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सरेंधी में होती है अलग तरह की होली, 700 साल से चल रही परंपरा

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Published : Mar 29, 2021, 11:08 PM IST

आगरा जिले के जगनेर के गांव सरैंधी में होली पर अलग तरह का आयोजन होता है. यहां एक विशेष खेल झू का आयोजन होता है. यह परंपरा 700 साल पुरानी है.

आगरा
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आगरा: हिन्दुओं के प्रमुख त्योहारों में होली का पावन पर्व अपने आप में एक अनोखा है. इस पर्व को भारत के कोने-कोने में मनाया जाता है. हालांकि कान्हा की नगरी मथुरा में बृजवासियों की होली प्रसिद्ध है लेकिन आज हम आपको आगरा की एक विशेष होली के बारे में बताते हैं. हम आज बात कर रहे हैं आगरा जिले के जगनेर के गांव सरैंधी की.

700 साल से चल रही परंपरा

क्षेत्र की पुरानी किवदंती
किदवंती के अनुसार धारा उज्जैन नगरी से आए बाबा लाखन सिंह ने करीब 700 वर्ष पूर्व सरैंधी को बसाया था. बाद में वे अचलम बाबा को यहां का जागीरदार नियुक्त कर गए. सिंगाइच के लिए सोम बाबा को नियुक्त किया, जिनके नाम पर सिंगाइच पड़ा. बड़ा गांव होने के कारण गांव में चौबीस थोक मोहल्ले हैं, जिन्हें छ: पार्टियों (टीकैत पार्टी, लौहरी पार्टी, बढ़ी पार्टी, थोक हवेली, चौक, तिहाय के नाम) के रूप में भी जाना जाता है. होली की पड़वा वाले दिन सुबह गांव के लोग रंग, गुलाल, धूल की होली खेलने के बाद अपने-अपने घरों में जाकर नहा धोकर तैयार हो जाते हैं. इसके बाद गांव का नट ढोल नगाड़ों से ड्यौंढ़ी पीटता हुआ संपूर्ण गांव की परिक्रमा लगाते हुए चक्कर लगाता है. उसके पीछे-पीछे गांव के युवा, लोग लगोंटी बांधकर एकत्रित होते हुए क्रमबद्व जुड़ते चले जाते हैं, जो गांव के बीच में जाकर अचलम बाबा के दरबार में एकत्रित हो जाते हैं. अचलम बाबा के दरबार के पास बने एक गेट में दो गुटों में बंट जाते हैं. दोनों गुट शक्ति प्रदर्शन के माध्यम से एक विशेष प्रकार के खेल झू के द्वारा तीन बार उस गेट के नीचे से निकलकर दूसरी तरफ जाने की कोशिश करते हैं. इस प्रकार यह अनोखा खेल तीन बार होता है. इसमें गुट को विजयी होने के लिए दो बार गेट में से निकलना होता है. सामने वाला गुट एक दूसरे को रोकने के लिए भरकस प्रयास करता है. इस खेल को देखने के लिए गांव के लोगों के अलावा आस-पास के गांवों के नागरिक भी पहुंचते हैं. नीचे दरबार में प्रतियोगिता में भाग ले रहे पहलवानों के ऊपर मंच पर बैठे नागरिक उत्साहवर्धन के लिए पानी की वर्षा करते हैं. इसे बाबा अचलम का आर्शीवाद माना जाता है।

अचलम बाबा के दरबार को मामदेव के नाम से भी जानते हैं
ग्रामीणों के अनुसार बाबा अचलम दरबार के सीधे हाथ की तरफ एक गहरा कुआं था, जिसमें काफी समय पहले मामा-भांजे आपस में लड़ते-लड़ते गिर गए थे. वर्तमान समय में कुएं को ढककर एक चबूतरा बना दिया गया है. लोगों का दावा है कि प्रतियोगिता के दौरान कुछ लोगों को कुएं से आज भी आवाजें सुनाई देती हैं. इसके कारण इस स्थान को मामदेव के नाम से भी जाना जाने लगा है.

सदियों पुरानी परंपरा को आज भी निभा रहे ग्रामीण
जानकारी के अनुसार मथुरा में जनहानि के कारण इस झू प्रतियोगिता पर पाबंदी है, लेकिन सरैंधी में प्रतियोगिता के दौरान शक्ति प्रदर्शन में अभी तक किसी प्रकार की कोई हानि नहीं हुई जिसके कारण प्रति वर्ष होता है प्रतियोगिता का आयोजन.

दौज के दिन दरबार में लगती है गद्दी
दौज वाले दिन शाम को बाबा अचलम के दरबार में 55 वर्षीय वीरेन्द्र सिंह गद्दी पर बैठते हैं, जिन्हे राजा के नाम से पुकारा जाता है. दरबार में गांव के गणमान्य नागरिकों के साथ प्रधान आदि भाग लेते हैं. इसमें गांव के विकास कार्यों से लेकर प्रत्येक मुद्दे पर विस्तार से अपने-अपने विचार प्रकट कर एक वर्ष की रूपरेखा तैयार की जाती है.

दौज के दिन दरबार में लगती है 24 चौपाल
झू के आयोजन के बाद दूसरे दिन दौज पर राजा के दरबार के आगे गांव में रहने वाली 24 जातियों के लोगों की अलग-अलग 24 चौपाल लगती हैं, जिनके सभी के स्थान चिह्नित हैं. चौपाल में सभी राजा के आदेश का पालन करते हैं.

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निकासी से पहले और गृह प्रवेश से पहले दूल्हा-दुल्हन लेते हैं आशीर्वाद
मान्यता के अनुसार हिन्दू धर्म के किसी भी परिवार में दूल्हा निकासी के दौरान बाबा अचलम के मंदिर में और शादी के बाद दुल्हन के साथ आशीर्वाद लेने जाता है.

राजाजी करते हैं रतुआ बीमारी का इलाज
बाबा अचलम के आशीर्वाद से राजा वीरेंद्र सिंह प्रत्येक शुक्रवार और शनिवार सुबह ब्रहममुहूर्त में रतुआ नामक बीमारी (सिर में फोड़ा) का इलाज इलाज करते हैं.

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