रामपुर: कभी रामपुर की पहचान रहा रामपुरी चाकू खुद अपनी पहचान खोता जा रहा है. रामपुर के चाकू का नाम देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी जाना जाता था, लेकिन धीरे-धीरे इसका कारोबार खत्म हो गया है. इस कारोबार से जुड़े लोग रिक्शा चलाने और मजदूरी करने पर मजबूर हैं. कई सरकारें आईं और चली गईं, लेकिन किसी ने भी इस कारोबार की ओर ध्यान नहीं दिया. इससे जुड़े ज्यादातर लोगों ने अपना काम बदलकर दूसरा काम शुरू कर दिया है और ज्यादातर लोग तो भुखमरी की कगार पर पहुंच गए हैं.
विदेशों में भी थी पहचान
रामपुर का चाकू भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी जाना और पहचाना जाता था. यहां के जैसा चाकू कहीं और दूसरी जगह देखने को नहीं मिलता था. रियासत कालीन दौर में चाकू बनाने के कई कारखाने थे और काफी कारीगर थे, जो इस काम में लगे हुए थे और अपने परिवार का पालन-पोषण करते थे. धीरे-धीरे चाकू के लिए सरकार ने कानून काफी सख्त कर दिए, जिससे लोगों ने चाकू के काम को बंद करना बेहतर समझा.
तलवार को तोड़कर बनाया गया था
ईटीवी भारत ने रामपुरी चाकू के बारे में नाइफ एसोसिएशन के जनरल सेक्रेटरी रहे फजल शाह से बात की तो उन्होंने इसके इतिहास के बारे में बताया. उन्होंने बताया कि रामपुर में चाकू की तारीख बहुत पुरानी है. रामपुर स्टेट के जमाने में तलवार को तोड़कर चाकू बनाया गया था और यहां का चाकू पूरी दुनिया में मशहूर था. उन्होंने बताया कि आज भी रामपुर चाकू के नाम से पहचाना जाता है. फजल शाह ने बताया कि 17 मार्च 1967 को यूपी गवर्नमेंट ने अपने कुछ नगर पालिका क्षेत्रों में 10 सेंटीमीटर से ज्यादा बड़े चाकू पर दफा 25 लागू कर दी थी, जिससे कारोबारियों पर बहुत असर पड़ा. उन्होंने बताया कि इस काम से जो लोग बेरोजगार हुए वह रिक्शा चलाने लगे, कुछ जरदोजी का काम करने लगे. फजल शाह बताते हैं कि इसमें एक परेशानी और थी कि जो लाइसेंस जारी किए गए थे, उनमें यह लिखा था कि 1 साल में 400 चाकू ही बेच सकते हैं.
शादाब मार्केट में बड़ा बाजार था
व्यापारी नेता संदीप अग्रवाल से ईटीवी भारत ने चाकू के कारोबार पर बात की तो उन्होंने बताया कि जनपद रामपुर में चाकू तैयार हुआ करते थे. बहुत भारी तादाद में यहां पर लोग इस काम में लगे हुए थे और रामपुर के अंदर शादाब मार्केट के पास चाकू का एक बहुत बड़ा बाजार था. उसे लोग चाकू बाजार के नाम से ही जानते थे. संदीप अग्रवाल ने बताया कि उद्योग मंत्रालय ने और उद्योग विभाग ने इसको चालू करने के लिए कोई पहल नहीं की. उन्होंने बताया कि हमारे जिला अधिकारी महोदय ने एक पहल जरूर की है कि रामपुर में जो भी मेहमान आता है वह उसको एक फोटो फ्रेम में चाकू रखकर तोहफे के रूप में भेंट करते हैं.
रिक्शा चलाने पर मजबूर हैं पुराने व्यापारी
चाकू व्यापारी खुशनूद मियां ने ईटीवी भारत से बताया कि चाकू के काम को करते हुए उन्हें 90 साल हो गए. उन्होंने बताया कि इसका सबूत कोठी खास बाग के अंदर से निकले नायाब चाकू हैं. खुशनूद मियां ने कहा कि मौजूदा हालात में इतना बुरा हाल है कि लोगों के हाथों में कारोबार नहीं है और वह रिक्शा चलाने पर मजबूर हैं. वह बताते हैं कि चाकू के व्यापारियों ने अपना कारोबार बदल दिया है, कोई बर्तन बेच रहा है तो कोई रेडीमेड की दुकान लगाकर कपड़े बेच रहा है.