झाड़ोल (उदयपुर).जिले के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र कोटड़ा तहसील की महिलाएं आत्मनिर्भर होने लगी हैं. गोगरुद में राजीविका महिला सर्वांगीण सहकारी समिति लिमिटेड से जुड़ी महिलाएं होली के त्योहार को लेकर फूलों से हर्बल गुलाल बना रही हैं. स्वंय सहायता समूह से जुड़ी साठ महिलाएं पिछले एक माह से इस काम में जुटी हैं और प्रतिदिन एक क्विंटल से अधिक मात्रा में गुलाल का निर्माण कर रही हैं.
वर्तमान में ये महिलाएं एक हजार किलो से अधिक गुलाल का निर्माण कर चुकी हैं. जिसे समिति द्वारा बाजार में दो सौ रुपए प्रति किलो की दर से बेचा जा रहा है. खास बात यहा है कि महिलाओं द्वारा तैयार इस गुलाल की डिमांड हिमाचल प्रदेश, दिल्ली, कोलकाता, बिहार, महाराष्ट्र सहित राजस्थान के विभिन्न जिलों से आ चुकी है.
ऐसे बनता है हर्बल गुलाल
हर्बल गुलाल बनाने के लिए महिलाएं आस-पास के जंगल से पलाश के फूल, रजके के पत्ते और अन्य फूलों की पत्तियां इकट्ठा करके लाती हैं. इसके बाद इनको साफ पानी से धोया जाता है और पानी में उबाला जाता है. इस मिश्रण को छानकर ठंडा करते हैं, फिर इनमें अरारोट मिलाकर सुखाया जाता है और गुलाल का स्वरूप दिया जाता है.
तीन दिन की इस प्रक्रिया में एक दिन फूल और पत्तियां बीनने में लगता है. दूसरे दिन इन्हें पानी में उबालकर तैयार करने में और तीसरा दिन इसे सुखाने में. यह गुलाल पूर्णतः प्राकृतिक होता है जो कि शरीर पर किसी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचाता है. जबकि बाजार में मिलने वाला गुलाल केमिकल युक्त होता है जो कि शरीर के लिए हानिकारक होता है.