...फिर 'कैद' हुआ अंधेरी सुरंग में नौनिहालों का बचपन
सड़क पर घूमते भारत के भविष्य की चिंता किसको है. हस्तिनापुर की गद्दी पर बैठे इन धृतराष्ट्रों पर शर्म आती है. शर्म आती है, बचपन को बाजार में बेचने वाले ठेकेदारों पर और शर्म आती है बाजार में बिकते नौनिहालों को देखकर मुंह मोड़ लेने वाले अफसरानों पर. जिस उम्र में हाथों में खिलौना और आंखों में ख़्वाब होने चाहिए थे, उस उम्र में ज़िम्मेदारियों का बोझ ढो रहे इन नौनिहालों की सुध कोई क्यों नहीं लेता? कोई क्यों नहीं कहता कि इनके पढ़ने की जिम्मेदारी हम लेते हैं? कोई क्यों नहीं कहता की इनके खाने की जिम्मेदारी हम लेते हैं और कोई क्यों नहीं कहता की इनको संवारने की जिम्मेदारी हम लेते हैं?