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अगरबत्ती बनाने और सगंध पौधों की खेती के लिए समझौता ज्ञापन पर किया गया हस्ताक्षर

लखनऊ के सीमैप में अगरबत्ती बनाने की तकनीकी को श्री श्री इंस्टीट्यूट ऑफ एग्रीकल्चर साइन्सेज एंड टेक्नॉलॉजी को ट्रांसफर की गई है. इन फूलों का उपयोग अगरबत्ती तथा कोन बनाने में होगा, जिससे वातावरण भी साफ एवं सुरक्षित होगा तथा आस-पास की महिलाओं को रोजगार भी मिलेगा.

अगरबत्ती बनाने की तकनीक हस्तांतरित
अगरबत्ती बनाने की तकनीक हस्तांतरित

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Published : Dec 18, 2021, 9:42 PM IST

लखनऊ: सीएसआईआर-केन्द्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान (सीएसआईआर-सीमैप), लखनऊ द्वारा सगंधीय पौधों की खेती और उससे अगरबत्ती बनाने की तकनीकी को श्री श्री इंस्टीट्यूट ऑफ एग्रीकल्चर साइन्सेज एंड टेक्नॉलॉजी, बेंगलुरु को शनिवार को हस्तांतरित की गई. प्रौद्योगिकी हस्तांतरण अनुबंध पर सीएसआईआर-सीमैप के प्रशासनिक नियंत्रक, भास्कर ज्योति देउरी और श्री श्री इंस्टीट्यूट ऑफ एग्रीकल्चर साइन्सेज एंड टेक्नॉलॉजी बेंगलुरु की ट्रस्टी श्रीमती अर्चना झा ने हस्ताक्षर किए.

अर्चना झा ने बताया कि यहां पर रहने वाली जन-जातियों को सुगंधित पौधों की खेती तथा उससे निर्मित उत्पादों को बिक्री कर अपनी आय में वृद्धि कर सकते हैं. श्री श्री इंस्टीट्यूट एग्रीकल्चर साइन्सेज एंड टेक्नॉलॉजी के द्वारा इन फूलों का सदुपयोग कर अगरबत्ती, धूपकोन आदि बनाया जाएगा. मंदिरों मे चढ़े फूलों से निर्मित सुगंधित अगरबत्ती एवं कोन पूर्णंतया हर्बल एवं सुगंधित तेलों द्वारा निर्मित होने के कारण इसका शरीर पर कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ता है. अब इन फूलों का उपयोग अगरबत्ती तथा कोन बनाने में होगा, जिससे वातावरण भी साफ एवं सुरक्षित होगा तथा आस-पास की महिलाओं को रोजगार भी मिलेगा.

सीमैप के निदेशक डॉ. प्रबोध कुमार त्रिवेदी ने बताया कि जनजाति के लोगों के द्वारा सुगंधित पौधों की खेती और उनसे निर्मित गुणवत्तायुक्त अगरबत्ती, कोन और गुलाब जल बनाकर अपनी आर्थिक स्थित में सुधार ला सकते हैं. इस मौके पर डॉ. रमेश के. श्रीवास्तव, प्रमुख, व्यापार विकास विभाग तथा श्री भास्कर देउरी, प्रशासनिक नियंत्रक, डॉ. राम सुरेश शर्मा आदि भी मौजूद थे.

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