फर्रुखाबादः ब्लॉक प्रिंटिंग कला के इस स्वरूप में कारीगर लकड़ी के बने खांचे का उपयोग कर कपड़े पर सुंदर डिजाइन बनाते हैं, लेकिन हाथ से तैयार होने वाली यह कला अब दम तोड़ती नजर आती है. इस कला के समाप्त होने के कगार पर पहुंचने के कई कारण हैं. उद्यमी संजय सिंह कहते हैं कि एक तरफ जहां शहर में बढ़ते प्रदूषण को ध्यान में रखते हुए केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने शहर में काम कर रही टेक्सटाइल इकाइयों को शहर से बाहर ले जाने के निर्देश दिए थे तो वहीं टेक्सटाइल उद्योग को प्रदूषण नियंत्रण करने के संबंध में बार-बार नोटिस मिले. इससे उद्यमी परेशान हैं.
आलू पर डिजाइन गोद कर होती थी छपाई
फर्रुखाबाद टेक्सटाइल्स पार्क प्रा. लिमिटेड के प्रबंध निदेशक रोहित गोयल कहते हैं कि प्रारम्भ में पहले आलू पर डिजाइन गोद कर प्राकृतिक रंगों में चादरों की छपाई होती थी, जो कि बाद में ब्लॉक प्रिंट में परिवर्तित हो गई. इसके बाद 70 के दशक से स्क्रिन प्रिंटिंग का काम भी शुरू हो गया, जो अब तक चल रहा है. पर्दों व बेड शीट की छपाई होती थी. रजाई की लिहाफ, कॉटन व सिल्क की साड़ियां यहां प्रिंट होती थीं, जिसकी सप्लाई पूरे भारत में की जाती थी.