लखनऊ : यूपी एसटीएफ ने प्रतिबंधित दवाओं के अंतरराष्ट्रीय सौदागरों के एक गैंग का पर्दाफाश किया है. इसमें दो लोग गिरफ्तार किए गए हैं. पूछताछ में आरोपियों ने बताया कि ये गैंग खरीदार की डिमांड के हिसाब से लखनऊ और आसपास के जिलों में मौजूद तस्करों से प्रतिबंधित दवाओं की खरीद करता था. इसके बाद डार्क वेब के माध्यम से डील करता था और बिटकॉइन में पेमेंट लेता था.
STF के शिकंजे में आये प्रतिबंधित दवाओं के सौदागर, पूछताछ में बताया, ऐसे करते थे कारोबार
ऑनलाइन प्रतिबंधित दवाएं बेचने वाले गैंग के सरगना व उसके साथी को यूपी एसटीएफ ने मंगलवार को वजीरगंज से गिरफ्तार किया है. इनके पास से भारी मात्रा में प्रतिबंधित दवाएं व अन्य सामान बरामद हुआ है.
कुरियर से भेजते थे और बिटकॉइन में लेते थे पेमेंट :अधिकारी के मुताबिक, एसटीएफ को प्रतिबंधित दवाओं के अंतरराष्ट्रीय सौदागरों के बारे में सूचना मिली थी. इस पर डिप्टी एसपी एसटीएफ दीपक सिंह ने जाल बिछाया और लखनऊ के वजीरगंज इलाके से ऐशबाग के सलमान हाशमी और दुबग्गा निवासी अल जैद को गिरफ्तार किया. आरोपियों से पूछताछ के दौरान पता चला है कि ये गैंग खरीदारों का नंबर लेकर डार्क वेब के जरिए प्रतिबंधित दवाएं बेचते थे. कस्टमर से संपर्क करने के लिए उन्होंने Buy soma online, Online meds guru, buy tramadol online और online meds care u नाम से वेबसाइट बनाई थी. आरोपी प्रतिबंधित दवाएं लखनऊ और आसपास के जिलों के तस्करों से खरीदते थे, इसके बाद इन्हें कुरियर से भेजा जाता था और बिटकॉइन में पेमेंट लिया जाता था.
30 रुपये का पत्ता 700 में बेचता है गैग :अधिकारी के मुताबिक, पूछताछ में मास्टरमाइंड सलमान हाशमी ने बताया कि 'प्रतिबंधित दवाओं का एक पत्ता 30-40 रुपये में मिलता है, जिसमें 10 गोली होती हैं. इन्हें विदेश में बेचने पर प्रति पत्ते का 600 से 700 रुपये मिलता है. ये गैंग एक कम्पनी के माध्यम से कुरियर कर दवाएं विदेश भेजता था. इस गैंग ने लगभग 150 बार से अधिक दवाओं की तस्करी की है. आरोपी ने बताया कि दवाओं के पत्तों पर कूटरचित प्लास्टिक का रैपर लगवाता हूं. यह रैपर वह खुद ही तैयार कराता है. उसने बताया कि हम लोग हर्बल प्रोडेक्ट के कूटरचित रैपर इसलिए लगाते हैं कि हर्बल दवाओं का कोई लाइसेंस नहीं होता है.'
इंटरनेट का 90% हिस्सा होता है डार्क वेब :साइबर एक्सपर्ट व यूपी पुलिस के साइबर सलाहकार राहुल मिश्रा के मुताबिक, 'आम तौर पर हम लोग इंटरनेट का महज 10 प्रतिशत हिस्सा इस्तेमाल करते हैं, जिसे सरफेस वेब कहते हैं. बाकी का 90% हिस्सा डार्क वेब कहलाता है. डार्क वेब का इस्तेमाल करने के लिए एक विशेष ब्राउजर की जरूरत होती है. यह इतना खतरनाक होता है कि वीपीएन जैसे टूल्स के साथ लोकेशन बदलकर डार्क वेब पर किसी भी अति गोपनीय चीजों का सौदा किया जा सकता है. इसी तरह डार्क वेब के जरिए इंटरनेशनल से लेकर भारत में ऑनलाइन ड्रग ढूंढने वालों की लिस्ट तैयार की जाती है और फिर संपर्क होने के बाद डील फाइनल होती है. डार्क वेब में डील का भुगतान क्रिप्टो करेंसी में ही होता है.'