झुंझुनू.'बैठणो छाया मैं हुओ भलां कैर ही, रहणो भायां मैं हुओ भलां बैर ही' मारवाड़ की यह यह कहावत इसलिए बनी थी कि भले ही कैर के पेड़ की छाया घनेदार नहीं होती हो, लेकिन वहां बैठने के दूसरे बहुत फायदे होते हैं. यह दक्षिण और मध्य एशिया, अफ्रीका और थार के मरुस्थल में मुख्य रूप से प्राकृतिक रूप में मिलता है, लेकिन भारत में केवल मुख्यतः राजस्थान में ही मिलता है. इसमें लाल रंग के फूल आते हैं और इसके कच्चे फल की सब्जी बनती हैं, जो राजस्थान में बहूत प्रचलित हैं.
कैर के पके फलों को राजस्थान में स्थानीय भाषा ढालु कहते हैं. यह सब इम्यूनिटी को बढ़ाने और मरुस्थल में रहने वाले लोगों को यहां की जलवायु में ढालने में खासा उपयोगी होता है, लेकिन आज जब कोरोना वायरस के चलते इम्यूनिटी बढ़ाने की जरूरत है तो इस बार की रिकॉर्ड तोड़ सर्दी ने गर्मियों में राजस्थान के लोगों को इससे महरूम कर दिया है. पहले इसे सर्दियों ने मारा, इसके बाद गर्मियों में भी तापमान लगातार गिरता रहा और बीच-बीच में बारिश होती रही, इसके चलते कैर में जो पुष्प पल्लवित होना था, वह बिल्कुल नहीं हो पाया.
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कहा जाता है चेरी ऑफ डिजर्ट
जी हां, इस समय चेरी ऑफ डिजर्ट कहे जाने वाले कैर हरी सब्जियों से लदे हुए रहते थे, जो इस बार खुद पीले पड़ गए हैं. कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि रिकॉर्ड तोड़ सर्दी की वजह से राजस्थान के शुष्क जलवायु में पनपने वाले पेड़ भी मृत जैसे हो गए और इसलिए कैर भी अपने पुराने स्वरूप में नहीं लौट पाए. गर्मियों में इसका उल्टा हुआ और इस बार मार्च-अप्रैल का मौसम जितना तपना किए था. उतना नहीं तपा और इसलिए इस बार इन पर कैर लगे भी नहीं है.