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चित्तौड़गढ़ में गाय के गोबर से बनाया रावण, पहली बार होगा लेटे हुए पुतले का दहन - राजस्थान न्यूज

चित्तौड़गढ़ में इस बार रावण के पुतले का दहन लेटे हुई पॉजिशन में किया जाएगा. कामधेनु दीपावली महोत्सव समिति के संयोजक कमलेश पुरोहित का दावा है कि अब तक रावण दहन को लेकर गलत मान्यताएं प्रचलित हैं.

Ravan Effigy
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Published : Oct 14, 2021, 8:19 PM IST

चित्तौड़गढ़.दशहरे के अवसर पर हर वर्ष धूमधाम से रावण का दहन किया जाता है. बड़े मेले लगते हैं, आतिशबाजी होती है. कोरोना के चलते दो वर्ष से सरकार ने बड़े आयोजन पर रोक लगाई हुई है. ऐसे समय में चित्तौड़गढ़ में गोनंदी संरक्षण समिति एवं श्री नीलिया महादेव गोशाला समिति ने रावण दहन की गलत मान्यताओं को दूर करने का बीड़ा उठाया है. इसके लिए देश में पहली बार गाय के गोबर से बने रावण के लेटे हुए पुतले का दहन होगा.

कामधेनु दीपावली महोत्सव समिति के संयोजक कमलेश पुरोहित ने बताया कि दशहरे के अवसर पर देश में पहली बार लंबे समय से चली आ रही परंपरा के विपरीत सनातन और शास्त्रों के अनुसार रावण दहन करने की तैयारी की जा रही है. इसके लिए रावण का करीब 8 फीट का पुतला गाय के गोबर और अन्य सामग्री से तैयार किया गया है. देश में पहली बार ऐसा होगा, जब रावण का दहन पुतले को खड़ा कर के नहीं, बल्कि लिटा कर किया जाएगा.

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दहन के दौरान सनातन परंपराओं में अंतिम संस्कार की समस्त क्रियाओं को पूरा किया जाएगा. उन्होंने बताया कि आयोजन समिति के संयोजक पंडित विष्णु दत्त शर्मा बताते हैं कि देश में लंबे समय से रावण दहन की गलत परंपरा चली आ रही है. इस परिपाटी को बदलने की जरूरत है. रावण ब्राह्मण, योद्धा व वीर था, तो उसके दहन पर शोक मनाने की आवश्यकता नहीं, बल्कि शास्त्रों के मुताबिक उसका दहन होना चाहिए.

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उन्होंने कहा कि वाल्मीकि रामायण में या अन्य शास्त्रों में कहीं भी रावण के दहन पर उत्सव या आतिशबाजी का उल्लेख नहीं है. बाजारवाद के इस दौर में रावण का दहन एक तमाशा बन गया है. हमारा प्रयास है कि इस तमाशे को खत्म कर दशहरे की सही और सार्थक परंपरा को आगे बढ़ाया जाए.

चित्तौड़गढ़ में दशहरे के अवसर पर रावण दहन के बाद दीपावली की तैयारियों के लिए भगवान राम के आगमन पर स्वागत के लिए 1008 गांव में गाय से बने दीपक भेजे जाएंगे, जिनका उपयोग दीपावली के अवसर पर मंदिरों पर रोशनी के लिए होगा. पुरोहित ने बताया कि निश्चित तौर पर यह बदलाव सराहनीय है. चित्तौड़गढ़ से शुरू होने वाली इस परंपरा का असर आने वाले समय में देश के अन्य शहरों और राज्यों में भी दिखाई देगा.

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