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चूरू: विद्युत तकनीकी कर्मचारियों ने किया निजीकरण का विरोध

चूरू में विद्युत तकनीकी कर्मचारियों ने विद्युत कंपनियों के निजीकरण का विरोध किया. कर्मचारियों का कहना था कि इससे विद्युत निगमों का घाटा बढ़ रहा है और आम जनता का भी उत्पीड़न हो रहा है. कर्मचारियों ने मांगे नहीं मानने पर 15 दिन बाद प्रदेशव्यापी आंदोलन की चेतावनी दी.

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विद्युत तकनीकी कर्मचारियों ने किया निजीकरण का विरोध

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Published : Oct 21, 2020, 9:02 PM IST

चूरू. जिला मुख्यालय के अधीक्षण अभियंता कार्यालय में बुधवार को निजीकरण के विरोध में राजस्थान विद्युत तकनीकी कर्मचारी एसोसिएशन के बैनर तले तकनीकी कर्मचारियों ने प्रदर्शन किया. कर्मचारियों ने अधीक्षण अभियंता कार्यालय और जिला कलेक्ट्रेट में नारेबाजी करते हुए निजीकरण का विरोध किया. विद्युत कर्मचारियों ने मुख्यमंत्री के नाम अधीक्षण अभियंता और जिला कलेक्टर को ज्ञापन सौंपा.

विद्युत कर्मचारियों ने निजीकरण का विरोध किया. प्रदर्शन कर रहे तकनीकी कर्मचारियों ने कहा कि आरवीपीएनएल, जेवीवीएनएल, जेडीवीवीएनएल, में चल रही प्रस्तावित FRT, MBC, ठेकाप्रथा, क्लस्टर, निजीकरण जैसी जनविरोधी नीतियां निगम व आम उपभोक्ताओं के हित मे नहीं है. ज्ञापन में 19 जुलाई 2001 से पूर्व विद्युत मंडल के समय में घाटा 700 करोड़ का था और घाटे की आड़ में विद्युत मंडल को 5 निगमों में बांटने का जनविरोधी फैसला लिया गया. जिससे आज विद्युत निगमों का घाटा 1 लाख करोड़ रुपए से भी ऊपर पहुंच गया है और लोसेज का ग्राफ भी बढ़ गया है.

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प्रदर्शन कर रहे कर्मचारियों ने कहा कि जिस प्रकार से विद्युत मंडल को पांच निगमों में बांटने का फैसला गलत साबित हुआ, उसी प्रकार FRT, MBC को बढ़ावा देने का फैसला भी आत्मघाती साबित होगा. विद्युत निगमों के घाटे का मूल कारण ठेका प्रथाओं को बढ़ावा देना है. ज्ञापन में बताया गया कि प्रारंभ में अजमेर, भीलवाड़ा, कोटा, भरतपुर को निजी हाथों में सौंपा गया. इन शहरों में प्राइवेट कंपनियों का जमकर विरोध हुआ.

शहरों में प्राइवेटाइजेशन से आम उपभोक्ताओं के यहां अधिक रीडिंग निकालने वाले मीटर लगाए गए और उपभोक्ताओं का जमकर उत्पीड़न किया गया. उन्होंने कहा बिना निजीकरण के भी अच्छा काम किया जा सकता है बस शर्त है कि आवश्यकतानुसार कर्मचारियों की भर्ती की जाए. ज्ञापन में चेतावनी दी गई कि यदि क्लस्टर निजीकरण जैसी जनविरोधी नीतियों को बंद करने का फैसला नहीं लिया गया तो 15 दिन बाद राज्यव्यापी आंदोलन किया जाएगा. जिसकी समस्त जिम्मेदारी राज्य सरकार व निगम प्रबंध की होगी.

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