वाराणसी:वाराणसी में लगभग 223 वर्षों से होने वाली विश्व प्रसिद्ध रामलीला पर इस बार कोरोना ने विराम लगा दिया है. यह रामलीला सैकड़ों वर्षों से बड़े ही हर्षोउल्लास से मनाई जाती रही है. खास बात ये है कि यहां के नाटी इमली पर होने वाले भरत मिलाप पर भी कोरोना की मार पड़ी है. 475 सालों से होता आ रहा भरत मिलाप भी इस बार कोरोना के चलते नहीं मनाया जाएगा.
वाराणसी: इस बार भरत मिलाप में नहीं होंगे भगवान के दर्शन
कोरोना की महामारी ने आमजनजीवन को तो अस्तव्यस्त किया ही है साथ ही इसका असर पारम्परिक उत्सव, तीज त्योहारों पर भी पड़ा है. वाराणसी में होने वाले भरत मिलाप पर भी कोरोना का असर पड़ा है. कोरोना की वजह से इस बार 475 साल पुराना यह त्योहार भी नहीं मनाया जाएगा.
बता दें 475 सालों से चली आ रही भरत मिलाप की परंपरा इस बार नहीं निभायी जाएगी. ऐसी मान्यता है कि इस भरत मिलाप के दौरान कुछ क्षणों के लिए पात्रों में भगवान के अंश के दर्शन होते है. आपको जानकारी के लिए बता दें कि वाराणसी में इस आयोजन को लक्खा मेलें के नाम से जाना जाता है जिसकी शुरुवात मेघा भगत ने 475 वर्ष पूर्व में की गई थी. मान्यता है कि मेघा भगत को भगवान राम ने स्वयं दर्शन दिए थे, जिसके बाद से उन्होंने इस मेलें की शुरुवात की थी, जिसे आज भी पूरी श्रद्धा से मनाया जाता है.
इस संबंध में लीला समिति के व्यवस्थापक मुकुंद उपाध्याय ने बताया कि इस बार कोरोना महामारी का प्रकोप होने के कारण 475 वर्षों से हो रहे भरत मिलाप का आयोजन भव्य रूप में नहीं किया जायेगा. इस बार सांकेतिक रूप में भरत मिलाप की परंपरा निभायी जाएगी. फिलहाल शनिवार को ही इस लीला की शुरुवात मुकुट पूजन से हो चुकी है.
हर साल नाटी इमली में होने वाले भरत मिलाप में लाखों श्रद्धालुओं की भारी भीड़ होती है. जिसमें लीला प्रेमी पात्रों में भगवान के दर्शन का सुख प्राप्त करते है. इस लक्खा मेलें की एक और खासियत ये भी है कि इस आयोजन में काशी का राज परिवार भी शामिल होता है. 223 वर्षों से काशी का राज परिवार इस परम्परा को निभाते आ रहे हैं. इस आयोजन में काशी के यादव बंधु राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघन सहित सभी पात्रों के रथ को उठाते है. इसमें यादव बंधुओं को काशी नरेश के द्वारा सोने के सिक्के देने की परंपरा भी है.