श्रीगंगानगर.महाराजा गंगा सिंह के प्रयासों से 1927 में पंजाब से गंगनहर का पानी जिले के अंदर तक लाया गया था. गंगनहर का पानी जिले में आने से पहले लोगों को प्राचीन तालाब, कुंए, बावड़ी से जल लेना पड़ता था. गंगनहर आने के बाद लोग पीने के पानी के लिए इसी नहर का प्रयोग करने लगे. ऐसे में जब प्राचीन कुंए, जोहड़, तालाब वक्त के साथ अस्तित्व खोने लगे तो इनके आसपास लोगों ने कब्जा करना शुरू कर दिया. जिले में सैकड़ों की संख्या में वाटर टैंकों पर आज लोगों ने अतिक्रमण कर रखा है.
जिला मुख्यालय में प्राचीन तालाबों और कुंए की बात करें तो वह भी अब केवल यादगार के रुप रह गए हैं. शहर की पुरानी आबादी वाला क्षेत्र कभी रामनगर के नाम से जाना जाता था जिसमें रियासत कालीन कुंआ हजारों लोगों की प्यास बुझाता था. नगर परिषद की उदासीनता और लापरवाही के कारण आज यह प्राचीन कुंआ अतिक्रमण की भेंट चढ़ गया है. यहीं नही इस कुंए के आसपास मवेशियों और लोगों के पानी के लिए तालाब हुआ करता था जो अब पूरी तरह से समाप्त हो गया है. अब यहां लोगों ने तालाब की भूमि पर कब्जा कर बड़े-बड़े मकान बना लिए हैं. जिले में अतिक्रमण का खेल लंबा-चौड़ा है लेकिन हमारे प्राचीन स्थानों पर इससे बड़ा नुकसान हुआ है.
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अधिकांश जिले में तालाबों पर अतिक्रमण हो चुका है. अतिक्रमण हटाने के लिए उच्च न्यायालय तक कार्रवाई की अपील की जा चुकी है लेकिन सरकारी तन्त्र में फाइलें उलझकर रह गईं. ग्रामीण क्षेत्र में तालाबों पर कब्जा होना आम बात हो गई है. कोई इसका विरोध करता है तो भूमाफिया स्थानीय अधिकारियों से सांठगांठ कर मामले को दबा देते हैं. वर्तमान में तालाब की स्थिति बेहद खराब है. तालाबों पर अवैध कब्जे की शिकायत को लेकर ग्रामीणों ने तहसील स्तर से लेकर जिला स्तर और उच्च न्यायालय तक का दरवाजा खटखटाया है लेकिन समस्या का हल नहीं निकल सका.