चित्तौड़गढ़.जिला मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर दूर कोटा मार्ग स्थित बस्सी जिले की सबसे बड़ी ग्राम पंचायतों में शुमार है. इस कस्बे को यहां की काष्ठ कला ने एक नई पहचान दी है. यहां बड़ी संख्या में देसी के साथ साथ विदेशी पर्यटक भी पहुंचते रहे हैं. बस्सी का नाम आते ही हमारी आंखों के सामने लकड़ी के खिलौनों की तस्वीर उभर कर आती है. यहां करीब 3 दर्जन से अधिक परिवार लकड़ी के हाथी घोड़े और बेलन चकले के अलावा बेवाण बनाते रहे हैं. काष्ठ कला यानि की लकड़ी से बनने वाले सामान यहां की एक पहचान बन गई है लेकिन कोरोना महामारी के दौरान अब यह विलुप्त होती दिख रही है.
लकड़ी पर नक्काशी कर खिलौने बनाने के लिए मशहूर बस्सी का वुड कार्विंग उद्योग ठप यह कारोबार मुख्य तौर पर देसी विदेशी पर्यटकों के सहारे चल रहा था. बाहर के लोगों की डिमांड के चलते परिवार का हर व्यक्ति अपने इस परंपरागत पेशे को आगे बढ़ा रहा था. लेकिन जब से कोरोना ने दस्तक दी, लकड़ी से खिलौने तैयार करने वाले कारीगरों के हाथ थम गए. देसी विदेशी पर्यटकों का आना बंद हो गया. स्थानीय स्तर पर जिन जिन सामान की मांग रहती है धर्म स्थलों के बंद होने के कारण उस पर भी ग्रहण लग गया.
लकड़ी पर नक्काशी करके तैयार किया गया खिलौना हालत यह हो गई है कि पिछले डेढ़ साल से ऑर्डर पर बनाए गए बेवाण सहित लकड़ी के अन्य आइटम दुकानों से बाहर नहीं निकल पाए हैं. कई परिवारों के सामने भूखे मरने की नौबत आ गई. कोरोना महामारी का यह दौर कब तक चलेगा पता नहीं. इसे देखते हुए लकड़ी पर अपनी कलाकारी दिखाने वाले कारीगरों ने पुर्वजों के इस हुनर से अपने हाथ खींच रहे हैं.
स्थिति यह है कि अब काष्ठ कला के बाजार में सन्नाटा नजर आता है. बमुश्किल दो से तीन परिवार अब भी पीढ़ियों पुरानी अपनी परंपरा को जीवित रखने की कोशिश में जुटे हैं.
लकड़ी पर नक्काशी करता हुआ काष्ठ कारीगर ये खिलौने देश के साथ साथ विदेशी पर्यटकों में भी काफी लोकप्रिय हैं. कोरोना से पहले इन कारीगरों को मेहनत के हिसाब से पैसे भी मिल जाते थे लेकिन अब सब कुछ लगता है खत्म हो गया है. लॉकडाउन के बाद से कारोबार में कमी-
कारीगरों का कहना- कोरोना और लॉकडाउन के बाद से धंधा पूरी तरह से चौपट हो गया है. अब यहां पर पर्यटक नहीं आते हैं. अभी भी कोरोना वायरस से छुटकारा नहीं मिला. सरकार द्वारा मिली छूट के बाद सैलानी आते भी है तो पहले जैसे नहीं.
लकड़ी पर नक्काशी कर तैयार किए गए कुछ और खिलौने कारीगरों के सामने सबसे बड़ा संकट यह है कि वैसे भी विशेष किस्म की अड़ूसा की लकड़ी का संकट चल रहा है और पुलिस भी इसे लेकर काफी सख्त है. उधारी पर येन केन प्रकारेण लकड़ी की व्यवस्था कर भी ले तो माल नहीं बिक रहा.
सरकार से शिकायत है लेकिन उम्मीद भी है-
इन लोगों का कहना है कि हालात अब ऐसे बन चुके हैं कि लकड़ी खरीद तो ली लेकिन उसके पैसे देने के लिए नहीं है. लकड़ी से खिलौने तैयार करने वाले कारीगरों का कहना है कि अब उनके पास कोई रास्ता नहीं है जल्द ही अपना व्यवसाय बदलने की सोच रहे है ताकि अपना परिवार पाल सकें.
लकड़ी की नक्काशी करके तैयार किया गया खिलौना इन लोगों की सरकार से भी नाराजगी है. लॉकडाउन के दौरान कई तरह के पैकेज की गहलोत सरकार ने घोषणा की लेकिन इन परिवारों के लिए कुछ भी नहीं किया गया. अब इन लोगों की मांग है कि सरकार इन्हें भी कुछ राहत के नाम पर पैकेज दे जिससे अपने परिवार का भरण पोषण कर सकें.
सवाल सिर्फ इन परिवारों के लिए आर्थिक पैकेज का नहीं है बल्कि अगर सरकार इनके लिए कुछ करती है तो बदले में ये परिवार दशकों पुरानी अपनी इस काष्ठ परंपरा को बरकरार रख सकेंगे.