टोंक.कौन कहता है आसमान में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों, यह कहना है विकलांग अनिला जैन का. अनिला दोनों पैरों से विकलांग हैं और वह चल नहीं सकती. व्हीलचेयर के सहारे उसकी जिंदगी गुजर रही है. लेकिन, वह मजबूर नहीं मजबूत बनीं और आशा सहयोगिनी बनकर समाज की अन्य महिलाओं को राह दिखाती नजर आती हैं.
महिला दिवस विशेषअनिला जैन की कहानी टोंक के सोहेला की 44 साल की अनिला जैन को बचपन में दो साल की उम्र में ही पोलियो ने जकड़ लिया. ऐसे में सारे इलाज बेअसर साबित हुए और वह दोनों पैरों से विकलांग हो गई, लेकिन उसने जीवन में हार नहीं मानी और एमए तक की शिक्षा हासिल की. उसने 2001 में सामाजिक सरोकार से जुड़ते हुए यूनिसेफ के प्रोजेक्ट "अपना गांव-स्वच्छ गांव " में काम किया और गांव में महिलाओं को आगे लाने स्वयं सहायता समूहों का गठन किया और आत्मनिर्भर बनाया.
आंगनबाड़ी में सामान की गुणवत्ता की जांच करती अनिला महिलाओं और बच्चों से गहरा लगाव
जिसके बाद महिला विकास अभिकरण की तत्कालीन सहायक निदेशक ने राशन की दुकान आवंटित करवाकर अनिला के साहस को सलाम किया. अनिला के जीवन को एक नई राह दिखाई. बता दें कि पर अनिला को महिलाओं और बच्चो से गहरा लगाव रहा है. यही कारण रहा कि उसने घर मे रहने की जगह आंगनबाड़ी से जुड़ने के लिए आशा सहयोगनी बनना ठाना और इसके लिए आवेदन किया. उसके आवेदन पर 2005 में उसका चयन सोहेला गांव में ही आशा सहयोगनी के रूप में हो गया और आज वह न सिर्फ महिलाओं को स्वयं सहायता समूहों से जोड़कर आगे आने की प्रेरणा देती हैं बल्कि यह संदेश भी देती हैं कि जीवन की उड़ान पैरों से नहीं हौसलों से होती है.
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अनिला बनी प्रेरणा
अनिला की जीवन महिलाओं के लिए के लिए प्रेरणा है कि उसने विकलांगता से हार नहीं मानी और घर की जिंदगी और चार दिवारी से निकलकर आत्मनिर्भर बनी. गांव में रहकर भी उसने समाज सेवा की राह पकड़ी. आंगनबाड़ी सेंटर पर छोटे बच्चों की सेहत के प्रति अनिला ने ध्यान दिया. जिसके बाद आज उसके काम की हर कोई तारीफ करता है. दोनों पांवों से दिव्यांग अनिला जैन मानती है कि चाहे जीवन में कितना ही मुश्किल समय क्यों ना हो उसका डटकर मुकाबला करना चाहिए.