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लखनऊ: ईरान और इराक से प्राप्त हुए श्रीराम के पदचिन्ह

राम के चरित्र के सांस्कृतिक पदचिन्ह मध्य एशिया के ईरान, इराक से लेकर दक्षिण एशिया और यूरोप व अमेरिका तक प्राप्त हुए हैं. अयोध्या शोध संस्थान ने राम की सांस्कृतिक उपस्थिति के प्रमाण अलग-अलग देशों के इतिहास और संस्कृति से जुटाए हैं.

ईरान और इराक से प्राप्त हुए श्रीराम के पदचिन्ह.

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Published : Nov 13, 2019, 10:33 AM IST

लखनऊ: भगवान श्रीराम और उनकी महागाथा भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के अनेक देशों में सुनी और सुनाई जाती है. राम के चरित्र के सांस्कृतिक पदचिन्ह मध्य एशिया के ईरान, इराक से लेकर दक्षिण एशिया और यूरोप व अमेरिका तक प्राप्त हुए हैं. अयोध्या शोध संस्थान ने राम की विश्व यात्रा में ऐसे तत्वों की खोज की है, जो स्पष्ट करते हैं कि राम का जीवन चरित्र दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में लोगों को प्रभावित और आकर्षित करता रहा है.

ईरान और इराक से प्राप्त हुए श्रीराम के पदचिन्ह.

मध्य एशिया के देशों में मिले हैं श्रीराम की मौजूदगी के प्रमाण

अयोध्या शोध संस्थान ने राम की सांस्कृतिक उपस्थिति के प्रमाण अलग-अलग देशों के इतिहास और संस्कृति से जुटाए हैं. दक्षिण पूर्व एशिया के देशों थाईलैंड, वियतनाम, कंबोडिया ,इंडोनेशिया में राम की छाप तो स्पष्ट तौर पर देखी जाती है, लेकिन मध्य एशिया के देशों ईरान, इराक, सीरिया में राम की मौजूदगी चौंकाने वाली है. इससे भी ज्यादा आश्चर्यजनक है कि ईरान व इराक में राम की जीवन गाथा के प्रमाण ईसा के 4,000 से लेकर साढे चार हजार साल पुराने हैं.

दुनिया के कई देशों में पहुंची है श्रीराम की गाथा

ईसा से डेढ़ हजार साल पहले सीरिया में एक ऐसे राजपरिवार का उल्लेख मिलता है, जिसमें पिता का नाम दशरथ और चार पुत्रों के नाम राम, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न है. इसी तरह से यूरोपीय देशों में और मध्य अमेरिका के देश होंडुरास में भी राम और हनुमान की उपस्थिति दर्ज है. सांस्कृतिक जीवन मूल्यों और पुरातात्विक प्रमाण के आधार पर अब साफ तौर पर माना जा रहा है कि राम की महागाथा दुनिया के अलग-अलग देशों और हिस्सों में समय-समय पर पहुंचती रही है. अलग-अलग कालखंड में लोगों ने राम की महागाथा से प्रेरणा ली और इसे अपने सांस्कृतिक जीवन का अभिन्न और महत्वपूर्ण तत्व माना है.

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