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चुनाव ने बिगाड़ा सरकारी स्कूलों के प्रवेश उत्सव का गणित, टारगेट के दो फीसदी नामांकन भी नहीं हुए पूरे

सरकारी स्कूलों में नामांकन वृद्धि पर जोर देने के लिए प्रवेश उत्सव का पहला चरण खत्म हो चुका है, लेकिन प्रवेश उत्सव के पहले चरण का गणित लोकसभा चुनाव ने बिगाड़ दिया है.

टारगेट का दो फीसदी भी नहीं हुआ पूरा

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Published : May 15, 2019, 3:54 PM IST

कोटा.जिले के सरकारी स्कूलों में नामांकन का दौर चल रहा है जो इस बार लोकसभा चुनाव के कारण दब गया. चुनाव में जिले के करीब दस हजार शिक्षकों की ड्यूटी लगी. शिक्षकों के चुनाव में व्यस्त होने के कारण प्रथम चरण का प्रवेश उत्सव फीका ही रहा. टारगेट का 2 फीसदी भी पूरा नहीं हो पाया है.

टारगेट का दो फीसदी नामांकन भी नहीं हुआ पूरा

प्रारंभिक स्कूलों में 51565 विद्यार्थी पढ़ रहे हैं. ऐसे में करीब 5100 को प्रवेश मिलना था, लेकिन केवल 848 स्टूडेंट ने ही प्रवेश लिया है. इसी तरह एक से 12वीं तक संचालित होने वाले जिले में 305 माध्यमिक स्कूल हैं. इनमें करीब 90 हजार के स्टूडेंट पढ़ते हैं. इनमे केवल 900 ही प्रवेश प्रथम चरण के प्रवेश उत्सव में हो पाए हैं.

पिछली बार 7511 प्रवेश हुए थे
जिले में एक से आठवीं तक के 734 स्कूल हैं. जिनमें केवल 848 ही नामांकन नए विद्यार्थियों के हो पाए हैं. जबकि इन स्कूलों में 5100 से ज्यादा बच्चों को प्रवेश देने का टारगेट था. वहीं पिछली साल के प्रवेश उत्सव के तहत 7511 विद्यार्थियों को प्रवेश दिया गया है.

वहीं प्रारंभिक शिक्षा अधिकारी के अधीन 734 स्कूल आते हैं, जिनमें करीब 2821 टीचर कार्यरत हैं. ऐसे में इन टीचर्स को घर-घर सर्वे करना था और बच्चों का नामांकन बढ़ाना था.
साथ ही अलग-अलग एक्टिविटी भी करनी थी, लेकिन लोकसभा चुनाव के चलते निदेशालय से किसी तरह के प्रवेश उत्सव को लेकर निर्देश नहीं आए. ऐसे में टीचर्स ने भी ज्यादा रुचि नहीं दिखाई. इसका कारण यह रहा कि केवल 848 एडमिशन हो पाए है.

चुनाव के चलते कम रहा, आगे प्रयास करेंगे
जिला शिक्षा अधिकारी प्रारंभिक द्रोपदी मेहर का कहना है कि लोक सभा चुनाव के चलते उनके अधिकांश शिक्षक और स्टाफ चुनावी ड्यूटी पर थे. चुनाव की मीटिंग में प्रिंसिपल व अन्य स्टाफ भी व्यस्त था. ऐसे में नामांकन का टारगेट पीछे छूट गया है. अब इसके दूसरे चरण में हम प्रयास करेंगे और टारगेट को पूरा करेंगे.

बच्चों के पेरेंट्स नहीं लेते रुचि
इसी तरह जिला शिक्षा अधिकारी माध्यमिक गंगाधर मीणा का कहना है कि बच्चों के पेरेंट्स ही उनको स्कूल में दाखिले को लेकर जागृत नहीं है. बच्चों के पेरेंट्स शादी ब्याह व अन्य सामाजिक कार्यों में व्यस्त हैं. कृषक वर्ग भी खेती में व्यस्त है. साथ ही बच्चों की फीस भी जमा करवानी होती है. इसीलिए नामांकन नहीं करवाते हैं. जबकि सरकारी स्कूलों में शिक्षा लगभग निशुल्क ही है. वहीं बालिकाओं की शिक्षा को पूरी तरह मुफ्त है.

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