धौलपुर.राजस्थान के सियासी जमीन पर चुनावी हलचल शुरू हो चुकी है. भाजपा-कांग्रेस समेत कई अन्य दल राजस्थान के चुनावी मैदान को फतह करते हुए सियासी ताज पहनने के लिए बिसात बिछा रहे हैं. राजनीतिक दलों की ओर से बुनी जा रही रणनीति के बीच आज हम आपको चंबल नदी के किनारे स्थित धौलपुर जिले के राजाखेड़ा विधानसभा सीट के लेखाजोखा को बता रहे हैं.
राजाखेड़ा विधानसभा सीटकांग्रेस की पारंपरिक सीट मानी जाती है. कांग्रेस के कद्दावर नेता एवं पूर्व मंत्री प्रद्युम्न सिंह का इस सीट पर साल 1967 से दबदबा चला आ रहा है. अपने राजनीतिक सफर में उनको पराजय का मुंह भी देखना पड़ा है, लेकिन अधिकांश चुनाव में जीत हासिल हुई है. राजाखेड़ा सीट से वर्तमान में कांग्रेस नेता प्रद्युम्न सिंह के बेटे रोहित बोहरा विधायक हैं.
प्रद्युम्न सिंह एवं कांग्रेस का रहा यहां वर्चस्वःराजाखेड़ा विधानसभा क्षेत्र में अब तक जितने भी चुनाव हुए, उनमें कांग्रेस का ही वर्चस्व ज्यादा रहा है. इस सीट पर हुए चुनाव में दस बार कांग्रेस को जीत हासिल हुई है. वहीं, दो बार भाजपा, एक बार लोकदल एवं दो बार निर्दलीय उम्मीदवारों को यहां विधायकी मिली है. इस सीट पर पहला चुनाव वर्ष 1957 में महेन्द्र सिंह ने निर्दलीय रूप में जीता था. इसके बाद 1962 में राजस्थान वित्त आयोग के चेयरमैन प्रद्युम्न सिंह के पिता प्रताप सिंह कांग्रेस से चुनाव जीते थे. वहीं, इसके बाद 1965 में कांग्रेस से दामोदर लाल व्यास, 1967 और 72 के चुनाव में कांग्रेस से प्रद्युम्न सिंह चुनाव जीते थे. वहीं 1977 के चुनाव में प्रद्युम्न सिंह ने निर्दलीय रूप में जीत हासिल की थी.
1980 में प्रद्युम्न सिंह एक बार फिर कांग्रेस के बैनर तले मैदान में उतरे और चुनाव में जीत हासिल की. इसके बाद 1985 में कांग्रेस के राष्ट्रिय महासचिव मोहनप्रकाश शर्मा ने एलकेडी से चुनाव जीता था. 1990 में ये सीट एक बार फिर कांग्रेस के कद्दावर नेता प्रद्युम्न सिंह के पास चली गई. 1994 में इस सीट पर भाजपा की मनोरमा सिंह ने सेंध लगाते हुए जीत हासिल की, लेकिन 1998 और 2003 के चुनाव में इस सीट से फिर प्रद्युम्न सिंह ही काबिज रहे. 2008 में प्रद्युम्न सिंह के चचेरे भाई रविन्द्र सिंह बोहरा भाजपा से चुनाव जीते, लेकिन 2013 में इस सीट से दोबारा प्रद्युम्न सिंह कांग्रेस के टिकट पर काबिज हो गए. वहीं, पिछले चुनाव में इस सीट से प्रद्युम्न सिंह के पुत्र रोहित बोहरा मैदान में उतरे और जीत हासिल की. पिछले चुनावों का इतिहास बताता है कि इस सीट पर कांग्रेस और उससे ज्यादा प्रद्युम्न सिंह का दबदबा रहता आया है.
इस चुनाव में हो सकता है कांटे का मुकाबलाःराजाखेड़ा विधानसभा सीट पर 10 बार कांग्रेस को जीत हासिल हुई है. यहां से कांग्रेस के कद्दावर नेता प्रद्युम्न सिंह के ईर्द-गिर्द ही इस सीट पर जीत-हार होती रही है, लेकिन इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव में यहां कांटे का मुकाबला देखने को मिल सकता है. भाजपा से पूर्व मंत्री बनवारी लाल शर्मा की पुत्रवधू नीरजा शर्मा की राजाखेड़ा विधानसभा क्षेत्र से प्रबल दावेदारी मानी जा रही है. वर्ष 2018 के चुनाव में पूर्व मंत्री बनवारीलाल शर्मा के पुत्र अशोक शर्मा ने इस सीट से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ कर रोहित बोहरा को कांटे की टक्कर दी थी, लेकिन चुनाव लड़ने का समय कम मिलने के कारण उनको हार का मुंह देखना पड़ा था.
पिछले साल अशोक शर्मा का दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया. ऐसे में अशोक शर्मा की पत्नी नीरजा शर्मा पुत्र दुष्यंत शर्मा एवं बेटी मालविका मुदगल के साथ मैदान में उतर चुकी हैं. डोर टू डोर जनसंपर्क कर राज्य सरकार की नाकामियों को बताकर लोगों को रिझाने की कोशिश कर रही हैं. उधर विधायक रोहित बोहरा भी मैदान में हैं. महंगाई राहत कैंपों में जाकर लोगों से रूबरू हो रहे हैं. राज्य सरकार की जन कल्याणकारी योजनाओं से लोगों को अवगत कराते हुए उनके फायदे गिना रहे हैं.
सहानुभूति की लहर चली तो...: राजाखेड़ा विधानसभा सीट प्रद्युम्न सिंह एवं उनके परिवार की पारंपरिक सीट मानी जाती है, लेकिन इस क्षेत्र में ब्राह्मण मतदाता खासा असर रखता है. इस विधानसभा क्षेत्र में करीब 40,000 ब्राह्मण मतदाता हैं. जानकारों की मानें तो जातिगत आंकड़ा एवं अशोक शर्मा के निधन के बाद उनकी पत्नी नीरजा शर्मा को अन्य समाजों की सहानुभूति मिल सकती है. वहीं, दूसरा पहलू पूर्व मंत्री बनवारी लाल शर्मा का राजस्थान की सियासत में विगत 50 साल से दबदबा रहा है. धौलपुर जिले में ब्राह्मण समाज में उन्हें प्रमुख नेता के रूप में देखा जाता है.
लोकसभा में भाजपा को मिली थी बढ़तः राजाखेड़ा विधानसभा क्षेत्र कांग्रेस का गढ़ माना जाता है, लेकिन लोकसभा चुनाव में भाजपा को बढ़त मिली थी. वर्तमान सांसद डॉ मनोज राजोरिया लगभग 38000 मतों से पिछले लोकसभा चुनाव में आगे रहे थे. लोकसभा चुनाव में मतदाता का मूड़ भाजपा के पक्ष में रहा.