राजस्थान की पहली महिला सर्जन डॉ. मालती गुप्ता जयपुर.भगवान के बाद अगर कोई जिंदगी की सलामती बख्श सकता है तो वो है डॉक्टर, जिस पर इंसान सबसे ज्यादा भरोसा करता है. ऐसा इसलिए क्योंकि डॉक्टर ही वो शख्स है, जो मरीज की पीड़ा को समझ उसे शारीरिक और मानसिक तनाव से मुक्ति दिलाता है. वहीं, आज हम एक ऐसी महिला चिकित्सक के बारे में बताएंगे, जिसे उसके अथक परिश्रम व बेमिसाल योगदान के बारे में जाना जाता है.
भले ही अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस को अभी दो दिन शेष बचे हैं, लेकिन सम्मान की कड़ियां कभी समय की मोहताज नहीं रही है. डॉ. मालती गुप्ता राजस्थान की पहली महिला प्लास्टिक सर्जन हैं. जिन्होंने पुरुषों के एकाधिकार वाले क्षेत्र में कदम ही नहीं रखा, बल्कि खुद को और से जुदा व बेहतर साबित करके दिखाया. आज मालती सैकड़ों महिलाओं और बेटियों के लिए नजीर बन गई हैं. वहीं, अपने पेशा के इतर डॉ. मालती समाज में व्याप्त घूंघट प्रथा को चुनौती देकर बेटियों को नित्य आगे लाने को लगातार काम कर रही हैं.
मां के पास रहना था, सो बन गईं डॉक्टर -डॉ. मालती बताती हैं - ''मेरी डॉक्टर बनने की शुरुआत तो बचपन में ही हो गई थी, तब मैं छोटी थी. देखती थी कि मेरी मां की तबीयत खराब होने पर मुझे उनसे दूर कर दिया जाता था. मां को देखने के लिए डॉक्टर घर आते थे. डॉक्टर मां को दवा देते थे. हालांकि तबीयत ठीक होने पर वो वापस मां की गोद में चली जाती थी.'' डॉ. मालती आगे बताती हैं - ''एक दिन वो अपनी मां से पूछी कि जो उन्हें दवा देकर गए हैं, वो कौन हैं. इस पर उनकी मां ने उन्हें बताया कि वो डॉक्टर साहब थे. यह जानने के बाद ही मालती ने डॉक्टर बनने की ठानी. ताकि वो अपनी मां का इलाज कर सके और उनके पास रह सके.''
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प्रदेश की पहली महिला प्लास्टिक सर्जन -डॉ. मालती बताती हैं - '' उनका परिवार शिक्षित था. ऐसे में उन्हें कभी भी पढ़ाई को लेकर किसी भी प्रकार की दिक्कत पेश नहीं आई. लेकिन उनके डॉक्टर बनने के बाद ब्रांच सर्जरी चुनते समय उन्हें दिक्कत आई.'' आगे उन्होंने बताया - ''मैं चाहती थी कि सर्जन बनूं और उसके लिए मैंने जब अप्लाई किया तो मुझे मना कर दिया गया. कहा गया कि लड़कियां सर्जरी नहीं कर सकती है, क्योंकि सर्जरी में बहुत दिक्कतें पेश आती है और लंबे समय तक ऑपरेशन करना पड़ता है. लेकिन मैंने इस चुनौती को स्वीकार किया और कहा कि नहीं मुझे सिर्फ सर्जरी ही करना है.'' मालती कहती हैं - ''चुनौतियां तो जीवन का एक हिस्सा है, जिसे हम बचपन से ही देखते आते हैं. ऐसे में उनका सामना करना चाहिए. चुनौतियों से घबराने की बजाय उसे स्वीकार कर आगे बढ़ाने की कोशिश करनी चाहिए. तभी सफलता मिलती है और कुछ ऐसा ही उनके साथ भी हुआ.'' डॉ. मालती ने बताया- ''मैंने सर्जरी में ही प्रैक्टिस की. जब मैंने सर्जरी ब्रांच को चुना तब तक मुझे पता नहीं था कि राजस्थान में किसी महिला डॉक्टर ने पहले सर्जरी में प्रैक्टिस नहीं की है. जब कोर्स पूरा हुआ तो उन्हें इसके बारे में पता चला.
हनी गर्ल बनी मालती गुप्ता - डॉ. मालती गुप्ता को हनी गर्ल के नाम से भी जाता है. प्रदेश की प्रथम एमसीएच डिग्री प्राप्त कर प्लास्टिक सर्जन व शहद में मानव त्वचा को सुरक्षित रखने की तकनीक पर शोध करने वाली वो विश्व की एकमात्र शख्सियत हैं. हाल ही में सवाई मानसिंह मेडिकल कॉलेज की प्लेटिनम जुबली समारोह में डिस्टिंग्विष्ट एल्स अवार्ड से उन्हें सम्मानित किया गया था. उन्हें यह सम्मान राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने दिया था. इससे पहले प्लास्टिक सर्जरी में उत्कृष्ट योगदान के लिए उन्हें साल 2004 में तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने भी लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड से नवाजा गया था. वहीं, 1998 में नेशनल एकडेमी ऑफ बर्न इंडिया की ओर से भी डॉ. मालती को लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है.
घूंघट को लेकर चलाई मुहिम -राजस्थान में घूंघट एक रूढ़िवादी प्रथा है. डॉक्टर गुप्ता ने इसके खिलाफ मुहिम चलाई. डॉ. मालती बताती हैं - ''2016 में जब वो अपने गांव गई तो वहां महिला सरपंच थी. जब वो उनसे मिलने पहुंची तो वो घूंघट निकाले बैठी थीं. ऐसे में वो उनसे पूछी कि आप घूंघट में क्यों है. इस पर महिला सरपंच ने जवाब दिया कि यह रीति रिवाज है, जिसे सभी को फॉलो करना पड़ता है.''
हालांकि, डॉ. गुप्ता कहती हैं कि ये रिवाज मुगलकाल में आया था. सामाजिक परिस्थिति से निजात पाने को महिलाएं घूंघट का सहारा लिया करती थी. लेकिन आज देश-काल-परिस्थितियां वैसी नहीं हैं. ऐसे में इस प्रथा से महिलाओं को बाहर निकालने के लिए उन्होंने मुहिम चलाई. जिसमें उन्हें काफी हद तक सफलता भी मिली. मौजूदा आलम यह है कि आज कई गांवों में घूंघट प्रथा पूरी तरह से खत्म हो गई है.
डॉ. मालती जलने पर बरती जाने वाली सावधनियों पर बात करते हुए कहती हैं कि हमें ये सोचना पड़ेगा कि जिस तरह से ज से जल है, वैसे ही ज जलना भी है. मतलब अगर हम घर पर या बहार किसी भी तरह से जल जाते हैं तो किसी तरह से टूथपेस्ट, मिटटी या कोई अन्य घरेलू उपचार नहीं करना चाहिए. जलने पर सबसे पहले नॉर्मल टेंपरेचर का पानी तब तक डालना चाहिए जब तक कि जलन खत्म न हो जाए. उन्होंने आगे सावधान किया कि ठंडे पानी से या फिर बर्फ का इस्तेमाल बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए. अगर फफोले पड़ जाते हैं तो वह भी एक सकारात्मक संकेत है, जिससे पता चलता है कि आपका ब्लड सर्कुलेशन प्रॉपर है. वहीं, अगर फफोले नहीं पड़ते हैं तो जलन खत्म होने के बाद डॉक्टर की सलाह से उपचार करना चाहिए.