हैदराबाद: यदि दिल्ली के सिंहासन की चाह है तो फिर उत्तर प्रदेश में राह मजबूत करनी होगी, क्योंकि बिना यूपी जीते दिल्ली मुंगेरीलाल के हसीन सपनों की तरह है. शायद यही वजह है कि तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव इन दिनों एक-दूसरे के समर्थन में बयान दे रहे हैं. ममता कांग्रेस को किनारे कर 2024 की सियासी लड़ाई का नेतृत्व करना चाह रही हैं तो अखिलेश को भी यूपी में ममता का साथ चाहिए. कांग्रेस और बसपा के महिला कार्ड से मुकाबले को सपा में महिला नेतृत्व की कमी का अहसास अब अखिलेश यादव को भी हो रहा है.
रही बात अखिलेश यादव की धर्मपत्नी और पूर्व सांसद डिंपल यादव की तो वे ममता और मायावती की तरह तेज तर्रार नहीं हैं. ऐसे में सपा अध्यक्ष ने तृणमूल कांग्रेस संग गठबंधन की प्लानिंग की है और पार्टी सूत्रों की मानें तो जल्द ही इसकी औपचारिक घोषणा हो सकती है. वहीं, ममता बनर्जी भी अखिलेश के समर्थन में सूबे में जनसभा को संबोधित करती नजर आएंगी. बेशक, अखिलेश यादव साइकिल की रफ्तार को बढ़ा लखनऊ की सत्ता की चाह में सियासी संघर्ष करते नजर आ रहे हो, लेकिन अबकी उन्होंने अपनी पूरी प्लानिंग बंगाल के तर्ज की है. यहां तक कि उनके चुनाव अभियान में भी बंगाल की झलक दिखने को मिल रही है.
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वहीं, बंगाल में दीदी ने आम लोगों से सीधे संवाद कर बड़ी कामयाबी हासिल की. जिसका परिणाम है कि भाजपा को पराजित कर वे सत्ता की हैट्रिक लगाने में सफल रहीं. लेकिन ममता के 'खेला होबे' का यूपी में कितना असर होता है, ये तो वक्त ही बताएगा. लेकिन इतना तय है कि अब दीदी सूबे में अखिलेश यादव के लिए प्रचार करेंगी और उनके साथ जया बच्चन और डिंपल यादव भी होंगी.
सूबे के सियासी जानकारों की मानें तो ममता के प्रचार से अखिलेश को फायदा होगा. कहते हैं कि सियासत भी किसी पंसारी के उस धंधे से कम नहीं है, जहां एक हाथ दे और दूसरे हाथ ले से ही सारा कामकाज चलता है. ऐसे में अगर ममता यूपी में आकर अखिलेश के लिए वोट मांगेंगी तो इसमें उनका भी स्वार्थ जुड़ा हुआ है. क्योंकि 2024 के लोकसभा के चुनावी नतीजों के बाद दिल्ली की गद्दी तक पहुंचने के लिए उन्हें भी सपा के समर्थन की दरकार होगी. अब ये अलग बात है कि तब तक यूपी की क्या तस्वीर बनेगी और सपा कितनी सीटों पर जीत हासिल करेगी.