधानसभा पर उपचुनाव.
  • जून 2014 मुख्यमंत्री बनाए गए हरीश रावत के लिए धारचूला विधानसभा से विधायक हरीश धामी के इस्तीफे के बाद उपचुनाव.
  • अप्रैल 2015 भगवानपुर विधायक सुरेश राकेश के निधन के बाद उपचुनाव.
  • मार्च 2016 दल बदल के चलते 9 विधायकों की सदस्यता निरस्त हो गई और प्रदेश में 51 दिनों के लिए राष्ट्रपति शासन लगाया गया.
Last Updated : Nov 7, 2019, 10:45 PM IST

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