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Ganga Dussehra 2021: गंगा दशहरा पर करें इन मंत्रों का जाप, इन 10 पापों से मिलेगी मुक्ति

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Published : Jun 19, 2021, 7:16 PM IST

ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को गंगा दशहरा पर्व मनाया जाता है. इस बार 20 जून दिन रविवार को गंगा दशहरा का पर्व है. आज के दिन गंगा स्नान और दान का बड़ा महात्व है. कहा जाता है कि इस दिन गंगा स्नान के बाद दान करने पर पुण्य की प्राप्ति होती है.

Ganga Dussehra 2021
Ganga Dussehra 2021

गोरखपुर :हर साल ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को गंगा दशहरा पर्व पड़ता है. इस साल 20 जून को यह तिथि पड़ रही है. पुराणों की मान्यता के अनुसार इसी तिथि को गंगा जी का अवतरण पृथ्वी पर हुआ था. ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को संवत्सर का मुख माना जाता है. इस दिन गंगा नदी में स्नान, दान और उपवास का बहुत महत्व है. यदि गंगा नदी तक नहीं जा सकते हैं तो घर पर ही गंगा जल डालकर स्नान करने और अर्चन से भी पूर्ण फल की प्राप्ति होती है. ब्रह्मपुराण में कहा गया है कि हस्त नक्षत्र से संयुक्त शुक्ल दशमी, 10 प्रकार के पापों को हरने के कारण दशहरा कहलाती है.

इन 10 पापों का होता हैं नाश-

  • बिना दी हुई वस्तु को लेना
  • निषिद्ध हिंसा
  • परस्त्री संगम
  • कठोर वचन मुँह से निकालना
  • झूठ बोलना
  • सब ओर चुगली करना
  • वाणी द्वारा मन को दुखाना
  • दूसरे के धन को लेने का विचार करना
  • मन से किसी का बुरा सोचना
  • असत्य वस्तुओं में आग्रह रखना

स्कन्दपुराण में कहा गया है कि- "ज्येष्ठे मासि सिते पक्षे दशम्यां बुधहस्तयोः । व्यतीपाते गरानन्दे कन्या चन्द्रे वृषे रवौ । दशयोगे नरः स्नानात्वा सर्वपापैः प्रमुच्यते ।।" अर्थात ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को बुधवार हो, हस्त नक्षत्र हो, व्यतिपात योग हो, गर करण हो, आनन्द नाम औदायिक योग हो, सूर्य वृषभ राशि और चन्द्रमा कन्या राशि में हो तो ऐसा अभूतपूर्व योग महाफलदायक होता है. जिसमें व्यक्ति के सभी पाप समाप्त हो जाते हैं.


ज्योतिषचार्य पंडित शरद चंद्र मिश्र ने कहा है कि यदि सम्भव हो तो उक्त मन्त्र में नमः के स्थान पर स्वाहा लगाकर हवन भी करें. जिसके बाद - "नमो भगवति ऐं ह्रीं श्रीं हिलि-हिलि मिलि-मिलि गंगे मां पावय-पावय स्वाहा"- इस मन्त्र से पांच पुष्पांजलि अर्पण करके गंगा जी को पृथ्वी पर अवतरित करने वाले भगीरथ जी का और हिमालय का पूजन करना चाहिए. अन्त में दस-दस मुट्ठी अनाज ब्राह्मणों को अर्पित करना चाहिए. इस दिन सत्तू का भी दान किया जाता है. साथ ही गंगा दशहरा की कथा सुनकर ही व्रत खोलना चाहिए.

व्रत करने की विधि…

प्रातः काल उठकर सामान्य तौर पर स्नान कर इस पर्व के लिए संकल्प करे- "अमुक गोत्र अमुक नामाहं मम दशविध पापक्षयार्थं गंगादशहरा निमित्तकं अमुक तीर्थे वा गृहे स्नानं करिष्ये।"- यदि गंगा जी न उपलब्ध हों तो किसी भी पुण्यसलिला नदी में और इनकी भी उपलब्धि न हो तो घर पर गंगाजल मिलाकर स्नान करें. तदुपरान्त गंगा जी का पूजन करना चाहिए. यदि नदी में स्नान कर रहे हैं तो 10 गोते लगाएं. सूखे वस्त्र पहनकर पितृतर्पण करें. पुनः 10 मुट्ठी कालातिल अंजलि में लेकर नदी में प्रवाहित करें. घर पर हैं तो दान करें. इसी तरह गुड़ और सत्तू को प्रवाहित करें या दान करें. इसके पश्चात गंगा जी की पूजा निम्न मन्त्र से करें- "नमो भगवत्यै दशपापहरायै गंगायै नारायण्यै रेवत्यै।शिवायै अमृतायै विश्वरूपिण्यै नन्दिन्यै ते नमः।।"पुनः अपने दशविध पापों के प्रमशन के लिए गंगा जी की प्रार्थना करें व पूजा के अनन्तर दीपदान भी करें.

गंगा अवतरण से जुड़ी है यह कथा

अयोध्या के राजा महाराज सगर अपने साठ हजार पुत्रों की उद्दण्डता एवं दुष्ट प्रकृति से दुःखी थे. फलतः अपने पुत्र असमंजस अथवा अन्य पुत्रों के स्थान पर अपने पौत्र अंशुमान को अपना उत्तराधिकारी बनाया. जब महाराज सगर ने यज्ञ किया तब इन्द्र ने अश्वमेध के घोड़े को पाताल लोक में ले जाकर कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया. कपिल मुनि उस समय ध्यानमग्न थे. उन्हें इस बात का पता ही नहीं चला कि महाराज सगर का अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा उनके आश्रम में बंधा हुआ है. जब सगर के साठ हजार पुत्रों को इसका पता चला कि कपिल के आश्रम में घोड़ा बंधा हुआ है तो वे कपिल मुनि को मारने के लिए गये. कपिल मुनि ने अपने तेज से सगर के साठ हजार पुत्रों को भष्म कर दिया.

अंशुमान को जब इस बात का पता चला तो, उसने कपिल मुनि से प्रार्थना की. अंशुमान की प्रार्थना से प्रसन्न होकर कपिल मुनि ने यज्ञ का घोड़ा वापस कर दिया. तथा कहा कि गंगाजल के स्पर्श से सगर के साठ हजार पुत्रों की मुक्ति हो सकती है. महाराजा सगर का अश्वमेध यज्ञ सम्पन्न हुआ. कुछ समय पश्चात सगर ने अंशुमान को राज्यपद दे दिया, किन्तु अंशुमान अपने चाचाओं की मुक्तिक के लिए चिन्तित थे. इसलिए कुछ समय पश्चात अपने राज्य को अपने पुत्र दिलीप को सौंपकर पृथ्वी पर गंगा जी को लाने के उद्देश्य से तपस्या करने के लिए वन में चले गये. तपस्या करते हुए उन्होंने अपने प्राण त्याग दिये, किन्तु पृथ्वी पर गंगा का अवतरण न हो पाया.

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कालान्तर में दिलीप अपने पुत्र भगीरथ को राजगद्दी सौंपकर पृथ्वी पर गंगा जी को लाने के लिए तपस्या करने के लिए चल दिये. उन्होंने मृत्युपर्यन्त तपस्या की, किन्तु पृथ्वी पर गंगा का अवतरण न हो सका. राजा दिलीप के पश्चात राजा बने भगीरथ ने भी अपने पिता की भांति स्वर्ग से गंगा लाने के लिए ब्रह्मा जी की तपस्या की. अन्त में तीन पीढ़ियों की तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने भगीरथ को दर्शन दिया और वर मांगने के लिए कहा. भगीरथ ने पृथ्वी पर गंगा जी के अवतरण की बात की. इस पर ब्रह्मा जी ने कहा कि मैं गंगा जी को स्वर्ग से पृथ्वी पर भेज तो सकता हूं, किन्तु पथ्वी पर उनके वेग को कौन सम्भालेगा ? इसके लिए तुम्हे भगवान शिव की उपासना करनी चाहिए. ब्रह्मा जी के परामर्श के अनुसार भगीरथ ने एक पैर पर खड़े होकर शिव की तपस्या की. भगीरथ की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव गंगा जी के वेग को सम्भालने के लिऐ तैयार हो गये. तब पृथ्वी पर गंगा जी का अवतरण हुआ. भगवान शिव ने गंगा को अपनी जटाओं में रोक लिया और उसमें से एक जटा को पृथ्वी पर छोड़ दिया. इस प्रकार गंगा जी पृथ्वी पर आयीं. फिर आगे-आगे राजा भगीरथ पीछे-पीछे गंगा जी थीं. वह कपिल मुनि के आश्रम में पहुंची और सगर के साठ हजार पुत्रों को मुक्ति प्राप्त हुई.

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