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होलाष्टक लगने के साथ ही घरों में नहीं बनता खाना, भारत ही नहीं पाकिस्तान तक निभाई जाती इस जाति में यह परंपरा

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Published : Feb 27, 2023, 9:40 AM IST

बीकानेर में होली के रंगों के साथ ही परंपरा भी अलग है. पुष्करणा समाज की जोशी जाति में होलाष्टक के साथ ही एक परंपरा 350 सालों से निभाई जा रही है जो न सिर्फ भारत में बल्कि पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान भी निभाई जाती है. जानें क्या है ये परंपरा...

Holashtak custom in Bikaner of Joshi caste
होलाष्टक पर बीकानेर जोशी जाति का परंपरा

बीकानेर. कहा जाता है कि ब्रज और बीकानेर की होली का रंग अलग ही है. अल्हड़ मस्ती अलग अंदाज के साथ बीकानेर की होली अपने आप में देश और दुनिया में मशहूर है कि लोग परंपरा और रिवाज को शिद्दत से निभाने वाले माने जाते हैं और बात जब त्योहारों की आती है तो यह बात सार्थक होती भी नजर आती है. वैसे तो होली उमंग और खुशी का त्योहार है लेकिन बीकानेर में पुष्करणा समाज की जोशी जाति में होलाष्टक के साथ ही एक परंपरा पिछले 350 सालों से निभाई जा रही है जो न सिर्फ भारत में बल्कि पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान साथ ही दुनिया में इस जाति की निवास करने वाले लोगों द्वारा निभाई जाती है. होलाष्टक के साथ ही जोशी जाति के घरों में अगले 8 दिनों तक घरों में खाना नहीं बनता है.

धोरों की धरती का 550 साल पुराना शहर बीकानेर अपनी हवेलियों खानपान रसगुल्ला और भुजिया के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है. इसके साथ ही यहां के लोगों की जीवन का अपनापन और परंपरा और संस्कृति के प्रति लगाव भी बिरला ही है. एक और जहां आधुनिक समय में लोग अपनी परंपरा त्योहार मनाने की संस्कृति से दूर होते जा रहे हैं तो वहीं दूसरी और बीकानेर के लोग आज भी अपनी परंपरा को निभाने में आगे खड़े नजर आते हैं. वैसे तो होली उमंग और उल्लास का त्यौहार है लेकिन बीकानेर में होली के मौके पर पुष्करणा ब्राह्मण समाज जोशी जाति में 350 साल पुरानी एक घटना के चलते बना रिवाज आज भी परंपरा के रूप में कायम है.

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नहीं बनता घरों में खाना:होली के 8 दिन पहले यानी कि होलाष्टक लगने के साथ ही बीकानेर में जोशी जाति के लोगों के घरों में छौंक नहीं लगता है. दरअसल घरों में किसी भी प्रकार से कोई भी सब्जी और दूसरी चीज जिसमें छौंक लगती हो वह नहीं बनाई जाती है. बदले समय में जोशी जाति के लोग होलाष्टक के बाद घरों में खाना नहीं बनाते हैं.

ये है कारण
जोशी जाति के कपिल जोशी कहते हैं कि पूर्वजों की ओर से इस परंपरा का निर्वहन किया जा रहा है और आज भी हम शिद्दत से उसी परंपरा को निभाते हैं. वे कहते हैं कि 350 साल पहले पोकरण के पास स्थित मांडवा में होलिका दहन के समय जोशी जाति की एक महिला अपने हाथ में बच्चे को लिए परिक्रमा लगा रही थी. इस दौरान बच्चा हाथ से छूटकर होलिका की अग्नि में गिर गया और उसको बचाने के लिए मां ने भी प्रयास किया और आसपास मौजूद लोगों ने उन दोनों को बचाने का प्रयास किया लेकिन दोनों की होलिका में जलने से मौत हो गई. तब से जोशी जाति के लोग होलाष्टक के दिन 12 बजे के बाद धुलंडी के दिन दोपहर तक अपने घरों में छौंक नहीं लगाते हैं. हालांकि पहले लोग घरों में रोटी बनाते थे और सब्जी बाहर से लाते थे लेकिन अब बदलते समय में रिश्तेदार, नातेदार और मित्र, संबंधी घर पर खाना पहुंचाते हैं.

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पाकिस्तान में भी निभाई जा रही परंपरा
समाज के ऋषिमोहन जोशी कहते हैं कि विभाजन से पहले भारत और पाकिस्तान अलग नहीं था और वर्तमान पाकिस्तान में रहने वाले जोशी जाति के लोग विभाजन के बाद भी वही रहे और आज भी इस परंपरा को निभाते हैं. इसके अलावा बीकानेर जैसलमेर जोधपुर और प्रदेश के अन्य भागों से विश्व के दूसरे देशों में रहने वाले जोशी जाति के लोग भी इस परंपरा को निभाते हैं.

आज भी हरा भरा है पेड़
समाज के ऋषिमोहन जोशी कहते हैं कि उस वक्त जिस जगह पर होलिका दहन के दौरान यह घटना हुई थी. वहां एक पेड़ है और वह हर वक्त हराभरा रहता है. जोशी जाति के लोग वहां अपनी श्रद्धा के साथ दर्शन करने जाते हैं.

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