प्रयागराज: सनातन धर्म में छठ पूजा का विशेष महत्व है. हिंदू पंचांग के अनुसार, छठ हर वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी यानी छठी तिथि पर मनाया जाता है. यह हमेशा दीपावली के 6 दिन बाद पड़ता है, जो नहाय खाय की परंपरा से प्रारंभ होता है. यह व्रत करने वाले व्रती निर्जला व्रत रखती हैं, जिसके बाद छठी मैया की आराधना और सूर्यदेव को अर्घ्य देने के बाद इस व्रत का समापन किया जाता है.
छठ पूजा का पर्व मुख्य रूप से बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में मनाया जाता है, लेकिन इन इलाकों के लोग देशभर जहां भी निवास करते हैं, वहां छट पूजा का उत्सव देखा जा सकता है.
दीपावाली के छठवें दिन कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की षष्टी तिथि को छठ पूजा के रूप में मनाया जाता है. यह बिहार के सबसे कठिन व्रतों में से एक है. मान्यता है कि छठ मैया का व्रत रखने वाले व विधि-विधान से पूजा करने वाले दम्पति को संतान सुख मिलता है. साथ ही परिवार में सुख-समृद्धि आती है. छठ पूजा का व्रत सूर्य देव को समर्पित होता है.
छठ की प्रमुख तिथियां
इस बार 8 नवंबर को यानी आज से नहाए-खाए छठ पूजा की शुरुआत होगी. 9 नवंबर को खरना होगा. पहला अर्घ्य 10 नवंबर को संध्याकाल में दिया जाएगा और अंतिम अर्घ्य 11 नवंबर को अरुणोदय में दिया जाएगा.
छठ पूजा का पहला दिन- नहाय खाय
चार दिनों तक चलने वाले इस महापर्व की शुरुआत नहाय खाय से होती है. इस दिन व्रती स्नान कर नए वस्त्र धारण कर पूजा के बाद चना दाल, कद्दू की सब्जी और चावल को प्रसाद के तौर पर ग्रहण करती हैं. व्रती के भोजन करने के बाद परिवार के सभी सदस्य भोजन ग्रहण करते हैं.
छठ पूजा का दूसरा दिन- खरना
छठ पूजा के दूसरे दिन को खरना के नाम से जाना जाता है. इस पूजा में महिलाएं शाम के समय लकड़ी के चूल्हे पर गुड़ का खीर बनाकर उसे प्रसाद के तौर पर खाती हैं. महिलाओं का 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरु हो जाता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार मान्यता है कि खरना पूजा के बाद ही छठी मैया का घर में आगमन हो जाता है.