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अयोध्या के दो विशेष मंदिर, जहां गर्भगृह में रहता है अंधेरा

उत्तर प्रदेश के अयोध्या में दो ऐसे गर्भगृह हैं, जहां रात के समय अंधेरा रहता है. साथ ही यहां दक्षिण परंपरा के हिसाब से ही पूजा की जाती है.

गर्भगृह में रहता है अंधेरा
गर्भगृह में रहता है अंधेरा

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Published : Jul 31, 2020, 11:58 AM IST

Updated : Jul 31, 2020, 4:54 PM IST

अयोध्या: राम नगरी पौराणिक स्थल होने के साथ मंदिरों का शहर है. इस नगर में कई विशिष्ट मंदिर हैं, जिनकी अपनी अलग पहचान है. यहां मंदिर ऐसे हैं जहां शाम होते ही गर्भगृह में अंधेरा छा जाता है. साथ ही अपनी विशेष मान्यता के चलते इन मंदिरों में आज तक गर्भगृह में रात के समय लाइट भी नहीं जलाई जाती है.

जानकारी देते पुजारी वेंकटाचार्य स्वामी.

5 अगस्त को होगा भूमि पूजन
9 नवंबर 2019 को अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद एक भव्य अयोध्या बनाने के लिए केंद्र और प्रदेश सरकार की कई योजनाएं प्रस्तावित हैं. 5 अगस्त को भगवान राम के जन्म स्थान पर राम मंदिर निर्माण की शुरुआत होने के साथ अयोध्या में एक नई सुबह का आगाज होगा. उत्तर प्रदेश का अयोध्या अति प्राचीन धार्मिक नगर है.

मंदिरों की नगरी अयोध्या
पौराणिक मान्यता के अनुसार सरयू नदी के तट पर बसे इस नगर पर सूर्यवंश और रघुवंश के राजाओं का राज्य हुआ करता था. यह नगर सप्तपुरियों में से एक है. राम नगरी अपनी एक अलग पहचान रखती है. पूरी अयोध्या में 5 हजार से अधिक मंदिर हैं. यहां पुराने घर भी मंदिरों जैसे दिखते हैं. नगर वासियों की सुबह रामधुन के साथ होती है.

दो मंदिरों में होती है दक्षिणी परंपरा से होती है पूजा
अयोध्या में विजय राघव मंदिर और अम्मा जी ऐसे दो मंदिर हैं, जहां गर्व गृह में शाम होते ही अंधेरा हो जाता है. इन मंदिरों के गर्भगृह में रात्रि के समय प्रकाश की व्यवस्था नहीं की जाती. वैसे रामलला के दर्शन करने के लिए अयोध्या में लोग देश-विदेश से आते हैं, लेकिन यहां के दोनों मंदिरों की विशेषता शायद कम लोग ही जानते हैं. दक्षिण पंथ का विजय राघव मंदिर और अम्मा जी मंदिर ऐसा मंदिर है, जहां दक्षिण भारत परंपरा के अनुरूप पूजा-पाठ होता है. इन मंदिरों के गर्भगृह में शाम ढलते ही अंधेरा हो जाता है.अम्माजी मंदिर के पुजारी वेंकटाचार्य स्वामी बताते हैं कि यह मंदिर 100 वर्ष पहले अयोध्या में स्थापित किया गया था.


मंदिर के गर्भगृह में स्थापित विग्रह को गर्भस्थ शिशु माना जाता है. गर्भस्थ शिशु पर बाहरी प्रकाश पड़ने से उस पर दुष्प्रभाव पड़ सकता है. जिस प्रकार गर्भ गर्भवती महिला का एक्स रे और सीटी स्कैन कराने से चिकित्सक परहेज करने की सलाह देते हैं वैसे ही यहां मंदिर के गर्भगृह में लाइट नहीं जलाई जाती. वेंकटाचार्य स्वामी बताते हैं कि दक्षिण भारत में भी इस परंपरा के जितने भी मंदिर हैं वहां गर्भ गृह के अंदर लाइट नहीं जलती.वहीं दूसरा मंदिर विभीषण कुंड मोहल्ले में है. यह मंदिर वर्ष 1954 में स्थापित हुआ था. इस मंदिर के महंत श्री धराचार्य जी हैं. मंदिर में पिछले 15 वर्षों से अखंड राम नाम संकीर्तन चल रहा है. यहां भगवान को गर्भस्थ शिशु मानकर गर्भगृह में रात में प्रकाश की व्यवस्था नहीं की जाती. महंत श्री धराचार्य का कहना है कि गर्भगृह में श्री राम भगवान को कोई तकलीफ न हो इसलिए अब तक लाइट नहीं लगवाई गई. उनका कहना है कि विद्युत प्रकाश की व्यवस्था अति प्राचीन नहीं है.


अम्माजी मंदिर में कुएं के पानी का होता है प्रयोग
अम्माजी मंदिर के पुजारी वेंकटाचार्य स्वामी कहते हैं कि वे लोग अब भी बिजली के पंप का पानी नहीं पीते हैं कुएं के पानी का प्रयोग करते हैं. अम्माजी मंदिर में भगवान के प्रकट्योत्सव में उनका श्रृंगार अशोक की पत्तियों और फूलों से करते हैं. इलेक्ट्रिक बल्ब की झालर नहीं लगाई जाती है.

Last Updated : Jul 31, 2020, 4:54 PM IST

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