नागौर.शहर से 16 किलोमीटर की दूरी पर स्थित मांझवास गांव में बसे हैं पशुपतिनाथ. शिव मन्दिर जो नेपाल के प्रसिद्ध पशुपतिनाथ मंदिर की तर्ज पर ही गढ़ा गया है. करीब तीन दशक पहले ही इसकी नींव रखी गई. विशेषताओं से परिपूर्ण है नागौर के पशुपतिनाथ. आज से करीब साढ़े तीन दशक पहले 1982 में योगी गणेशनाथ ने इस मंदिर की नींव रखी थी और 15 वर्ष बाद इस मंदिर में मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा की गई थी.
काठमांडू के मंदिर का Replica:भगवान शिवशंकर की प्रतिमा पशुपतिनाथ महादेव मंदिर जैसी ही है (Nagaur ke pashupatinath). गर्भगृह ढांचा भी हूबहू! पंचमुखी भगवान भोले की मूर्ति है. एक शिवलिंग और चार मुख हर दिशा में. हर मुख के आगे एक द्वार भी खुलता है वो भी ठीक नेपाल वाले भगवान पशुपतिनाथ की तर्ज पर. हर साल शिवरात्रि और सावन महीने में यहां मेला भरता है.
क्या है खास? :मन्दिर की प्रतिमा अष्टधातु से बनी है. जो तांबा लगा है वो खास तौर पर लीबिया से मंगवाया गया था. मन्दिर के आस पास सैकड़ों की संख्या में पेड़ पौधे लगे हैं. जिसका ध्येय पर्यावरण संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक करना भी है. मन्दिर महंत स्वरूप नाथ ने बताया कि मंदिर में स्थापित यह पहली ऐसी मूर्ति है जिसमें पारा भी शामिल है. मूर्ति का वजन 16 क्विंटल 60 किलो है और 1998 में मूर्ति स्थापना से पहले इस मूर्ति को 12 ज्योतिलिंग के दर्शनार्थ घुमाया गया था. सभी ज्योतिलिंग के दर्शन करने में डेढ़ महीने से भी ज्यादा का समय लगा था (Pashupatinath Mandir Nagaur) और उसके बाद यहां मांझवास में 121 कुण्डीय यज्ञ का आयोजन किया गया था, जिसमें लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं ने भाग लिया. महंत का दावा है कि इस शैली का भारत में यह पहला मन्दिर है.
पढ़ें-मनोकामना पूरी करते हैं 'नई के नाथ', सावन में महादेव के पूजन को लगती है श्रद्धालुओं की कतार
काठमांडू जा आया विचार: मन्दिर के पुजारी पण्डित रामनिवास ने बताया कि इस मंदिर में सर्वप्रथम गणेशनाथ ने ही मूर्ति की स्थापना की. उसके बाद वह नेपाल गए वहां उन्होंने काठमांडू शैली का पशुपतिनाथ मंदिर देखा तो उन्होंने सोचा कि ऐसा मंदिर क्यों ना नागौर में भी बनाया जाए. उनकी सोच थी कि आम आदमी वहां जा नहीं सकता इस लिए वह वहां से मंदिर का नक्शा लेकर आये फिर यहां इस मंदिर की नींव रखी.