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SPECIAL: कोरोना की मार, पटरी से गुजारा करने वालों की जिंदगी हुई 'बेपटरी'

लॉकडाउन के बाद से श्रीगंगानगर में पटरी पर कपड़े बेचने वाले रोजी-रोटी को तरसने लगे हैं. जहां कपड़ा बेचने वाले सड़क किनारे दुकान लगाकर कमाई करते थे, वो सब अब ठप हो गया है. हालांकि उनमें से कुछ लोग दुकान तो जरूर लगाते हैं, लेकिन बिक्री नाममात्र होती है. ऐसे में उन लोगों के सामने परिवार चलाना भी मुसीबत बन गया है.

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लॉकडाउन के बाद से काम धंधे हुए ठप

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Published : Jul 27, 2020, 10:30 PM IST

श्रीगंगानगर.कोरोना संक्रमण के चलते लॉकडाउन की मार हर वर्ग पर पड़ी है. लॉकडाउन खुलने के बाद बाजार में जिस प्रकार से मंदी छाई हुई है, उससे अब उन लोगों पर संकट आ खड़ा हुआ है. जो लोग फुटपाथ पर बैठकर अपना छोटा मोटा काम धंधा करके जीवन व्यतीत करते आ रहे थे. लॉकडाउन के बाद बाजार में छाई मंदी ने सबको हिलाकर रख दिया है. छोटे कामगार मंदी से जितने प्रभावित हुए हैं, उससे अब उनके सामने घर का खर्चा निकालना मुश्किल होता जा रहा है.

श्रीगंगानगर शहर की मटका चौक से कोतवाली थाना तरफ की तरफ जाने वाली रोड पर पुराने कपड़ों को तैयार कर लोगों को बेचने वाले सैकड़ों परिवार पिछले 40 साल से यहां दुकानें लगाकर अपना जीवन यापन करते आ रहे हैं. लेकिन कोरोना संक्रमण के दौर में लगे लॉकडाउन के बाद इन परिवारों के सामने जो संकट आया है. उससे अब इनके भूखे मरने की नौबत आ गई है. इस सड़क पर करीब डेढ़ सौ दुकानें हैं, जो कई साल से अपनी आजीविका इन्हीं पुराने कपड़ों को बेचकर चला रहे थे.

लॉकडाउन के बाद से काम धंधे हुए ठप

क्या कहना है दुकानदारों का?

पुराने कपड़े बेचकर घर का गुजारा करने वाली निरमा देवी कहती हैं कि लॉकडाउन से पहले काम ठीक चलता था, लेकिन लॉकडाउन के बाद काम धंधा चौपट हो गया है. वह कहती है कि अब पूरा मंदी का दौर है. घर पर बैठे भी काम नहीं चलेगा, इसलिए वह अपनी दुकान पर कपड़े बेचने के लिए आती हैं. लेकिन बाजार में अब ग्राहक नहीं आते हैं और बिक्री भी नहीं होती है. वह कहती हैं कि बड़ी मुश्किल से सुबह से शाम तक 100 रुपए की बिक्री होती है. घर से यहां तक आने के करीब 50 रुपए टेम्पो किराया लग जाता है. लॉकडाउन के बाद पुराने कपड़ों का धंधा करने वाले अधिकतर लोग अब अपने दुकानों में नहीं आ रहे हैं, क्योंकि काम न होने की वजह से यहां वे खाली रहते हैं. उन्होंने अब घर का खर्चा निकालने के लिए निर्माण कार्यों से जुड़े काम धंधों में मजदूरी करनी शुरू कर दी है. इस सड़क पर पहले करीब सौ से डेढ़ सौ दुकानें होती थीं, जो अब मुश्किल से 30 दुकानें खुल रही हैं. निरमा कहती हैं कि सरकार केवल राशन दे रही है. इसके अलावा किसी प्रकार का कोई सहयोग लॉकडाउन के बाद सरकार की तरफ से नहीं मिला है.

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नीरमा देवी की तरह ही पुराने कपड़े बेचकर अपने घर का गुजारा करने वाली ममता कहती हैं कि लॉकडाउन के बाद बाजार का बहुत बुरा हाल है. हालांकि लॉकडाउन खुलने के बाद दुकान खोली जा रही हैं, लेकिन बिक्री न होने की वजह से कोई कमाई नहीं हो रही है. वहीं इनमें से भी कुछ लोगों की दुकानें टूटने से वे घर बैठे हैं. ग्राहकों की बात करें तो अब ग्राहक पहले के मुकाबले 20 प्रतिशत ही आते हैं, लेकिन अब बिक्री नाम मात्र की रह गई है. वह कहती हैं कि काम धंधा न होने की वजह से हमारा परिवार बहुत तकलीफ में हैं. यहां आने के बाद चाय पानी का खर्चा भी निकालना मुश्किल होता जा रहा है, जो लोग नहीं आ रहे हैं वह घर पर खाली बैठे हुए हैं. उनके पास कोई रोजगार नहीं है.

रोजी-रोटी का संकट

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इसी तरह जगपाल चंद कहते हैं कि लॉकडाउन से पहले काम धंधा ठीक था. लेकिन अब काम धंधा न होने की वजह से खाने के लाले पड़ गए हैं. वे कहते हैं कि लॉकडाउन के बाद काम धंधा चौपट हो गया है, बिक्री भी सुबह से शाम तक सौ रुपए की मुश्किल से होती है. कई बार तो पांच-पांच दिनों तक बिक्री नहीं होती है. काम पूरी तरह से खत्म हो चुका है. इनकी मानें तो लॉकडाउन के बाद मजदूर अपने घरों में चले गए हैं, इसके चलते अब काम धंधा बाजार में नहीं रहा है. काम न होने की वजह से उनके सामने भूखे मरने की नौबत आ गई है.

परिवार चलाना हो रहा मुश्किल

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हालांकि वे कहते हैं कि बाजार में काम न होने की वजह से अधिकतर लोग अब दूसरा काम करना शुरू कर दिए हैं. इनकी मानें तो पिछले 40 साल से पुराने कपड़ों का धंधा इस सड़क किनारे चल रहा है और कई परिवारों के लोग इस काम को करते आ रहे हैं. लेकिन ऐसी मार आज तक कभी नहीं पड़ी है. इस लाइन में करीब 50 लोग काम करते थे, जो अब इन दिनों में पांच से 10 दुकानें बड़ी मुश्किल से खुल रही हैं.

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लॉकडाउन के चलते अब काम धंधे बंद हैं. बाहर से जो कपड़ा खरीदने के लिए मजदूर आते थे वे भी आने बंद हो गए हैं, जितनी बिक्री होती है उतना खर्चा भी हो जाता है. ऐसे में घर का खर्चा निकालना बड़ा मुश्किल हो गया है. पिछ्ले 35 साल से इन्हीं पुराने कपड़ों को तैयार कर बेचने वाले ओमप्रकाश कहते हैं कि ऐसा संकट पहली बार देखा है. पहले रोजाना के 500 रुपए तक बिक्री हो जाती थी, जिसके चलते परिवार का गुजारा हो जाता था. लेकिन अब हालात बहुत ज्यादा खराब हैं, भूखे मरने की नौबत आ गई है. ऐसे में सरकार सहायता करे तो जिंदगी गुजर सकती है.

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