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विजय दिवस: आगरा के लाल ने छुड़ाए थे दुश्मनों के छक्के, पत्र से पहले घर आया पार्थिव शरीर

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Published : Jul 24, 2019, 11:53 PM IST

उत्तर प्रदेश के आगरा जिले के सेना मेडल से सम्मानित शहीद मोहन सिंह राजपूत की पुत्रवधू शिवानी राजपूत के जेहन में 24 जुलाई की पूरी घटना आज भी ताजा है. ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान उन्होंने शहीद मोहन सिंह से जुड़ीं तमाम बातें साझा कीं.

शहीद मोहन सिंह राजपूत के अदम्य साहस की कहानियां.

आगरा: 24 जुलाई साल 1999 के दिन आगरा जिले के वीर सपूत 5 पैरा बटालियन में तैनात हवलदार मोहन सिंह राजपूत ने करगिल में अपनी शहादत दी थी. उनके बलिदान को 20 साल बीत चुके हैं, लेकिन आज भी करगिल और मोहन सिंह का नाम जुबान पर आते ही परिवार की आंखें नम हो जाती हैं. सभी के चेहरे मुरझा जाते हैं और दिमाग में मोहन सिंह राजपूत के अदम्य साहस और शौर्य की कहानियां घूमने लगती हैं. शहीद मोहन सिंह राजपूत की पत्नी ओमवती भी अब इस दुनिया में नहीं हैं.

शहीद मोहन सिंह राजपूत के अदम्य साहस की कहानियां.

शहीद की पुत्रवधु शिवानी राजपूत पत्नी स्वर्गीय दिनेश कुमार राजपूत से जब सेना मेडल से सम्मानित मोहन सिंह राजपूत के बारे में पूछा तो उनकी आंखें भर आईं. शिवानी ने बाताया कि जब ससुर शहीद हुए तब उसकी शादी भी नहीं हुई थी. ससुर बड़ी ननद कमलेश की शादी कर गए थे. ननद पूमन और पति दिनेश कुमार राजपूत की शादी सास ओमवती ने की. देवर रूपेश कुमार राजपूत और छोटी ननद अंजना राजपूत अभी अविवाहित हैं.

पत्र से पहले घर आया पार्थिव शरीर

जब शिवानी शादी के बाद घर आईं तो सास ओमवती ने उनसे कई बार ससुर मोहन सिंह राजपूत की अदम्य साहस और वीरता की कहानियां बताई थीं. उनका कहना था कि मोहन सिंह राजपूत बहुत ही निडर और साहसी थे. करगिल युद्ध जीत को लेकर मोहन सिंह ने एक पत्र भी पत्नी और परिवार के नाम लिखा था. जिसमें कारगिल पर फतह की बात लिखी थी. मगर पत्र आने से पहले ही उनका पार्थिव शरीर कारगिल से आया. घर में कोहराम मच गया. फिर तीन दिन बाद उनका लिखा पत्र आया. जिसमें लिखा था कि 'हम कारगिल का युद्ध जीत गए हैं. कोई घबराने की बात नहीं है. मैं पहाड़ी से नीचे आ रहा हूं. जल्द ही घर आउंगा. हम सब ने करगिल की चोटी पर झंडा फहराया है'.

परिजनों को मिली थी सरकारी मदद

शिवानी राजपूत का कहना है कि ससुर मोहन सिंह राजपूत के शहीद होने पर सरकार की ओर से उन्हें एक पेट्रोल पंप और घर भी मिला है. सास ओमवती ने सभी को पढ़ाया लिखाया. मेरी शादी भी मेरी सास ने की थी. अब एक छोटी ननद और देवर हैं. ननद की शादी के लिए भी सरकार से पैसा आ गया है. देवर दिल्ली में जॉब करते हैं. 24 फरवरी 2012 को सास का भी बीमारी के चलते निधन हो गया. ससुर श्रीलंका भी गए थे.

मेरे पिताजी चाहते थे कि मैं सेना में जाऊं. इसलिए वह मुझे सुबह-सुबह दौड़ भी लगवाते और फिजिकल एक्सरसाइज भी कराते थे. अब पिताजी नहीं है तो मैं खुद अकेले दौड़ लगाने जाता हूं. मैं अपने दादाजी की तरह सेना में भर्ती होकर के परिवार और देश का नाम रोशन करना चाहता हूं. मुझे सेना से जुड़ी हुई फिल्म देखना भी पसंद है.

-नुरुव राजपूत, शहीद मोहन सिंह राजपूत के पौत्र


शहीदी स्मारक की स्थिति सही नहीं है. वहां पर स्थानीय नशा करने वाले और शराबी लोग शराब पीते और जुआ खेलते हैं. न ही शहीद स्मारक पर लाइट की कोई सही व्यवस्था है और न बाउंड्रीवाल है. हमने जो छोटी सी बाउंड्रीवाल कराई थी. उसे लोगों ने तोड़ दिया है. कई बार इस बारे में जिला प्रशासन और संबंधित अधिकारियों से मिले. लेकिन अभी तक बाउंड्रीवाल नहीं हुई है. अगर वहां पर बाउंड्रीवाल कराई जाए और पार्किंग की व्यवस्था रहो. पार्क बना दिया जाए तो लोग रुकेंगे उन्हें अच्छा लगेगा.

-शिवानी राजपूत, शहीद की पुत्रवधु

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