बीकानेर. कहा जाता है कि ब्रज और बीकानेर की होली का रंग अलग ही है. अल्हड़ मस्ती अलग अंदाज के साथ बीकानेर की होली अपने आप में देश और दुनिया में मशहूर है कि लोग परंपरा और रिवाज को शिद्दत से निभाने वाले माने जाते हैं और बात जब त्योहारों की आती है तो यह बात सार्थक होती भी नजर आती है. वैसे तो होली उमंग और खुशी का त्योहार है लेकिन बीकानेर में पुष्करणा समाज की जोशी जाति में होलाष्टक के साथ ही एक परंपरा पिछले 350 सालों से निभाई जा रही है जो न सिर्फ भारत में बल्कि पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान साथ ही दुनिया में इस जाति की निवास करने वाले लोगों द्वारा निभाई जाती है. होलाष्टक के साथ ही जोशी जाति के घरों में अगले 8 दिनों तक घरों में खाना नहीं बनता है.
धोरों की धरती का 550 साल पुराना शहर बीकानेर अपनी हवेलियों खानपान रसगुल्ला और भुजिया के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है. इसके साथ ही यहां के लोगों की जीवन का अपनापन और परंपरा और संस्कृति के प्रति लगाव भी बिरला ही है. एक और जहां आधुनिक समय में लोग अपनी परंपरा त्योहार मनाने की संस्कृति से दूर होते जा रहे हैं तो वहीं दूसरी और बीकानेर के लोग आज भी अपनी परंपरा को निभाने में आगे खड़े नजर आते हैं. वैसे तो होली उमंग और उल्लास का त्यौहार है लेकिन बीकानेर में होली के मौके पर पुष्करणा ब्राह्मण समाज जोशी जाति में 350 साल पुरानी एक घटना के चलते बना रिवाज आज भी परंपरा के रूप में कायम है.
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नहीं बनता घरों में खाना:होली के 8 दिन पहले यानी कि होलाष्टक लगने के साथ ही बीकानेर में जोशी जाति के लोगों के घरों में छौंक नहीं लगता है. दरअसल घरों में किसी भी प्रकार से कोई भी सब्जी और दूसरी चीज जिसमें छौंक लगती हो वह नहीं बनाई जाती है. बदले समय में जोशी जाति के लोग होलाष्टक के बाद घरों में खाना नहीं बनाते हैं.