आगरा: 24 जुलाई साल 1999 के दिन आगरा जिले के वीर सपूत 5 पैरा बटालियन में तैनात हवलदार मोहन सिंह राजपूत ने करगिल में अपनी शहादत दी थी. उनके बलिदान को 20 साल बीत चुके हैं, लेकिन आज भी करगिल और मोहन सिंह का नाम जुबान पर आते ही परिवार की आंखें नम हो जाती हैं. सभी के चेहरे मुरझा जाते हैं और दिमाग में मोहन सिंह राजपूत के अदम्य साहस और शौर्य की कहानियां घूमने लगती हैं. शहीद मोहन सिंह राजपूत की पत्नी ओमवती भी अब इस दुनिया में नहीं हैं.
शहीद की पुत्रवधु शिवानी राजपूत पत्नी स्वर्गीय दिनेश कुमार राजपूत से जब सेना मेडल से सम्मानित मोहन सिंह राजपूत के बारे में पूछा तो उनकी आंखें भर आईं. शिवानी ने बाताया कि जब ससुर शहीद हुए तब उसकी शादी भी नहीं हुई थी. ससुर बड़ी ननद कमलेश की शादी कर गए थे. ननद पूमन और पति दिनेश कुमार राजपूत की शादी सास ओमवती ने की. देवर रूपेश कुमार राजपूत और छोटी ननद अंजना राजपूत अभी अविवाहित हैं.
पत्र से पहले घर आया पार्थिव शरीर
जब शिवानी शादी के बाद घर आईं तो सास ओमवती ने उनसे कई बार ससुर मोहन सिंह राजपूत की अदम्य साहस और वीरता की कहानियां बताई थीं. उनका कहना था कि मोहन सिंह राजपूत बहुत ही निडर और साहसी थे. करगिल युद्ध जीत को लेकर मोहन सिंह ने एक पत्र भी पत्नी और परिवार के नाम लिखा था. जिसमें कारगिल पर फतह की बात लिखी थी. मगर पत्र आने से पहले ही उनका पार्थिव शरीर कारगिल से आया. घर में कोहराम मच गया. फिर तीन दिन बाद उनका लिखा पत्र आया. जिसमें लिखा था कि 'हम कारगिल का युद्ध जीत गए हैं. कोई घबराने की बात नहीं है. मैं पहाड़ी से नीचे आ रहा हूं. जल्द ही घर आउंगा. हम सब ने करगिल की चोटी पर झंडा फहराया है'.
परिजनों को मिली थी सरकारी मदद