जयपुर.छोटी काशी के ब्रह्मपुरी क्षेत्र में एक ऐसा शिवालय है जहां सूर्य की किरणों से समय की गणना की जाती थी. यहां शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा की रोशनी भगवान शिव के सामने रखे भोग पर पड़ती थी. यही नहीं उगते सूर्य उत्तरायण में हो या दक्षिणायन यहां सूर्य की किरणें इस शिवलिंग पर पड़ती थी. हालांकि समय के साथ-साथ क्षेत्र में खड़ी हुई इमारतों के बीच अब यह प्राकृतिक घड़ी बंद हो गई. लेकिन भगवान भोलेनाथ की महिमा बनी हुई है. यही नहीं स्थानीय लोगों ने पहल करते हुए शिवलिंग पर चढ़ा पवित्र जल नालों में ना जाए, इसके लिए यहां वाटर हार्वेस्टिंग भी की गई है. वहीं ये मंदिर पंचकोण के बीच मौजूद है, जहां से 5 रास्ते निकलते हैं.
जयपुर की बसावट के दौरान अस्तित्व में आया जागेश्वर महादेव मन्दिर जहां शिवलिंग स्वयंभू हैं. यानी भगवान भोलेनाथ यहां स्वयं प्रकटे. इस मंदिर में मूर्ती एकलिंग रूप में है. इनके साथ पार्वती जी नहीं हैं. मंदिर परिवार से जुड़े शंभू दयाल भट्ट ने बताया कि इस मन्दिर को जयपुर के विद्वानों ने साक्षात जागृत मंदिर कहा है. इस मंदिर में महादेवजी के शिवलिंग पर वर्ष में एक बार केवल शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा की किरणें पड़ती हैं. वहीं इस मंदिर में एक ऐसा स्थान है जहां सूर्य की किरणें ऐसे स्थान पर पड़ती थी जहां से समय की गणना की जाती थी.
उन्होंने बताया कि इस मन्दिर के प्रादुर्भाव के संबंध में एक किवदन्ती है कि महाराजा जयसिंह के गुरु रत्नाकर पौंडरिक आमेर स्थित अंबिकेश्वर महादेव की पूजा अर्चना के बाद ही भोजन ग्रहण करते थे. एक बार आयु अधिक हो जाने के स्वास्थ्य कारण से पौंडरिक 3-4 दिन अंबिकेश्वर मंदिर में भगवान शिव की पूजा नहीं कर पाए. जिस कारण उन्होंने अन्न ग्रहण नहीं किया. उन्हें रात को स्वप्न आया कि 'जिसमें भगवान कह रहे थे कि मैं तो तेरे पास ही हूं, तब पौंडरिक ने पूछा कि पास से तात्पर्य क्या है? इस पर भगवान ने बताया कि उसके घर के सामने जो टीला है, उसी के नीचे वो हैं.
उन दिनों ब्रह्मपुरी में जगह-जगह बालू मिट्टी के टीले थे. तब रत्नाकर पौंडरिक ने स्थान की पहचान के लिए पूछा कि वो कैसे उस स्थन को पहचानेंगे. तब भगवान ने कहा कि अगले दिन गोधुली बेला के समय एक गाय आकर जिस स्थान पर खड़ी होगी और उसके स्तनों से स्वत: दूध की धारा बहेगी, बस वहीं पर खुदाई के बाद वो प्रकट हो जाएंगे. ऐसा ही हुआ. हालांकि अंबिकेश्वर की तर्ज पर यहां शिवलिंग को ढूंढने के लिए ज्यादा खुदाई की जा रही थी, लेकिन यहां भगवान का विग्रह ऊंचाई पर ही प्रकट हो गया.