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स्वतंत्रता के बाद भी शिक्षा के क्षेत्र में भारतीयता को लेकर ठोस प्रयास नहीं हुए- दत्तात्रेय होसबोले

शिक्षा में भारतीयता व्यवस्था परिवर्तन विषय पर आयोजित गोष्ठी में बोलते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले ने कहा कि विदेशी आक्रांताओं और यहां जिन्होंने राज चलाया उन्होंने देश की प्रज्ञा (बुद्धि) को नष्ट करने का हर संभव प्रयास किया. साथ ही स्वतंत्रता के बाद में भी शिक्षा के क्षेत्र में भारतीयता को लेकर जो प्रयास किए जा सकते थे, वो क्यों नहीं कर पाए.

dattatreya hosabale
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Dec 26, 2023, 10:54 PM IST

शिक्षा में भारतीयता व्यवस्था परिवर्तन विषय पर गोष्ठी का आयोजन

जयपुर. राजधानी में शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास की ओर से आयोजित कार्यक्रम में शिक्षा में भारतीयता व्यवस्था परिवर्तन पर गोष्ठी का आयोजन हुआ. गोष्ठी में बोलते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर कार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले ने कहा कि शिक्षा सिर्फ इनफॉरमेशन नहीं बल्कि ज्ञान और विवेक जागृत करती है. विश्व की सभ्यताओं में भारत महान परंपराओं का वारिस रहा है, लेकिन दुर्भाग्य से स्वतंत्रता के बाद की पीढ़ी इस महानता को समझ नहीं पाई. विदेशी आक्रांताओं और यहां जिन्होंने राज चलाया उन्होंने देश की प्रज्ञा (बुद्धि) को नष्ट करने का हर संभव प्रयास किया. स्वतंत्रता के बाद में भी शिक्षा के क्षेत्र में भारतीयता को लेकर जो प्रयास किए जा सकते थे, वो क्यों नहीं कर पाए.

होसबोले ने कहा कि इसके विरुद्ध दिशा में समाज की नई पीढ़ी के मन को विकृत करने के प्रयास हुए. इस कारण से इतने वर्षों के बाद भी हमें शिक्षा के भारतीयकरण के बारे में, भारत केंद्रित शिक्षा के बारे में चर्चा करनी पड़ रही है, लेकिन नई शिक्षा नीति लागू होने से अब शिक्षा में भारतीयता की ओर एक कदम बढ़ाया गया है. उन्होंने कहा कि आज देश के सामने आर्थिक और देश की सुरक्षा की चुनौतियां हैं. ऐसे में आज शिक्षा केवल अपना जीवन अच्छा होने के लिए नहीं, बल्कि विश्व के लिए भी श्रेष्ठ उत्तर देने के लिए होनी चाहिए.

हम आक्रांताओं की प्रशंसा पढ़ाते रहे : इस गोष्ठी में विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी ने कहा कि 1191-92 के बाद आने वाले मुस्लिम आक्रांताओं, मुगलों और अंग्रेजों ने भारत की शिक्षा व्यवस्था को नष्ट करने का हर संभव प्रयास किया, लेकिन हमारी जड़ें इतनी गहरी थी कि भारत से भारतीयता को समाप्त नहीं कर सके. हमारा दुर्भाग्य ये रहा कि 1947 से देश की आजादी के बाद आने वाले शासकों ने शिक्षा को मैकाले की शिक्षा पद्धति के आधार पर ही चलाने का प्रयास किया. जानबूझकर 1192 से लेकर 1946 के बीच के इतिहासकारों की ओर से लिखित स्वयं के कालखंड को गौरवान्वित करने वाली शिक्षा को हम ढोते रहे. अकबर को महान पढ़ाते रहे, ताजमहल को विश्व का सातवां आश्चर्य बताते रहे, संस्कृत विद्यालयों को तोड़ने वाले आक्रांताओं की प्रशंसा पढ़ाते रहे, जबकि आजाद भारत के अंदर भारत के गौरवशाली इतिहास को पढ़ाना चाहिए था. बीजेपी सरकार के पिछले कार्यकाल में कुछ पाठ जोड़े थे, जिनमें से कुछ आज भी विद्यमान हैं. भारतीयता से जुड़ा हुआ पाठ्यक्रम होगा तो छात्रों में भी भारतीयता का भाव रहेगा, लेकिन जरूरी है उसको पढ़ाने वाले शिक्षकों की मानसिकता भी परिवर्तित हो.

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नई शिक्षा नीति भारत केंद्रित: कार्यक्रम में मुख्य वक्ता रहे शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के राष्ट्रीय सचिव अतुल भाई कोठारी ने कहा कि सौभाग्य से वर्तमान सरकार ने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू की, जो पूरी तरह भारत केंद्रित है. इस नीति के कारण शिक्षा में भारतीयता के विषय को गति मिली है. नई नीति में भारतीय भाषाओं में शिक्षा की बात की है, लेकिन पिछले 175 वर्षों से हमारे देश की सारी व्यवस्थाओं में से धीरे-धीरे भारतीयता गायब होती चली गई और एक स्थिति देश में ऐसी आई कि जो कुछ पश्चिम से आए, वो श्रेष्ठ है. ऐसे बुद्धिजीवी, ऐसा विद्वान वर्ग का निर्माण हुआ, जिससे भारतीयता का मानस बना कि जितना हमारा है, वो गलत है और जितना पश्चिम से आ रहा है, वो सब सही है. जिसका संपूर्ण समाज पर प्रभाव दिखाई दिया. गोष्ठी में भारतीय विश्वविद्यालय संघ के महासचिव डॉ पंकज मित्तल, झोटवाड़ा विधायक राज्यवर्धन सिंह राठौड़, विधायक जोगेश्वर गर्ग, पूर्व बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष अशोक परनामी सहित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विभिन्न आयामों से जुड़े कार्यकर्ता मौजूद रहे. इस दौरान "उच्च शिक्षा में भारतीय दृष्टि" पुस्तक का भी विमोचन किया गया.

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