नागौर. कृषि प्रधान नागौर जिले में खेती परंपरागत रूप से मानसून की बारिश पर निर्भर होती है. इसलिए रबी की फसलों की बजाए किसानों और कृषि विभाग के अधिकारियों को खरीफ की फसलों से ज्यादा उम्मीद रहती है. इसीलिए नागौर जिले में इस साल खरीफ के सीजन में 12.46 लाख हेक्टेयर में बुवाई का लक्ष्य तय किया गया है. लेकिन जून के महीन बीतने के बाद अभी तक लक्ष्य की महज 10 फीसदी बुवाई ही हो पाई हैं.
नागौर में 12.46 लाख हेक्टेयर खरीफ बुवाई का लक्ष्य कृषि विभाग के अधिकारियों का मानना है कि, प्री मानसून के दौरान जिले में इस साल कम और छितराई हुई बारिश हुई है. इसके चलते अभी तक बुवाई का सिलसिला जोर नहीं पकड़ पाया है. कृषि विभाग के अधिकारियों का कहना है कि खरीफ सीजन में जिले में 12.46 लाख हेक्टेयर में बुवाई का लक्ष्य दिया गया है. जबकि अभी तक 1.18 लाख हैक्टेयर में ही बुवाई हो पाई हैं.
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कृषि विभाग के आंकड़ों पर गौर करें तो ज्वार की 5 हजार हेक्टेयर में बुवाई का लक्ष्य है. जबकि अभी तक महज 60 हेक्टेयर में बुवाई हुई है. बाजरे की बुवाई के लिए 3.40 लाख हेक्टेयर का लक्ष्य है. जबकि बुवाई 53.84 हजार हेक्टेयर में ही हुई है. इसी तरह मूंग की बुवाई का 5.40 लाख हेक्टेयर का लक्ष्य है. जबकि बुवाई 6393 हेक्टेयर में ही हुई हैं.
मोठ की बुवाई का लक्ष्य 1.05 हेक्टेयर है. जबकि मोठ की बुवाई अभी तक शुरू ही नहीं हुई है. चवला 8 हजार हेक्टेयर में बोया जाना है. जबकि अभी तक 15 हेक्टेयर में ही चवले की बुवाई हो पाई है. इसी तरह मूंगफली की बुवाई का लक्ष्य 17 हजार हेक्टेयर है, और इसकी 11875 हेक्टेयर में फिलहाल बुवाई हो चुकी है. तिल की बुवाई के लिए 10 हजार हेक्टेयर का लक्ष्य है. लेकिन इसकी बुवाई महज 15 हेक्टेयर में ही हो पाई है.
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मानसून के दौरान 1.15 लाख हेक्टेयर में ग्वार की बुवाई का लक्ष्य जिले के लिए तय किया गया है. लेकिन अभी तक 3390 हेक्टेयर में ही ग्वार की बुवाई हुई है. वहीं, कपास की बुवाई का लक्ष्य भी 54 हजार हेक्टेयर का है और अब तक करीब 40 हजार हेक्टेयर में कपास की बुवाई हो चुकी है. इस लिहाज से देखे तो अभी तक जिले में मूंगफली और कपास ही ऐसी फसलें हैं. जिनकी बुवाई का आंकड़ा लक्ष्य के 50 फीसदी से ज्यादा पहुंचा है. जबकि बाकि फसलों की बुवाई अभी तक रफ्तार नहीं पकड़ पाई है.
कृषि विभाग के उपनिदेशक डॉ. हजारी राम चौधरी का कहना है कि, प्री मानसून की कम और छितराई हुई बारिश इस बार हुई है. इसके अलावा इन दिनों टिड्डियों के हमले की बढ़ती घटनाओं को भी कम बुवाई के लिए जिम्मेदार माना जा रहा है. हालांकि, उम्मीद जताई जा रही है कि, मानसून की एक-दो अच्छी बरसात के बाद बुवाई का आंकड़ा तेजी से बढ़ेगा.