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कोरोना का असर: कोटपूतली में सड़क के लिए चल रहा धरना स्थगित

कोरोना वायरस के चलते पूरे देश में कर्फ्यू का माहौल चल रहा है. ऐसे में देशभर में चल रहे धरने भी स्थगित हो रहे हैं. इसी कड़ी में जयपुर के गोवर्धनपुरा में चल रहा धरना भी स्थगित कर दिया गया है.

कोरोना का असर, corona effect
सड़क धरना स्थगित

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Published : Mar 23, 2020, 12:08 PM IST

कोटपुतली (जयपुर).कोरोना के चलते कोटपूतली के गोवर्धनपुरा में चल रहा धरना भी स्थगित कर दिया गया है. चौलाई-गोवर्धनपुरा सड़क निर्माण की मांग पर ये धरना पिछके 10 दिन से चल रहा था.

ग्रामीणों का आरोप है कि इस सड़क पर एक बड़ा सीमेंट प्लांट स्थित है और उसी पर आने-जाने वाले भारी वाहनों की वजह से इस सड़क की दुर्दशा हुई है. लेकिन अब सड़क बनाने की जिम्मेदारी न वो कंपनी ले रही है और न ही सरकार.

कोटपूतली में सड़क के लिए चल रहा धरना स्थगित

चौलाई और गोवर्धनपुरा को जोड़ने वाली सड़क पिछले 5-7 साल से बहुत ही खराब हालत में है. इस सड़क के एक तरफ सीकर स्टेट हाईवे है तो दूसरी तरफ NH 48. वहीं सड़क पर देश के सबसे बड़े सीमेंट प्लांट में से एक प्लांट भी स्थित है. सरकारी खजाने में तगड़ा राजस्व देने वाला इलाका होने के बावजूद गांव वालों को 10 दिन तक सड़क के लिए अनशन करना पड़ा.

वहीं अब कोरोना इफ़ेक्ट और राजस्थान में धारा 144 के मद्देनजर अनशन स्थगित हो गया है. ग्रामीणों का कहना है कि सड़क नहीं बनी तो फिर से धरना देंगे. करीब 10 किलोमीटर के इस रूट पर इतने बड़े-बड़े गड्ढे हैं कि गाड़ियां भी हिचकोलें खाते चलती हैं. इस सड़क पर चौलाई, गोवर्धनपुरा, कांसली, जोधपुरा, मोहनपुरा जैसे दर्जनों गांव पड़ते हैं. लेकिन कोई भी इस सड़क की सुध नहीं ले रहा है.

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मोहनपुरा में करीब 15 साल पहले लगे इस सीमेंट प्लांट को ही गांव वाले विनाश का कारण मान रहे हैं. ग्रामीणों का कहना है कि विकास के बदले उनके हिस्से सिर्फ धूल के उड़ते गुबार, सिलिकोसिस, टीबी जैसी बीमारियां और गिरता भू जल स्तर ही आया है. गांव वालों ने बताया कि हमने कंपनी के प्रतिनिधियों से अपना पक्ष रखने की गुजारिश की लेकिन वे नहीं आए.

हालांकि कंपनी का दावा है कि DMFT में उनकी तरफ से 40 करोड़ रुपए से ज्यादा जमा कराए गए हैं. PWD का भी दावा है कि सरकार को 9 करोड़ से ज्यादा का प्रस्ताव भिजवाया जा चुका है. सवाल उठता है कि इस खस्ता हालत का जिम्मेदार कौन है. कंपनी पैसा देने की बात कहती है. सड़क बनाने वाला विभाग प्रस्ताव की बात कहता है. जबकि जनप्रतिनिधि यहां आने की जहमत तक नहीं उठाते. अब देखने वाली बात ये होगी कि क्या PWD के प्रस्ताव के मुताबिक सड़क बन जाती है या फिर ग्रामीणों को दोबारा से अनशन पर मजबूर होना पड़ेगा.

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