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जयपुर: कोविड-19 महामारी के दौरान स्तनपान के महत्व और लाभों को लेकर आयोजित हुआ वेबिनार - Rajasthan News

विश्व स्तनपान सप्ताह के दौरान साल 2020 के लिए थीम 'सपोर्ट ब्रेस्ट फीडिंग फॉर ए हेल्थिअर प्लेनेट' रखी गई. इसके तहत विभिन्न कार्यकर्मों के जरिए माताओं और अभिभावकों को जागरूक किया जा रहा है. इसी कड़ी में यूनिसेफ राजस्थान की पोषण टीम और राज्य सरकार के रीजनल सेंटर ऑफ एक्सीलेंस के संयुक्त तत्वावधान में कोविड-19 महामारी के दौरान स्तनपान के महत्व और लाभों पर वेबिनार का आयोजन बुधवार को किया गया.

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स्तनपान के महत्व और लाभों को लेकर किया जा रहा जागरूक

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Published : Aug 13, 2020, 3:01 AM IST

जयपुर.दुनिया भर में अगस्त महीने का पहला सप्ताह विश्व स्तनपान सप्ताह के तौर पर मनाया जाता है. इस दौरान साल 2020 के लिए थीम 'सपोर्ट ब्रेस्ट फीडिंग फॉर ए हेल्थिअर प्लेनेट' रखी गई है. इसके तहत विभिन्न कार्यकर्मों के जरिए माताओं और अभिभावकों को जागरूक किया जा रहा है. उन्हें बताया जा रहा है कि नवजात को स्तनपान कराना कितना फायदेमंद और जरूरी है.

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इसी थीम के आधार पर विश्व स्वास्थ्य संगठन और यूनिसेफ महिलाओं को कुशल स्तनपान परामर्श उपलब्ध कराने के लिए सरकारों के साथ सहयोग और आह्वान कर रहा है, जिससे स्तनपान की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिल सके. इसी कड़ी में यूनिसेफ राजस्थान की पोषण टीम और राज्य सरकार के रीजनल सेंटर ऑफ एक्सीलेंस के संयुक्त तत्वावधान में कोविड-19 महामारी के दौरान स्तनपान के महत्व और लाभों पर वेबिनार का आयोजन बुधवार को किया गया.

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इस वेबीनार में करीब 117 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया. इसके साथ ही महिला एवं बाल विकास विभाग और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग की ओर से स्तनपान सप्ताह के मौके पर पत्र जारी करने और राज्य स्तर पर वितरित करने के लिए पोषण अभियान से संबंधित ऑडियो विजुअल सामग्री भी उपलब्ध कराई गई.

चौमूं के विजय और सुमन का नवजात शिशु फिर से हुआ स्वस्थ्य
स्तनपान के प्रति जागरूकता बढ़ाने के प्रयासों के सकारात्मक नतीजे भी मिले हैं. जयपुर में चौमू के बांसा अनंतपुरा गांव में रहने वाले किसान विजय की पत्नी सुमन ने पिछले महीने 3 जुलाई को एक स्वस्थ्य बच्चे को जन्म दिया है, जिसका जन्म के समय वजन 2 किलो 700 ग्राम था. लेकिन, स्तन में 'इनवर्टेड निपल' विकृति होने की वजह से सुमन अपने नवजात को ना तो प्रसव के एक घंटे के भीतर और ना ही बाद में स्तनपान करा सकी, जिससे वो कमजोर और बीमार हो गया. बच्चे को पाउडर का दूध देने की वजह से उसे डायरिया हो गया और उसका वजन भी तेजी से गिरने लगा. ऐसे में विजय ने क्षेत्र में कार्यरत सांस्कृतिकी संस्थान के उन कार्यकर्ताओं से संपर्क किया, जो वहां स्तनपान और पोषण से जुड़ी गतिविधियां संचालित कर रहे थे. इन स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के सुझाए अनुसार सुमन सिरिंज तकनीक के जरिए अपने बच्चे को स्तनपान करा सकी. बच्चे को पाउडर का दूध देना बंद कर दिया गया और इसके बाद कुछ ही दिनों में बच्चे का वजन बढ़कर साढ़े तीन किलो हो गया.

स्तनपान के प्रति जागरुकता बढ़ाने से बच सकती है बच्चों की जान

बता दें कि राष्ट्रीय परिवार एवं स्वास्थ्य के सर्वे (एनएफएचएस-4 2015-16) के अनुसार राजस्थान में 58.2 प्रतिशत बच्चों को छह महीने की आयु तक एक्सक्लूसिव स्तनपान करवाया गया, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर ये आंकड़ा 55 प्रतिशत है. स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार स्तनपान के अभाव में बच्चे कुपोषित हो जाते हैं और 45 प्रतिशत बच्चों की मृत्यु में कुपोषण भी एक बड़ा कारण होता है. अगर जन्म के एक घंटे के भीतर नवजात को स्तनपान शुरू कर दिया जाए तो इनमें से 22 प्रतिशत नवजात शिशुओं की जान बचाई जा सकती है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक विश्लेषण के अनुसार अगर स्तनपान की प्रवृत्ति में बढ़ोतरी होती है तो 5 वर्ष तक की आयु के करीब 8 लाख 20 हजार बच्चों की जान हर वर्ष बचाई जा सकती है.

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