जयपुर.राजस्थान हाईकोर्ट ने लेबर कोर्ट भरतपुर की ओर से जारी 15 नवंबर 2019 के उस आदेश को बरकरार रखा है, जिसमें 35 साल पहले बर्खास्त किए श्रमिकों को बहाल करने की बजाए उन्हें मुआवजा दिए जाने का आदेश दिया था. हालांकि अदालत ने लेबर कोर्ट की ओर से तय किए 50 हजार रुपए हर्जाने को अपर्याप्त मानते हुए इसे बढाकर एक लाख रुपए कर दिया है.
अदालत ने कहा कि तीन माह में बढ़ी हुई हर्जाना राशि अदा की जाए. ऐसा नहीं करने पर अदालत ने हर्जाना राशि पर नौ फीसदी ब्याज भी अदा करने को कहा है. जस्टिस अनूप कुमार ढंड ने यह आदेश हीरालाल व जीवन सहित अन्य श्रमिकों की याचिकाओं पर दिए. याचिकाओं में अधिवक्ता विजय पाठक ने बताया कि याचिकाकर्ताओं ने वर्ष 1986 से वर्ष 1988 तक करौली जिले के श्री महावीर जी उपखंड के सिंचाई विभाग में दैनिक वेतन भोगी श्रमिक के तौर पर काम किया था.
पढ़ेंः Rajasthan : पुरुष आयोग के गठन की मांग, राजस्थान हाईकोर्ट में पेश की गई जनहित याचिका
वहीं, बाद में आईडी एक्ट की पालना में उनकी सेवाओं को खत्म कर दिया. इस दौरान न तो उन्हें नोटिस दिया गया और न ही सुनवाई का मौका मिला, जबकि विभाग को नियमों की पालना करनी चाहिए थी. इस आदेश को याचिकाकर्ता श्रमिकों ने लेबर कोर्ट, भरतपुर में चुनौती देते हुए उन्हें बहाल करने का आग्रह किया. लेबर कोर्ट ने 15 नवंबर 2019 को याचिकाकर्ताओं के पक्ष में अवार्ड जारी कर माना कि श्रमिकों ने एक कैलेंडर वर्ष में 240 दिन काम किया है. ऐसे में उनकी सेवा खत्म करना अवैध है. श्रमिकों को वर्ष 1988 में बर्खास्त किया था और इसे बहुत ज्यादा समय हो गया है. इसलिए उन्हें बहाल करने का आदेश देने की बजाए बहाली के बदले 50 हजार रुपए हर्जाना दिलवाना सही होगा. लेबर कोर्ट के इस अवार्ड को याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट में चुनौती दी. जिस पर सुनवाई करते हुए अदालत ने लेबर कोर्ट के आदेश को सही मानते हुए मुआवजा राशि को बढ़ाकर दोगुना कर दिया है.