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हिंदी काव्य के रचयिता 'हरिऔध' को उन्हीं के जनपदवासियों ने भुला दिया

यूपी के आजमगढ़ में लोगों ने हिंदी महाकाव्य के रचयिता अयोध्या सिंह 'हरिऔध' को भुला दिया है. उनसे जुड़ी एक भी वस्तु को संग्रहित नहीं किया गया. यहां तक जिले में उनकी एक अदद प्रतिमा भी स्थापित नहीं हो सकी.

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Published : Sep 14, 2019, 9:41 PM IST

अयोध्या सिंह उपाध्याय (फाइल फोटो)

आजमगढ़:हिंदी महाकाव्य के रचयिता अयोध्या सिंह 'हरिऔध' जिन्होंने आजमगढ़ ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में अपनी बहुमुखी प्रतिभा की छाप छोड़ी थी. हिंदी साहित्य में इतनी ख्याति प्राप्त करने के बाद भी जिले में हरिऔध हमेशा उदासीनता का शिकार हुये. उनसे जुड़ी एक भी वस्तु को संग्रहित नहीं किया गया. यहां तक जिले में उनकी एक अदद प्रतिमा भी स्थापित नहीं हो सकी.

जानकारी देते अयोध्या सिंह 'हरिऔध' के पड़ोसी.

हिंदी महाकाव्य के रचयिता अयोध्या सिंह 'हरिऔध' की बहुमुखी छाप
अयोध्या सिंह 'हरिऔध' का जन्म 1865 में उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के निजामाबाद नामक स्थान में हुआ था. उनके पिता का नाम पंडित भोलानाथ उपाध्याय था जिन्होंने सिख धर्म अपनाकर अपना नाम भोला सिंह रख लिया. इनके पूर्वजों का मुगल दरबार में बड़ा सम्मान था. इनकी प्रारंभिक शिक्षा निजामाबाद और आजमगढ़ में हुई. 5 वर्ष की अवस्था में इन्होंने फारसी पढ़ना भी शुरू कर दिया था.

हरिऔध जी सरकारी नौकरी मिलने के बाद कानूनगो बन गये. काशी हिंदू विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में अवैतनिक शिक्षक के रूप में कई वर्षों तक अध्यापन का कार्य किया. यहां से सेवानिवृत्ति लेकर हरिऔध जी अपने गांव लौट आये. इसके बाद उन्होंने कई साहित्यिक रचनाएं लिखीं और काफी ख्याति अर्जित की. हिंदी साहित्य सम्मेलन में उन्हें दो बार सम्मेलन का सभापति बनाया गया और विद्या वाचस्पति की उपाधि से सम्मानित किया गया.

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अयोध्या सिंह 'हरिऔध' अपने ही गृह जनपद में हुए बदहाली के शिकार

  • हिंदी महाकाव्य के रचयिता अयोध्या सिंह 'हरिऔध' ने आज़मगढ़ ही नहीं पूरे विश्व में अपनी बहुमुखी प्रतिभा की छाप छोड़ी थी.
  • आज वो अपने ही गृह जनपद में बदहाली का शिकार हो गये.
  • जिस मकान में रहते थे वह खंडहर में तब्दील होकर गिर गया.
  • वहीं उनके नाम से जिले में एक कला भवन बनाया गया, जिसकी हालत आज भी दयनीय है.
  • इतना ही नहीं इतनी ख्याति के बाद भी जिले में उनकी एक अदद प्रतिमा भी स्थापित नहीं हो पाई.
  • उनसे जुड़ी एक भी वस्तु को संग्रहित नहीं किया गया, यहां तक जिले में उनकी एक अदद प्रतिमा भी स्थापित नहीं हो सकी.

यह आज़मगढ़ का दुर्भाग्य है कि इतनी ख्याति प्राप्त हरिऔध जी का यहां कोई सम्मान नहीं हुआ. यहां के कलाकारों ने भी किसी प्रकार की मांग नहीं की.
-राधामोहन, पड़ोसी

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