प्रयागराज:इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि शस्त्र लाइसेंस निरस्त करने के मामले में यदि सुनवाई का मौका नहीं दिया गया है, तो जिलाधिकारी को अपने आदेश का पुनर्विलोकन का अधिकार है. यदि विधि प्रश्न निहित है, तो आदेश के खिलाफ अपील दाखिल करना जरूरी नहीं है. पुनर्विलोकन पोषणीय है.
यह आदेश न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा ने आलोक वर्मा की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है. कोर्ट ने शस्त्र लाइसेंस निरस्त करने के आदेश व अपीलीय आदेश को रद्द कर दिया है तथा पुनर्विलोकन (रीव्यू) अर्जी को पुनर्स्थापित करते हुए जिलाधिकारी वाराणसी को दो माह में दोनों पक्षों को सुनकर उचित आदेश पारित करने का निर्देश दिया है.
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याचिका पर अधिवक्ता मनीष सिंह ने बहस की थी. मालूम हो कि याची को कारण बताओ नोटिस जारी की गई थी कि क्यों न शस्त्र लाइसेंस निरस्त किया जाए. याची ने जवाब दिया. इसके बाद उसे सुने बिना लाइसेंस निरस्त कर दिया गया. रिव्यू अर्जी खारिज कर दी गयी, जिसके खिलाफ अपील दाखिल की गई थी. अपील मंजूर करते हुए जिलाधिकारी को रिव्यू तय करने का निर्देश दिया गया था. जिलाधिकारी ने कोई कार्रवाई नहीं की, तो यह याचिका दायर की गई थी.
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हाईकोर्ट ने कहा कि यदि कानून में रिव्यू का उपबंध किया गया है, तो उसकी सुनवाई होनी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि यदि प्रक्रिया दोषपूर्ण है, तो अधिकरण रिव्यू कर सकता है. कोर्ट ने साफ कहा कि यदि बिना सुने रिव्यू तय किया गई है तो आदेश विधि विरुद्ध है. ऐसे आदेश का पुनर्विलोकन अर्जी पोषणीय है.
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