झुंझुनूं (चिड़ावा). देशभर के कई बड़े उद्योगपतियों का मूल रूप से ताल्लुक शेखावाटी के इलाके से रहा है. इस फेहरिस्त में बिड़ला, सिंघानिया, जेके मोदी, रूहिया, खंडेला, पोद्दार, कनोडिया, मित्तल, डालमिया, पिरामल, रुंगटा जैसे घरानों का नाम लिया जा सकता है. यहां के सेठ सदियों से व्यापार के लिए लंबी यात्राएं करते रहे हैं, ऐसे में खाने के लिए उन्हें ऐसी चीज की जरूरत होती थी जो लंबे समय तक बिना खराब हुए काम में आ सके और जिसे आसानी से ले जाएगा सके. इसलिए वे दूध को गाढ़ा कर उसमें चीनी मिलाकर ठोस होने तक गर्म करते थे.बाद में यही मिठाई पेड़े के रूप में प्रसिद्ध हो गयी. विशेषकर चिड़ावा कस्बे में ये खास मिठाई यानी बनने लगा। आज चिड़ावा के ये स्पेशल पेड़े अपने आप में एक ब्रांड हैं.
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एक सदी से ज्यादा पुराना पारंपरिक स्वाद...
झुंझुनू जिले के चिड़ावा क्षेत्र में कोई मिठाई अगर बड़े ही प्यार और आग्रह से खिलाई जाती है तो वह है पेड़ा. अक्सर रोते हुए बच्चों को खुश करने के लिए भी यहां पेड़े का नाम ही लिया जाताा है. प्रसिद्धि में चिड़ावा का पेड़ा मथुरा के पेड़ों से होड़ करता है. अगर आप झुंझुनू आए हैं या यहां से होकर गुजर रहे हैं तो कई लोग आपको चिड़ावा का पेड़ा लाने की फरमाइश कर ही देते हैं. लोगों का कहना है कि यूं तो पेड़ा इलाके में सेठ-साहूकारों की यात्राओं के समय से यानी एक सदी से ज्यादा वक्त से बनाया जाता है. लेकिन कारोबार के तौर पर चिड़ावा में यह आजादी से लगभग दो दशक पहले शुरू हुआ. अस्सी के दशक में पेड़े का स्वाद लोगों की जबान पर चढ़ा और 21वीं सदी आते-आते तो यह बड़ा करोबार बन गया. शुरू में यहां एक दो दुकानें और गिनती के बनाने वाले होते थे लेकिन अपने स्वाद और अनूठी बनावट यानी अंगूठे के निशान के कारण यह लोकल ब्रांड बन गया है. चिड़ावा के पेड़ों का सालाना करोबार करीब 40 करोड का है. सीधे तौर पर इस व्यवसाय से लगभग 5 हजार लोगों को रोजगार मिला हुआ है.