प्रतापगढ़.जिले के टांडा गांव के लबाना समाज में महिला सशक्तिकरण की अनूठी प्रथा देखने को मिलती है. यहां एक दिन के लिए महिलाओं को पूरी आजादी मिलती है और महिलाएं भी इस आजादी का पूरा फायदा उठाती है.
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मर्दों को पीटने के इस खतरनाक खेल को ग्रामवासी अपनी बोली में 'नेजा' या लट्ठमार होली कहते हैं. इस खेल में बड़े-बुजुर्ग, युवा, महिलाएं सभी बड़े उत्साह के साथ भाग लेते हैं. इस खेल में महिलाओं का पूरा वर्चस्व रहता है, पूरी दादागिरी रहती है. साल भर अपने पति, ससुर या जेठ के कठोर अनुशासन में रहने वाली ये गांव की भोली-भाली महिलाएं इस खेल का पूरा फायदा उठाती हैं.
इस दिन महिलाएं पति हो या पड़ोसी, युवा हो या बुजुर्ग, ससुर हो या जेठ, किसी को नहीं छोड़ती हैं. एक तरह से नेजा का दिन ग्रामीण-महिलाओं के लिए 'महिला दिवस' या आजादी के दिन से कम नहीं होता है. महिलाओं को पूरी छूट रहती है, कोई भी उन्हें बुरा-भला नहीं कहता. उन्हें पूरी इज्जत दी जाती है. कोई भी महिलाओं से पीट कर उनके ऊपर हाथ नहीं उठाता है.
प्रतापगढ़ के टांडा गांव की लट्ठमार होली बता दें, गांव का मुखिया ढिंढोरा पिटता है और गांव में सबको नेजा खेलने का निमंत्रण दिया जाता है. शाम होते ही गांव में महिलाएं और पुरुष एक खुली जगह एकत्र हो जाते हैं. महिलाएं और पुरुष अलग-अलग टोलियों में नगाड़े की थाप पर नाचते और गाते हैं और एक-दूसरे को छींटाकशी करते हैं.
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बीच मैदान में रेत से भरा एक बोरा और एक नगाड़ा रख दिया जाता है. महिलाएं हाथों में लचील लकड़ियां लहराते हुए पुरुषों को बोरा उठा ले जाने की खुली चुनौती देती है. पुरुष बोरा उठाने की कोशिश करते हैं और महिलाएं उनकी पूरी खबर लेती हैं. पीट-पीट कर बुरा हाल कर देती हैं. यह सिलसिला तब तक चलता रहता है, जब तक वे बोरा उठा ले जाने में पूरी तरह कामयाब नहीं हो जाते.
बता दें, जब खेतों में गेहूं, चने और अफीम की फसल पक कर तैयार हो जाती है और किसान कुछ फुर्सत में आ जाते हैं, तब प्रतापगढ़ जिले में टांडा में इस तरह का खेल खेला जाता है. इसे देखने दूर-दूर से लोग आते हैं. मान्यता है कि इस खेल से गांव की देवी खुश होती है और गांव को किसी प्राकृतिक आपदा या अकाल का सामना नहीं करना पड़ता है. गांव में खुशहाली रहती है.