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राजसमंद: देव संस्कृति विश्वविद्यालय शांतिकुंज के प्रति कुलपति ने नाथद्वारा पहुंच किए श्रीनाथजी के दर्शन, बनास गंगा भागीरथी समारोह में करंगे शिरकत - Banas Ganga Bhagirathi Samman ceremony

राजसमंद में रविवार को अखिल विश्व गायत्री परिवार शांतिकुंज हरिद्वार की ओर से गायत्री परिवार के स्वर्ण जयंती वर्ष और कुंभ महावर्ष के अवसर पर बनास गंगा भागीरथी सम्मान समारोह का आयोजन किया जा रहा है. स्थानीय न्यू कॉटेज में पत्रकारों से वार्ता करते हुए उन्होंने नाथद्वारा आने पर हर्ष व्यक्त करते हुए अभियान की जानकारी दी.

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बनास गंगा भागीरथी सम्मान समारोह का होगा आयोजन

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Published : Feb 28, 2021, 7:24 PM IST

राजसमंद.अखिल विश्व गायत्री परिवार शांतिकुंज हरिद्वार की ओर से गायत्री परिवार के स्वर्ण जयंती वर्ष और कुंभ महावर्ष के अवसर पर आयोजित आपके द्वार हरिद्वार अभियान के तहत रविवार को राजसमंद में बनास गंगा भागीरथी सम्मान समारोह का आयोजन किया जा रहा है. कार्यक्रम में शिरकत करने पहुंचे देव संस्कृति विश्वविद्यालय शांतिकुंज के प्रति कुलपति डॉ. चिन्मय पंड्या ने रविवार को प्रभु श्रीनाथजी की राजभोग की झांकी के दर्शन किए.

बनास गंगा भागीरथी सम्मान समारोह का होगा आयोजन

स्थानीय न्यू कॉटेज में पत्रकारों से वार्ता करते हुए उन्होंने नाथद्वारा आने पर हर्ष व्यक्त करते हुए अभियान की जानकारी दी. उन्होंने बताया कि यह एक सुखद संयोग है कि हरिद्वार में महाकुंभ और शांतिकुंज का स्वर्ण जयंती वर्ष दोनों एक साथ है. कोरोना संक्रमण के कारण अनेक श्रद्धालु इस वर्ष हरिद्वार नहीं पहुंच पा रहे हैं. उन श्रद्धालुओं-स्वजनों तक गंगाजली और प्रेरणाप्रद युग साहित्य पहुंचाने का कार्य शांतिकुंज द्वारा किया जा रहा है.

भारतीय संस्कृति में श्रद्धा का महत्वपूर्ण स्थान है और आस्था और श्रद्धा को पोषित करने के उद्देश्य से ये अभियान चलाया जा रहा है. उन्होंने निर्मल गंगा अभियान के बारे में बताते हुए कहा कि पतित पावनी गंगा भारत की जीवन रेखा समान है. गंगा का जल अमृत तुल्य है. इसे स्वच्छ और निर्मल बनाने के लिए हम सभी को कंधे से कंधे मिलाकर चलना होगा. इस अभियान में गायत्री परिवार के कई लाख स्वयंसेवक जुटे हैं.

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डॉ. पंड्या ने गंगा के वैज्ञानिक महत्व और आध्यात्मिक पक्ष पर प्रकाश डालते हुए पतित पावनी गंगा को निर्मल बनाने के लिए और अधिक ध्यान देने पर बल दिया. वहीं हाल के समय मे लगातार आ रही प्राकृतिक आपदाओं के बारे में चर्चा करते हुए बताया कि विकास और प्रकृति के सम्मान के मध्य सामजंस्य की आवश्यकता है, हमनें जब से प्रकृति को मां मानने के बजाए स्वार्थ की भावना से देखना शुरू किया तब से ही आपदाए बढ़ गई हैं, विकास की आवश्यकता है पर प्रकृति का शोषण करके नही उसका पोषण करके कार्य किए जाने चाहिए.

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