श्रीगंगानगर.प्रदेश सरकार द्वारा अनुदानित शिक्षण संस्थाओं का अनुदान बंदकर आरवीआरईएस 2010 के तहत अनुदानित शिक्षण संस्थाओं के कर्मचारियों को राज्य सेवा में समायोजित किया गया था. राजस्थान अनुदानित शिक्षाकर्मी संघ के बैनर तले 30 सितंबर 2009 को प्रदेश व्यापी आंदोलन के तहत तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत 27 सितंबर 2009 को जोधपुर पहुंचकर संघ के नेतृत्व में पांच सदस्य शिष्टमंडल के साथ बातचीत कर उन्हें राजकीय सेवा में समायोजन की मांग को स्वीकार करते हुए सरकारी सेवा में लेने की घोषणा की थे.
न्याय के लिए दम तोड़ती सांसें... उसके बाद साल 2011 के बजट भाषण में प्रदेश की समस्त अनुदानित शिक्षण संस्थाओं के कार्यरत कार्मिकों को राजकीय सेवा में सम्मिलित कर लिया, जिसका मुख्य उद्देश संस्थाओं में कार्यरत शिक्षकों और कर्मचारियों को राज्य सरकार के शिक्षकों व कर्मचारियों के समकक्ष सभी सेवा शर्तें प्रदान करना था. पेंशन के संबंध में पूर्व में बने नियम में राजस्थान सरकार के वित्त विभाग द्वारा जारी राजस्थान सिविल सेवा नियम 1996 के नियम में यह स्पष्ट प्रावधान है कि राज्य सरकार द्वारा अनुदानित शिक्षण संस्थाओं के कर्मचारियों की सेवाओं का अधिग्रहण करने पर उन्हें राजस्थान सिविल सेवा नियम- 1996 का लाभ मिलेगा. लेकिन इस लाभ के लिए कई साल से ये कार्मिक दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हैं.
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समायोजन के पश्चात साल 2015 में सरकार ने आरवीआरईएस नियम के अंतर्गत समायोजित कर्मचारियों को पदोन्नति के लाभ से वंचित कर ग्रामीण क्षेत्रों में पदस्थापन किया. इसके अतिरिक्त इन कर्मचारियों को नई नियुक्ति मानकर नई पेंशन योजना का अधिकारी माना. इसके अंतर्गत सेवानिवृत्त हो चुके कर्मचारियों को 1,000 की मासिक पेंशन मिल रही है. राज्य सरकार के इस फैसले के विरुद्ध राजस्थान समायोजित शिक्षाकर्मी वेलफेयर सोसाइटी ने साल 2012 में राजस्थान उच्च न्यायालय जोधपुर में वाद दायर किया. 1 फरवरी 2018 को राजस्थान उच्च न्यायालय जोधपुर खंडपीठ ने निर्णय दिया, जिसकी पुष्टि देश के सर्वोच्च न्यायालय की खंडपीठ ने 13 सितंबर 2018 को न्यायालय के निर्णय अनुसार राज्य सरकार के उक्त प्रावधान को ऐसे विधानी करार देकर समायोजित कर्मचारियों को साल 2004 से पूर्व की नियुक्ति मानकर पुरानी पेंशन योजना का हकदार माना.
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कोर्ट ने अपने निर्णय में पुरानी पेंशन योजना 1996 और नवीन अंशदाई पेंशन योजना 2004 को कर्मचारियों के लिए विकल्प के रूप में प्रावधान किया. इस विकल्प में पुरानी पेंशन योजना का चुनाव करने वाले कर्मचारियों को उच्च न्यायालय के निर्णयानुसार 31 अगस्त 2018 तक अपने पूर्व अनुदानित शिक्षण संस्थाओं से 2011 में पीएफ खाते से प्राप्त अंतिम भुगतान को 6 प्रतिशत ब्याज सहित अपने नियुक्त अधिकारी को जमा करवाना था, जिसके बाद इन कार्मिकों ने राशि जमा करवाई. लेकिन आज तक इन्हें न तो पेंशन का लाभ दिया जा रहा है और न ही इनके पैसे वापस लौटाए जा रहे हैं.
क्या कहना है शंकरलाल वर्मा का?
शंकरलाल भी समायोजित कर्मचारी थे, लेकिन शंकरलाल ने सरकार के हर आदेश को मानते हुए अपना घर गिरवी रखकर कर्ज पर रुपए उधार लेकर सरकार के खाते में जमा करवाए. लेकिन सेवानिवृत्ति के बाद शंकरलाल आज भी पेंशन से वंचित हैं. शंकरलाल का दुख इतना है कि वे दहाड़े मारकर रोते हैं और अब राष्ट्रपति से गुहार लगाकर इच्छा मृत्यू की मांग कर रहे हैं. शंकरलाल कहते हैं कि सरकार के हर आदेश को मानते हुए उन्होंने रुपए जमा करवाए थे. लेकिन आज तक उन्हे न पेंशन और न ही जमा करवाए रुपए वापस दिए गए हैं. शंकरलाल कहते है कि न्याय प्रक्रिया के नाम पर घोर अन्याय से वह बहुत प्रताड़ित हो चुके हैं.
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शंकरलाल की तरह की महेंद्र पाल भी अनुदानित ज्ञान ज्योती विद्यालय करनपुर में कार्यरत थे. पेंशन की उम्मीद में महेन्द्रपाल की सांसें दम तोड़ गई. लेकिन पेंशन आज तक शुरू नहीं हुई है. महेंद्र पाल की पत्नी कैलाश रानी अब पेंशन के लिए शिक्षा विभाग और सरकार के चक्कर लगा रही हैं. लेकिन न तो पेंशन और न ही विभाग में जमा करवाए गए इनके रुपए वापिस दिए जा रहे हैं.
मृतक महेंद्र पाल की पत्नी कैलाश रानी चने भुनने का कार्य कर अपना घर चलाती हैं. इनकी आर्थिक हालत इतनी ज्यादा खराब है कि कर्ज लिए रुपए अब दिन-ब-दिन बोझ बनते जा रहे हैं. श्रीगंगानगर में निजी स्कूलों से 39 कार्मिकों को समायोजित किया गया था, जिनसे करीब सवा करोड़ रुपए जिला शिक्षा अधिकारी माध्यमिक कार्यालय में जमा होने के बाद भी पिछले कुछ साल से इन्हें पेंशन नहीं दी जा रही है. पेंशन की उम्मीद में अब तक 22 कार्मिकों ने सांसें भी तोड़ दी हैं. ऐसे में अब पेंशन की उम्मीद लिए उनके परिवार टकटकी लगाए बैठे हैं.