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स्पेशल रिपोर्ट : चित्तौड़गढ़ की बेडच पुलिया की रपट पर खतरे से खाली नहीं नौनिहालों के सपनों का सफर - नौनिहालों का सफर

चित्तौड़गढ़. शहर में बुधवार रात हल्की सी बारिश क्या हुई लोगों की जान हलक में आ गई. 4 दिन पहले हुई मूसलाधार के बाद जनजीवन अब तक पटरी पर नहीं आ पाया. वहीं बेडच नदी पर पानी की रपट चल रही है जहां से रोज स्कूल जाने वाले विद्यार्थी जान जोखिम में डालते हुए वहां से गुजर रहे हैं. देखिए स्पेशल रिपोर्ट...

Chittorgarh's Berach River, चित्तौड़गढ़ में बारिश

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Published : Sep 19, 2019, 11:39 PM IST

चित्तौड़गढ़. शहर में बीते 4 दिन से बारिश का दौर थम गया लेकिन चित्तौड़गढ़ शहर से निकल रही बेडच और गंभीरी नदी अब भी पूरे वेग से बह रही है. इसके चलते शहर से सटे कई गांवों से हजारों लोग जिला मुख्यालय पर बमुश्किल पहुंच पा रहे हैं. लेकिन बेडच किनारे स्थित धनेत सहित इस मार्ग पर बसे दर्जनों गांवों के लोगों के लिए जिला मुख्यालय पर पहुंचना खतरे से खाली नहीं कहा जा सकता.

पानी के बीच पुलिया की डगर, सैकड़ों नौनिहालों के सपनों का सफर

ईटीवी भारत संवाददाता गुरुवार को जिला मुख्यालय से इन गांवों को जोड़ने वाले रास्ते पर पहुंचा. बेडच नदी के बीच निकल रहा एनीकट कम काजवे इन गांव को जिला मुख्यालय से जोड़ने का मुख्य रास्ता है. दो से 3 फीट पानी के बहाव के बावजूद ग्रामीण अपनी जान को जोखिम में डालते हुए अपने गंतव्य की ओर बढ़ रहे थे. इस मार्ग पर धनेत के अलावा मित्रों की पीपली कशमोर घोसुंडा सहित करीब एक दर्जन गांव बसे हैं जिनके लिए चित्तौड़गढ़ शहर पहुंचने का यह एनीकट कम काजवे एक प्रकार से शॉर्टकट है. इन गांवों से करीब डेढ़ हजार बच्चे अपने भविष्य को संवारने के लिए प्रतिदिन इसी रास्ते से चित्तौड़गढ़ शहर पहुंचते हैं.

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चौंकाने वाली बात यह है कि 500 से अधिक बच्चे प्राइमरी एजुकेशन के लिए निजी स्कूल पहुंचते हैं. जिन्हें लाने ले जाने का रास्ता भी यही इस्तेमाल होता है. करीब 7 फीट चौड़ा यह काजवे फिलहाल पानी के बहाव को देखते हुए खतरे से खाली नहीं कहा जा सकता. बच्चों के अभिभावकों का कहना है कि यह सबसे शॉर्टकट रास्ता है. यहां से चित्तौड़गढ़ मात्र 3 किलोमीटर दूर पड़ता है जबकि बोदियाना नाले वाला रास्ता 10 से लेकर 12 किलोमीटर तक पड़ता है. इस कारण स्कूल बस वाले भी इसी रास्ते से बच्चों को लाते ले जाते हैं.

ग्रामीण इस बात को भी स्वीकार करते हैं कि यह रास्ता खतरे से खाली नहीं, क्योंकि आए दिन यहां हादसे हो रहे हैं. लेकिन शॉर्टकट अपनाने के लिए वे ये रास्ता चुनते हैं. ग्रामीणों के अनुसार प्राइमरी से लेकर हायर एजुकेशन तक करीब 1500 छात्र-छात्राएं प्रतिदिन इसी रास्ते से चित्तौड़गढ़ आते-जाते हैं. बच्चे जब तक घर नहीं पहुंचते चिंता बनी रहती है. उनका कहना है कि इस काजवे पर पुलिया बनाने की मांग लंबे समय से सरकार के समक्ष विचाराधीन है.

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नंगे पैर निकलना और भी खतरनाक
इस काजवे पर नंगे पैर निकलना और भी खतरनाक है. लगातार दो महीने से पानी बह रहा है. इसके चलते यहां पर काई जम गई है. जिससे फिसलन का खतरा कई गुना बढ़ गया है. अमूमन पानी को देखते हुए लोग अपने जूतों को उतार लेते हैं. ऐसे में तेज बहाव में काई के कारण फिसलने का खतरा हर पल रहता है. दोपहिया वाहन चलाना तो और भी खतरनाक है.

एक दर्जन स्कूल प्रभावित
बारिश के दिनों शहर के गांधीनगर स्कूल के अलावा आसपास के करीब एक दर्जन गांवों के स्कूलों में अध्यापन कार्य प्रभावित रहा. बारिश के चलते कई बार स्कूल बंद करने पड़ते हैं. बेगू उपखंड क्षेत्र के विद्यालय सबसे ज्यादा प्रभावित रहते हैं. यहां अब तक करीब 100 इंच तक पानी गिर चुका है.

अत्यधिक बारिश के चलते जिले भर के तमाम बांध तालाब पर चुके हैं और नदियां पूरे वेग पर बह रही हैं. राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय धनेत के प्रधानाचार्य चंद्रशेखर के अनुसार गांव से करीब डेढ़ हजार बच्चे चित्तौड़गढ़ पढ़ने को जाते हैं. आसपास के स्कूलों में चित्तौड़गढ़ से ही शिक्षक लोग पहुंचते हैं लेकिन काजवे पर खतरे को देखते हुए दूसरे रास्ते से पहुंचते हैं हालांकि वह काफी लंबा पड़ता है.

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