वाराणसी: छठ पूजा की शुरुवात हो चुकी है. तीन दिनों तक चलने वाले इस पावन पर्व को यूपी और बिहार के साथ पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है. कल नहाय खाय के बाद आज से व्रती व्रत रखेंगे. इस पूजा को विशेषकर महिलाओं का पर्व माना जाता है, जबकि पुरुष भी इस व्रत को बड़ी श्रद्धा से करते है. इस व्रत में संतान प्राप्ति और संतान की समृद्धि के लिए माता षष्ठी देवी की पूजा का विधान है. इसके साथ ही व्रत के दूसरे दिन ढलते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. व्रत के अंतिम दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही इस पूजा का समापन होता है.
छठ पूजा में करते हैं सूर्य देव की पूजा. क्या है षष्ठी देवी की पूजा का महत्व काशी के प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य पं.पवन त्रिपाठी ने छठ पूजा का महत्व बताया. उन्होंने इस पूजा में माता षष्ठी देवी का व्याख्यान करते हुए कहा कि माता षष्ठी देवी मूल प्रकृति के छठें अंश से उतपन्न हुई हैं. ये बालकों की अधिष्ठात्री देवी हैं. उन्होंने बताया कि इनका नाम विष्णु माया और बालदा भी है. माता षष्ठी देवी भगवान शंकर के पुत्र कार्तिकेय की पत्नी हैं. जिसके कारण इन्हें देवसेना के नाम से भी जाना जाता है. शास्त्रों के अनुसार देवताओं को षष्ठी देवी के सहयोग के बिना किसी युद्ध में विजय नहीं मिल सकती.
संतान सुख की होती है प्राप्ति
माता षष्ठी देवी की आराधना करने से महिलाओं को संतान सुख की प्राप्ति होती है. जिनके पुत्र जन्म लेते ही मर जा रहे है या अल्पायु वाले संतानों की रक्षा के लिए भी माता षष्ठी देवी की उपासना करना लाभकारी होता है. उत्तम पुत्र और पुत्र की उत्तम आयु की कामना के लिए मां के इस स्वरूप की आराधना की जाती है. षष्ठी देवी की पूजा से न सिर्फ संतान सुख बल्कि सुख-समृद्धि और व्यापर लाभ की भी प्राप्ति होती है.
क्यों करते है सूर्य की उपासना
तीन दिनों तक चलने वाले छठ पूजा के दूसरे दिन संध्या के समय और अंतिम दिन उगते सूर्य को अर्ग देकर उपासना करने का प्रावधान है. इसी के साथ छठ पूजा का समापन होता है. छठ पूजा में सूर्य की उपासना का विशेष महत्व होता है क्योंकि सूर्य पुत्र प्राप्ति, सौभाग्य, आरोग्यता और प्रसन्नता प्रदान करने वाले देवता हैं, इसीलिए सूर्य को अर्घ्य देकर उन्हें प्रसन्न किया जाता है, ताकि मनुष्य को सौभाग्य की प्राप्ति हो सके.
महाभारत में कुंती ने सूर्य से की थी पुत्र की कामना
एक अन्य मान्यता के अनुसार महाभारत काल में पांडवों की माता कुंती ने सूर्य देव से पुत्र प्राप्ति की कामना की थी. कुंती ने मात्र सूर्य का स्मरण करके पुत्र प्राप्त कर लिया था. जो महावीर कर्ण के नाम से प्रसिद्ध हुए थे और महाभारत के युद्ध में कर्ण ने अहम भूमिका निभाई थी. सूर्य पुत्र होने के कारण ही कर्ण को सूर्य का अभेदय कर्ण और कुंडल प्राप्त हुआ था.