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सेरेब्रल पॉल्सी से ग्रस्त जुड़वा भाइयों के हौसले की कहानी : कभी स्कूलों ने दाखिला देने से कर दिया था इंकार, आज युवाओं के बने हैं प्रेरणास्रोत

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Dec 3, 2023, 8:03 AM IST

सेरेब्रल पॉल्सी से ग्रसित मेरठ के जुड़वा भाई (World Disability Day 2023) आज युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत बने हैं. दोनों भाइयों को कभी जिन स्कूलों ने दाखिला देने से मना कर दिया था, आज वही उन्हें बच्चों का आत्मबल बढ़ाने के लिए बुलाते हैं. आप भी सुनिए दोनों भाइयों की संघर्षगाथा उन्हीं की जुबानी.

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सेरेब्रल पॉल्सी से ग्रस्त जुड़वा भाइयों की संघर्षगाथा.

मेरठ :जुड़वा भाई, और दोनों ही असाध्य बीमारी सेरेब्रल पाल्सी से ग्रसित. लेकिन न तो इन्होंने हार मानी, न ही इनके माता-पिता ने. दोनों ने एक लंबा संघर्ष किया खुद को साबित करने के लिए. आज दोनों ही युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत बने हैं. हम बात कर रहे हैं मेरठ के जुड़वा भाई आयुष और पीयूष की. आयुष को प्रदेश सरकार पिछले साल सम्मानित कर चुकी है, जबकि पीयूष को इस बार सम्मानित करने वाली है.

समाज में ऐसे तमाम उदाहरण मिल जाएंगे, जिन्होंने दिव्यांगता को बाधा नहीं बनने दिया और अपनी मंजिल हासिल करके ही माने. आयुष और पीयूष ऐसे ही दो भाई हैं. मेरठ के बलवंत नगर के निवासी आयुष और पीयूष सेरेब्रल पॉल्सी नामक असाध्य बीमारी से ग्रसित हैं. लेकिन दोनों में सकारात्मकता कूट-कूटकर भरी हुई है. दोनों भाइयों को एक जैसा काम करना पसंद है. पिछले साल विश्व दिव्यांगता दिवस पर यूपी सरकार ने प्रदेश स्तरीय पुरस्कार देकर आयुष को सम्मानित किया गया था, जबकि इस बार पीयूष को भी सम्मान देने का निर्णय लिया है. तीन दिसंबर को पीयूष को लखनऊ में सम्मानित किया जाएगा.

सेरेब्रल पॉल्सी से ग्रस्त जुड़वा भाइयों की संघर्षगाथा.
कभी स्कूलों में नहीं मिल रहा था दाखिला, अब चल रही पीएचडी की तैयारी

आयुष बताते हैं कि जीवन में पल-पल बेशक चुनौतियां हैं, लेकिन परिवार के समर्थन से हाल ही में बीएड भी कर लिया है. बताया कि वह वक्त भी देखा है जब स्कूलों में उनके माता-पिता उन्हें लेकर जाते थे तो कोई दाखिला तक नहीं देता था. उनके माता-पिता ने हार नहीं मानी. प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद मेरठ कॉलेज से ग्रेजुएशन और फिर एमए-बीएड किया. और अब अगला लक्ष्य पीएचडी करने का है और इसके साथ साथ जॉब की भी तलाश है.

दोनों भाइयों की सीएम योगी से है ये मांग

आयुष कहना है कि वे अपने माता-पिता और ईश्वर के आशीर्वाद से ही यह सब कर पा रहे हैं. आयुष कहते हैं कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से यह निवेदन करना चाहेंगे कि जिस तरह से उन्होंने दिव्यांग नाम दिया है, उसी तरह दिव्यांगों के लिए आरक्षित नौकरी भी निकाली जाए. कहा कि वह सीएम योगी से निवेदन करना चाहते हैं कि दोनों भाइयों की शैक्षिक योग्यता को देखते हुए उन्हें कहीं नौकरी भी दिलवाई जाए, जिससे अपना जीवन यापन कर सकें.

प्रेरणाश्रोत मानती है दोनों भाइयों को यूपी सरकार

आयुष ने बताया कि पिछले वर्ष उन्हें प्रेरणास्रोत की श्रेणी में सम्मानित किया गया था. गर्व की बात है कि उनके भाई पीयूष को भी उसी श्रेणी में सम्मानित किया जाएगा. वह कहते हैं कि हर साल प्रदेश में सिर्फ 24 लोगों को ही यह सम्मान दिया जाता है. इसके तहत पहने उनको और अब उनके भाई को यह सम्मान मिलेगा. आयुष कहते हैं कि वह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के शुक्रगुजार हैं, जिन्होंने उनकी मेहनत को सम्मान देकर एक पहचान देने का काम किया है.

दस हजार से अधिक पौधे लगाए, एक हजार से ज्यादा सेमिनार में कर चुके हैं प्रतिभाग

दोनों भाइयों ने प्रथम स्थान हासिल करके बीएड की परीक्षा उत्तीर्ण की थी. आयुष-पीयूष अब तक करीब 10 हजार से अधिक पौधे भी लगा चुके हैं. इसके अलावा अलग-अलग शिक्षण संस्थाओं द्वारा आयोजित किए जाने वाले कार्यक्रमों में उन्हें बतौर मोटिवेशनल स्पीकर के तौर पर भी बुलाया जाता है. आयुष बताते हैं कि मेरठ में शायद ही कोई ऐसा शिक्षण संस्थान हो, जहां उन्होंने जाकर बच्चों का मनोबल न बढ़ाया हो. वह बताते हैं कि अब तक दोनों भाई एक हजार से अधिक सेमिनार में भाग ले चुके हैं.

माता-पिता के साथ से दिव्यांग बच्चों में आता है आत्मविश्वास

मां सुधा गोयल का कहना है कि वे अपने बेटों की क़ामयाबी से बेहद खुश हैं. कहती हैं जिन घरों में भी दिव्यांग बच्चे हैं, वह उनके माता-पिता से कहना चाहती हैं कि इन बच्चों का हौसला बनाने के लिए हर वक़्त उनको एक ही भरोसा देना है कि आप उनके साथ हैं. किसी भी फंक्शन में जाएं तो साथ लेकर जाएं. ऐसा न करने से बच्चों का आत्मसम्मान कम हो जाता है. जब बच्चों को आप साथ में हर जगह लेकर जाएंगे तो उनमें विश्वास बनेगा. जीवन को अच्छे से जीने की इच्छा होगी.वह अच्छा करेंगे.

कठिनाइयों के आगे हार नहीं मानते दोनों भाई

पीयूष ने बताया कि एमए समाजशास्त्र से पूर्ण करने के बाद दोनों भाइयों ने मेरठ के डीएन कॉलेज से रेगुलर बीएड की शिक्षा ली. बताया कि क्लास दूसरी मंजिल पर थी लेकिन कभी न तो क्लास मिस की और न दूसरी मंजिल पर पहुंचने में उन्होंने हार ही मानी. पीयूष ने कहा कि अब तक की जो जर्नी रही है, वह बेहद ही कठिन रही है. आज भी उनका इलाज जारी है. नियमित रूप से वह फिजियोथैरेपी कराते हैं. सरकार की तरफ से 60% दिव्यांग होने का सर्टिफिकेट मिला है. बताते हैं कि पर्यावरण एवं दिव्यांग सुरक्षा के लिए निरंतर कार्य कर रहे हैं. पीयूष कहते हैं कि कोशिश यह है कि सरकारी स्कूलों में खासतौर से लाइब्रेरी की स्थापना हो. वह चाहते हैं कि जिन बच्चों का सेरेब्रल पाल्सी का इलाज नहीं हो पा रहा है, उनके लिए एक केंद्र स्थापित करें. कहते हैं, सरकार एक गैस एजेंसी या पेट्रोल पंप दे, जिसपर सभी दिव्यांगजनों को रोजगार दिया जाए.

पिता ने कहा- दोनों बच्चों पर गर्व

आयुष पीयूष के पिता रविंद्र कुमार गोयल कहते हैं कि उन्हें अपने बच्चों पर गर्व है. वे दोनों ही बेहद मेहनती हैं. सरकार से यही प्रार्थना करना चाहते हैं कि इनको राजकीय सेवा में कहीं स्थान दिया जाए. बता दें कि आयुष व पीयूष का जन्म 14 नंबर 1995 को हुआ था. जन्म के समय दोनों बच्चे बेहद कमजोर थे. उनकी मां ने बताया कि दोनों में ऑक्सीजन की कमी थी. जिसके कारण दो महीने तक इन्हें इनक्यूबेटर में रहना पड़ा था. तीन साल की उम्र में दिल्ली स्थित एम्स के डॉक्टर्स ने बताया था कि दोनों भाई सेरेब्रल पॉल्सी नामक असाध्य रोग से ग्रस्त हैं

हर समस्या का हंसकर सामना किया

पीयूष कहते हैं कि इस रोग के कारण उठने-बैठने, चलने, पेंसिल पकड़ने में भी काफ़ी दिक्कत होती थी. उनकी मां ने बताया कि पांच साल की उम्र में जब वह स्कूल में प्रवेश कराने गईं तो उन्हें सलाह दी गई गई कि उन्हें स्कूल न भेजें. वह कहती हैं कि तब लोगों ने खूब मजाक भी उड़ाया. लेकिन उन्होंने सभी चुनौतियों का सामना हंसकर और हिम्मत के साथ किया. उसके बाद फिर दाखिला हुआ और तब से दोनों भाई निरंतर न सिर्फ अपनी पढ़ाई कर रहे हैं, बल्कि समाज सेवा भी करते हैं. आयुष ने कहा कि दिव्यांगता शरीर से हो सकती है, लेकिन मन से नहीं होनी चाहिए.

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