वाराणसी: भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान काशी हिन्दू विश्वविद्यालय स्थित मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग (औद्योगिक प्रबंधन) की एक टीम राष्ट्रीय हथकरघा दिवस के अवसर पर हथकरघा बुनकरों के लिए एर्गाेनॉमिक रूप से डिजाइन करघा लेकर आई है. कहा जा रहा है कि यह करघा बुनकरों को अधिक आराम प्रदान करेगा, जिससे बुनकरों को लंबे वक्त तक बैठ कर काम करने से होने वाले मस्कुलोस्केलेटल विकारों का खतरा कम होगा.
मैकेनिकल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर डॉ. प्रभास भारद्वाज ने बताया कि हथकरघा बुनकरों को एक जगह बैठकर रोजाना कम से कम 8-12 घंटे काम करना पड़ता है. इस वजह से उन्हें मस्कुलोस्केलेटल दर्द के लक्षणों का सामना करना पड़ रहा है. वाराणसी में किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार अधिकांश बुनकर पीठ के निचले हिस्से, जांघ, पैर, टखने और गर्दन में दर्द से पीड़ित हैं. यह करघों के मौजूदा डिजाइन में बुनकरों के काम करने की मुद्रा के कारण है. वर्तमान में उपयोग किए जाने वाले पारंपरिक करघे, शाफ्ट और जेकक्वार्ड को बांस की छड़ियों को दबाकर उठाया जाता है, जो एक फुट पेडल के रूप में काम करते हैं और वे रस्सियों की मदद से जुड़े होते हैं, जो बुनकर की सीट के पीछे चलती है. बुनते समय ये रस्सियां कभी-कभी बुनकर की पीठ को छूकर बुनकर के चलने-फिरने में समस्या पैदा कर देती हैं. यह सीट डिजाइन में भी एक प्रतिबंध बनाता है. करघे के नए डिजाइन में, फुट पेडल से जेकक्वार्ड तक बिजली का यांत्रिक संचरण रोलर्स और रस्सियों के उचित स्थान की मदद से किया जाता है.
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