गोरखपुर :हर साल ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को गंगा दशहरा पर्व पड़ता है. इस साल 20 जून को यह तिथि पड़ रही है. पुराणों की मान्यता के अनुसार इसी तिथि को गंगा जी का अवतरण पृथ्वी पर हुआ था. ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को संवत्सर का मुख माना जाता है. इस दिन गंगा नदी में स्नान, दान और उपवास का बहुत महत्व है. यदि गंगा नदी तक नहीं जा सकते हैं तो घर पर ही गंगा जल डालकर स्नान करने और अर्चन से भी पूर्ण फल की प्राप्ति होती है. ब्रह्मपुराण में कहा गया है कि हस्त नक्षत्र से संयुक्त शुक्ल दशमी, 10 प्रकार के पापों को हरने के कारण दशहरा कहलाती है.
इन 10 पापों का होता हैं नाश-
- बिना दी हुई वस्तु को लेना
- निषिद्ध हिंसा
- परस्त्री संगम
- कठोर वचन मुँह से निकालना
- झूठ बोलना
- सब ओर चुगली करना
- वाणी द्वारा मन को दुखाना
- दूसरे के धन को लेने का विचार करना
- मन से किसी का बुरा सोचना
- असत्य वस्तुओं में आग्रह रखना
स्कन्दपुराण में कहा गया है कि- "ज्येष्ठे मासि सिते पक्षे दशम्यां बुधहस्तयोः । व्यतीपाते गरानन्दे कन्या चन्द्रे वृषे रवौ । दशयोगे नरः स्नानात्वा सर्वपापैः प्रमुच्यते ।।" अर्थात ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को बुधवार हो, हस्त नक्षत्र हो, व्यतिपात योग हो, गर करण हो, आनन्द नाम औदायिक योग हो, सूर्य वृषभ राशि और चन्द्रमा कन्या राशि में हो तो ऐसा अभूतपूर्व योग महाफलदायक होता है. जिसमें व्यक्ति के सभी पाप समाप्त हो जाते हैं.
ज्योतिषचार्य पंडित शरद चंद्र मिश्र ने कहा है कि यदि सम्भव हो तो उक्त मन्त्र में नमः के स्थान पर स्वाहा लगाकर हवन भी करें. जिसके बाद - "नमो भगवति ऐं ह्रीं श्रीं हिलि-हिलि मिलि-मिलि गंगे मां पावय-पावय स्वाहा"- इस मन्त्र से पांच पुष्पांजलि अर्पण करके गंगा जी को पृथ्वी पर अवतरित करने वाले भगीरथ जी का और हिमालय का पूजन करना चाहिए. अन्त में दस-दस मुट्ठी अनाज ब्राह्मणों को अर्पित करना चाहिए. इस दिन सत्तू का भी दान किया जाता है. साथ ही गंगा दशहरा की कथा सुनकर ही व्रत खोलना चाहिए.
व्रत करने की विधि…
प्रातः काल उठकर सामान्य तौर पर स्नान कर इस पर्व के लिए संकल्प करे- "अमुक गोत्र अमुक नामाहं मम दशविध पापक्षयार्थं गंगादशहरा निमित्तकं अमुक तीर्थे वा गृहे स्नानं करिष्ये।"- यदि गंगा जी न उपलब्ध हों तो किसी भी पुण्यसलिला नदी में और इनकी भी उपलब्धि न हो तो घर पर गंगाजल मिलाकर स्नान करें. तदुपरान्त गंगा जी का पूजन करना चाहिए. यदि नदी में स्नान कर रहे हैं तो 10 गोते लगाएं. सूखे वस्त्र पहनकर पितृतर्पण करें. पुनः 10 मुट्ठी कालातिल अंजलि में लेकर नदी में प्रवाहित करें. घर पर हैं तो दान करें. इसी तरह गुड़ और सत्तू को प्रवाहित करें या दान करें. इसके पश्चात गंगा जी की पूजा निम्न मन्त्र से करें- "नमो भगवत्यै दशपापहरायै गंगायै नारायण्यै रेवत्यै।शिवायै अमृतायै विश्वरूपिण्यै नन्दिन्यै ते नमः।।"पुनः अपने दशविध पापों के प्रमशन के लिए गंगा जी की प्रार्थना करें व पूजा के अनन्तर दीपदान भी करें.
गंगा अवतरण से जुड़ी है यह कथा
अयोध्या के राजा महाराज सगर अपने साठ हजार पुत्रों की उद्दण्डता एवं दुष्ट प्रकृति से दुःखी थे. फलतः अपने पुत्र असमंजस अथवा अन्य पुत्रों के स्थान पर अपने पौत्र अंशुमान को अपना उत्तराधिकारी बनाया. जब महाराज सगर ने यज्ञ किया तब इन्द्र ने अश्वमेध के घोड़े को पाताल लोक में ले जाकर कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया. कपिल मुनि उस समय ध्यानमग्न थे. उन्हें इस बात का पता ही नहीं चला कि महाराज सगर का अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा उनके आश्रम में बंधा हुआ है. जब सगर के साठ हजार पुत्रों को इसका पता चला कि कपिल के आश्रम में घोड़ा बंधा हुआ है तो वे कपिल मुनि को मारने के लिए गये. कपिल मुनि ने अपने तेज से सगर के साठ हजार पुत्रों को भष्म कर दिया.