अलीगढ़:किसान खेती करता है. फसल की रोपाई से पहले क्यारी बनाने और फिर खेत तैयार करने में खर्च के साथ-साथ मेहनत भी लगती है. अब इसमें भी अगर उन्हें उचित दाम पर अनाज बेचने का मौका न मिले, तो किसानों को अपनी लागत निकालनी भी मुश्किल हो जाती है. कोरोना संकट में अलिगढ़ जिले के किसानों की भी हालत कुछ ऐसी ही है. अनाज मंडी जाने को तैयार हो चुके हैं, लेकिन इनकी कीमत जानकर किसानों के पैरो तले जमीन खिसक गई है. ऐसे में फसल से लाभ कमाना तो दूर लागत निकाल पाना भी मुश्किल हो गया है.
प्रदेश की सरकार ने किसानों के फसल के वाजिब दाम का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय कर रखा है. लेकिन मक्का और बाजरा पैदा करने वाले किसान मायूस हैं. क्योंकि उन्हें फसल का न्यूनतम मूल्य भी नहीं मिल रहा है. मंडी में मक्के का मूल्य 1000 रुपये कुंतल है. वहीं बाजरों में इनकी कीमत 1300 रुपये कुंतल है. जबकि सरकार ने एमएसपी (मिनीमम सप्रोर्ट प्राइस) मक्के का 1850 रुपये कुंतल और बाजरे का 2150 रुपये कुंतल तय किया हुआ है. लेकिन लॉकडाउन के कारण औने-पौने दामों में किसान को फसल बेचनी पड़ा रही है. अब ये किसान मक्का-बाजरा बेच कर हुई आमदनी से खेतों में आगे की बुआई करना चाहते हैं. लेकिन आलम यह है कि कोरोना संकट के दौर में किसानों को फसल का सरकारी दाम भी नहीं मिल पा रहा.
कम दाम पर मक्का बेचने को किसान हुए मजबूर
किसानों को छर्रा, अतरौली, खैर और अलीगढ़ मंडी में मक्का करीब 1000 रुपये कुंतल में ही बेचनी पड़ रही है. जबकि समर्थन मूल्य 1850 रुपये कुंतल है. लेकिन किसान इसे बाजारों में 1300 रुपये और मंडी में 1000 रुपये में ही बेचने को मजबूर हैं. सरकारी रेट से यदि तुलना की जाए तो दोनों दामों में जमीन आसमान का फर्क है. जिले में किसान ट्रैक्टर-ट्रालियों व गाड़ियों में मक्का और बाजरा भर कर सरकारी दाम मिलने की आस में मंडी पहुंच रहे हैं.
लॉकडाउन की मार झेल रहे किसानों
मंडी में अनाज का भाव सुन किसानों के होश उड़ जा रहे. पहले से लॉकडाउन की मार झेल रहे मजबूर किसानों को अब फसल का उचित दाम न मिलना भी सताने लगा है. सबसे बड़ी बात यह है कि जिले के मंडियों में मक्का-बाजरा की बिक्री के लिए सरकारी खरीद केन्द्र भी नहीं बनाए गए हैं. जबकि जिले में बड़े स्तर पर मक्का-बाजरा की पैदावार होती है.