लखनऊ : मेरे पापा कई दिन से पिछले कुछ दिनों से परेशान थे, अपने जीवन में पहली बार मैंने उन्हें रोते हुए देखा, हमने उनसे कहा भी था कि हम लोग मिल कर आपकी लड़ाई लड़ेंगे, लेकिन उन्होंने इस लड़ाई से हार मान ली और हम सब को छोड़ कर चले गए, अब हम लोग क्या करेंगे... नम आंखों से ये बयां किया संतोष जायसवाल की बेटी रितिका उर्फ महक ने. महक की आंखों में आंसुओं का सैलाब, दूसरी तरफ अपने पिता को इंसाफ दिलाने का संघर्ष का दर्द बातों में दिखाई दे रहा था.
महक के लिए महज 22 साल की उम्र में पिता का अचानक चले जाना बहुत दुखद है. उसके दुख में शामिल सैकड़ों लोग भी इस बात की गवाही दे रहे थे कि 45 की उम्र में संतोष को ऐसा करने पर मजबूर करने वालों को सजा जरूर मिलनी चाहिए. इलाके के लोगों का कहा कि संतोष बहुत ही शरीफ इंसान थे. पूजा पाठ करने वाले इंसान ने कैसे इतना बड़ा कदम उठा सकता है. सदर थाना क्षेत्र में अपनी जीवन लीला समाप्त करने वाले एलडीए संविदा कर्मी संतोष के जाने के बाद इलाके में शोक की लहर दौड़ गई है. वहीं एलडीए के अन्य संविदा कर्मी भी परिवार के साथ इस लड़ाई में साथ देने का आश्वासन करते दिखाई दिए.