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कैलादेवी के दर्शन के लिए उमड़ा आस्था का जनसैलाब...मां के जयकारों से गुंजा मंदिर

जिले की अरावली पहाड़ियों के बीच विराजमान मां कैलादेवी का प्रसिद्ध धार्मिक स्थान जन-जन की आस्था का केंद्र बना हुआ है. मां कैला देवी को करौली वाली, कैला मैया, शक्तिधाम, आदिशक्ति, जैसे कई नामों से माता के भक्त उन्हे पुकारते हैं. ऐसे में ममतामई कैलामैया श्रद्धालुओं की पुकार पर हमेशा कृपा बरसाती रही हैं.

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Published : Apr 13, 2019, 2:40 PM IST

कैलादेवी के दर्शन के लिए उमड़ा आस्था का जनसैलाब

करौली.जिले की अरावली पहाड़ियों के बीच विराजमान मां कैलादेवी का प्रसिद्ध धार्मिक स्थान जन-जन की आस्था का केंद्र बना हुआ है. मां कैला देवी को करौली वाली, कैला मैया, शक्तिधाम, आदिशक्ति, जैसे कई नामों से माता के भक्त उन्हे पुकारते हैं. ऐसे में ममतामई कैलामैया श्रद्धालुओं की पुकार पर हमेशा कृपा बरसाती रही हैं.

बता दें, हर साल चैत्र महीने में श्रद्धालुओं की यहां काफी आवक रहती है. राजस्थान के प्रसिद्ध धार्मिक मेलों में शुमार कैला मैया का लक्खी मेला चैत्र महीने में लगता है जिसमें लाखो की संख्या में श्रद्धालु मनोकामनाओं के साथ कई कोसों की यात्रा करते हुए कैलादेवी धाम पहुंचते हैं. ऐसे में1 अप्रैल से लकी मेले का विधिवत आगाज हो गया जो 17 अप्रैल तक जारी रहेगा. जिला प्रशासन, पुलिस विभाग, ग्राम पंचायत कैलादेवी और कैलादेवी मन्दिर ट्रस्ट की ओर से आयोजित मेले में एक साथ लाखों यात्रियों के ठहराव दर्शन आवागमन साधनों की व्यवस्था की जाती है. जिसमें राजस्थान के अधिकांश रोडवेज डिपो की बसें मंगवाई जाती हैं.

कैलादेवी के दर्शन के लिए उमड़ा आस्था का जनसैलाब

मेले में श्रद्धालुओं के आवागमन को लेकर विभिन्न आगारों की 600 रोडवेज बसें 29 मार्च से संचालित की गई हैं. वहीं, आगरा से गंगापुर सिटी तक मेला स्पेशल ट्रेन चलाई गई है. उत्तर प्रदेश के आगरा फिरोजाबाद, फतेहाबाद, एटा, कासगंज, इटावा, मैनपुरी, मध्य प्रदेश, के विभिन्न हिस्सों से श्रद्धालु आते हैं.

यह है कैलादेवी पीठ की पूरी कहानी
करौली जिला मुख्यालय से 23 किलोमीटर दूर दक्षिण-पश्चिम में अरावली पर्वतमाला पर सफेद संगमरमर से निर्मित मां कैलादेवी का भव्य मंदिर स्थित है. मंदिर के बाहर विशाल प्रांगण में लोहे की रेलिंगों के बीच से श्रद्धालु भक्त निकल कर मंदिर में प्रवेश करते हैं. जहां कैलादेवी और चामुंडा माता की आदमकद प्रतिमा के दर्शन कर श्रद्धालु दूसरे नकाशी द्वार से बाहर निकलते हैं. जहां सिढ़ी की एक बूंर्ज पर भक्तों को कैलामाता की भभूती बांटी जाती है. कैलामाता के मंदिर के ठीक सामने मां के प्रिय बोहरा भगत लांगुरिया, भैरवनाथ जी और शंकर भगवान का मंदिर है. कैलामाता के दर्शन कर भक्त इन मंदिरों में भी पूजा कर चढ़ावा चढ़ाते हैं.

बताया जाता है कि बहन देवकी के पुत्रों का वध करते समय हाथ से छूटी कन्या महामाया बनकर कैलादेवी के रूप में विराजित हैं. श्रद्धालु भक्त यहां दर्शन करने के बाद माता को प्रसन्न करने के लिए कन्या का पूजन कर भोजन कराते हैं और दान दक्षिणा भेंट करते हैं. कैलादेवी मंदिर करौली रियासत के यदुवंशी शासकों की कुलदेवी होने के कारण मंदिर परिसर में यहां के पूर्व महाराजाओं के संजीव चित्र देखने वालों को अभिभूत करते हैं. मंदिर की व्यवस्था को सुचारू अंजाम देने के लिए कैलादेवी मंदिर ट्रस्ट पूरी तरह प्रयासरत है.

कैलादेवी मंदिर के ठीक सामने अरावली पर्वत माला से बहती हुई कालीसिल नदी सौन्दर्य में चार चांद लगाती है. इस नदी तट पर श्रद्धालुओं की सुविधाओं के लिए जगह-जगह पक्के घाटों का निर्माण कराया गया है. श्रद्धालु भक्त नदी में स्नान कर माता कैला देवी के दर्शन करने मंदिर तक पहुंचते हैं. मेले के दौरान मंदिर ट्रस्ट द्वारा यहां गोताखोर बुलाए जाते हैं जो श्रद्धालुओं को डूबने से बचाने में मदद करते हैं.

यात्रियों की सुविधा के लिए कैलादेवी में 400 से ज्यादा धर्मशाला बनी हुई हैं. अत्याधुनिक सुविधाओं से युक्त गेस्ट हाउस रिसोर्ट बने हुए हैं. इनमें मुख्य रूप से करौली राज परिवार द्वारा बनवाई गई लाल पत्थर से बनी नक्काशीदार विशाल बड़ी धर्मशाला नाम से प्रख्यात अपने वैभव और कलात्मक नक्काशी के कारण आकर्षण का केंद्र है. इस विशाल धर्मशाला में एक साथ हजारों यात्री विश्राम कर सकते हैं.. कैलादेवी मेले के दौरान यात्री दर्शनार्थियों की सुविधा को देखते हुए राजस्थान राज्य पथ परिवहन निगम द्वारा मेला स्पेशल विशेष बसें चलाई जाती हैं.

कैलादेवी से 2 किलोमीटर दूर घने जंगल में बाबा केदार गिरी की तपोभूमि है. किवदंती के अनुसार घने जंगल में जब दानव यहां के लोगों को काल का ग्रास बनाते थे, तब बाबा केदार गिरी ने घोर तपस्या की. बाबा केदारगिरी की घोर तपस्या से खुश होकर मां कैलादेवी कन्या के रूप में बाबा के समक्ष प्रकट हुईं. कैलामाता ने खुश होकर बाबा से वरदान मांगने को कहा. इस पर बाबा ने माता से इस वन में ही रहकर दानवों का विनाश करने की प्रार्थना की. तब कैलामाता ने प्रसन्न होकर बाबा को वन में ही रहकर दानवों का विनाश करने का वरदान दे दिया. कन्या के रूप में मां कैलादेवी नित्य बाबा केदारगिरी के साथ चौपड़ खेलती हैं और रात में निर्जन वन में दानवों का वध करती रहती हैं.

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